संतोषी माता चालीसा – Santoshi Mata Chalisa
संतोषी माता चालीसा नित्य गाने से सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं और त्रास नष्ट हो जाते हैं। भगवान श्री गणेश की पुत्री माँ सन्तोषी भय, शोक व दुःख-कष्टों को दूर करने वाली हैं। उनका स्मरण मात्र पुण्य देने वाला और पापों को क्षीण करने वाला है।
संतोषी चालीसा (Santoshi Chalisa) के अमृत का जो भी भक्त प्रतिदिन पान करता है, उसे माँ का आशीष अवश्य मिलता है। कलियुग में माँ शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल देने वाली हैं।
संतोषी माता चालीसा (Santoshi Mata Chalisa) के पाठ से हृदय शुद्ध होता है और भक्ति स्वयं ही पैदा होती है। पढ़ें संतोषी माता चालीसा (Santoshi Maa Chalisa)–
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॥ दोहा ॥
श्री गणपति पद नाय सिर,
धरि हिय शारदा ध्यान।
सन्तोषी माँ की करूँ,
कीरति सकल बखान॥
॥ चौपाई ॥
जय संतोषी मां जग जननी,
खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी।
गणपति देव तुम्हारे ताता,
रिद्धि सिद्धि कहलावहं माता।
माता-पिता की रहौ दुलारी,
कीरति केहि विधि कहूँ तुम्हारी।
क्रीट मुकुट सिर अनुपम भारी,
कानन कुण्डल की छवि न्यारी।
सोहत अंग छटा छवि प्यारी,
सुन्दर चीर सुनहरी धारी।
आप चतुर्भुज सुघड़ विशाला,
धारण करहु गले वन माला।
निकट है गौ अमित दुलारी,
करहु मयूर आप असवारी।
जानत सबही आप प्रभुताई,
सुर नर मुनि सब करहिं बड़ाई।
तुम्हरे दरश करत क्षण माई,
दुख दरिद्र सब जाय नसाई।
वेद पुराण रहे यश गाई,
करहु भक्त की आप सहाई।
ब्रह्मा ढिंग सरस्वती कहाई,
लक्ष्मी रूप विष्णु ढिंग आई।
शिव लिंग गिरजा रूप बिराजी,
महिमा तीनों लोक में गाजी।
शक्ति रूप प्रगट जन जानी,
रुद्र रूप भई मात भवानी।
दुष्ट दलन हित प्रगट काली
जगमग ज्योति प्रचंड निराली।
चण्ड मुण्ड महिषासुर मारे,
शुम्भ निशुम्भ असुर हनि डारे।
महिमा वेद पुरानन बरनी,
निज भक्त्न के संकट हरनी।
रूप शारदा हंस मोहिनी,
निरंकार साकार दाहिनी।
प्रगटाई चहुंदिश निज माया,
कण कण में है तेज समाया।
पृथ्वी सूर्य चन्द्र अरु तारे,
तव इंगित क्रम बद्ध हैं सारे।
पालन पोषण तुम्हीं करता,
क्षण भंगुर में प्राण हरता।
ब्रह्मा जी विष्णु तुम्हें निज ध्यावै,
शेष महेश सदा मन लावें।
मनोकमाना पूरण करनी,
पाप काटनी भव भय तरनी।
चित्त लगाय तुम्हें जो ध्याता,
सो नर सुख सम्पत्ति है पाता।
बन्ध्या नारि तुमहिं जो ध्यावै,
पुत्र पुष्प लता सम वह पावैं ।
पति वियोगी अति व्याकुलनारी,
तुम वियोग अति व्याकुलयारी।
कन्या जो कोई तुमको ध्यावै,
अपना मन वांछित वर पावै।
शीलवान गुणवान हो मैया,
अपने जन की नाव खिवैया।
विधि पूर्वक व्रत जो कोई करहीं,
ताहि अमित सुख सम्पत्ति भरहीं।
गुड़ और चना भोग तोहि भावै,
सेवा करै सो आनन्द पावै ।
श्रद्धा युक्त ध्यान जो धरहीं,
सो नर निश्चय भव सों तरहीं।
उद्यापन जो करहि तुम्हारा,
ताको सहज करहु निस्तारा।
नारी सुहागिन व्रत जो करती,
सुख सम्पत्ति सों गोदी भरती।
जो सुमिरत जैसी मन भावा,
सो नर वैसो ही फल पावा।
सात शुक्र जो व्रत मन धारे,
ताके पूर्ण मनोरथ सारे।
सेवा करहि भक्ति युत जोई,
ताको दूर दरिद्र दुख होई।
जो जन शरण माता तेरी आवै,
ताके क्षण में काज बनावै।
जय जय जय अम्बे कल्याणी,
कृपा करो मोरी महारानी।
जो कोई पढ़े मात चालीसा,
तापे करहिं कृपा जगदीशा।
निज प्रति पाठ करै इक बारा,
सो नर रहै तुम्हारा प्यारा।
नाम लेत ब्याधा सब भागे,
रोग दोष कबहूँ नहीं लागे।
॥ दोहा ॥
सन्तोषी माँ के सदा
बन्दहुँ पग निश वास।
पूर्ण मनोरथ हों सकल
मात हरौ भव त्रास॥
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विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर संतोषी चालीसा (Santoshi Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें संतोषी चालीसा रोमन में–
Read Santoshi Chalisa
॥dohā॥
śrī gaṇapati pada nāya sira,
dhari hiya śāradā dhyāna।
santoṣī mā~ kī karū~,
kīrati sakala bakhāna॥
॥caupāī॥
jaya saṃtoṣī māṃ jaga jananī,
khala mati duṣṭa daitya dala hananī।
gaṇapati deva tumhāre tātā,
riddhi siddhi kahalāvahaṃ mātā।
mātā-pitā kī rahau dulārī,
kīrati kehi vidhi kahū~ tumhārī।
krīṭa mukuṭa sira anupama bhārī,
kānana kuṇḍala kī chavi nyārī।
sohata aṃga chaṭā chavi pyārī,
sundara cīra sunaharī dhārī।
āpa caturbhuja sughaḍa़ viśālā,
dhāraṇa karahu gale vana mālā।
nikaṭa hai gau amita dulārī,
karahu mayūra āpa asavārī।
jānata sabahī āpa prabhutāī,
sura nara muni saba karahiṃ baḍa़āī।
tumhare daraśa karata kṣaṇa māī,
dukha daridra saba jāya nasāī।
veda purāṇa rahe yaśa gāī,
karahu bhakta kī āpa sahāī।
brahmā ḍhiṃga sarasvatī kahāī,
lakṣmī rūpa viṣṇu ḍhiṃga āī ।
śiva liṃga girajā rūpa birājī,
mahimā tīnoṃ loka meṃ gājī।
śakti rūpa pragaṭa jana jānī,
rudra rūpa bhaī māta bhavānī।
duṣṭa dalana hita pragaṭa kālī
jagamaga jyoti pracaṃḍa nirālī।
caṇḍa muṇḍa mahiṣāsura māre,
śumbha niśumbha asura hani ḍāre।
mahimā veda purānana baranī,
nija bhaktna ke saṃkaṭa haranī।
rūpa śāradā haṃsa mohinī,
niraṃkāra sākāra dāhinī।
pragaṭāī cahuṃdiśa nija māyā,
kaṇa kaṇa meṃ hai teja samāyā।
pṛthvī sūrya candra aru tāre,
tava iṃgita krama baddha haiṃ sāre।
pālana poṣaṇa tumhīṃ karatā,
kṣaṇa bhaṃgura meṃ prāṇa haratā।
brahmā viṣṇu tumheṃ nija dhyāvai,
śeṣa maheśa sadā mana lāveṃ।
manokamānā pūraṇa karanī,
pāpa kāṭanī bhava bhaya taranī।
citta lagāya tumheṃ jo dhyātā,
so nara sukha sampatti hai pātā।
bandhyā nāri tumahiṃ jo dhyāvai,
putra puṣpa latā sama vaha pāvaiṃ ।
pati viyogī ati vyākulanārī,
tuma viyoga ati vyākulayārī।
kanyā jo koī tumako dhyāvai,
apanā mana vāṃchita vara pāvai।
śīlavāna guṇavāna ho maiyā,
apane jana kī nāva khivaiyā।
vidhi pūrvaka vrata jo koī karahīṃ,
tāhi amita sukha sampatti bharahīṃ।
guḍa़ aura canā bhoga tohi bhāvai,
sevā karai so ānanda pāvai ।
śraddhā yukta dhyāna jo dharahīṃ,
so nara niścaya bhava soṃ tarahīṃ।
udyāpana jo karahi tumhārā,
tāko sahaja karahu nistārā।
nārī suhāgina vrata jo karatī,
sukha sampatti soṃ godī bharatī।
jo sumirata jaisī mana bhāvā,
so nara vaiso hī phala pāvā।
sāta śukra jo vrata mana dhāre,
tāke pūrṇa manoratha sāre।
sevā karahi bhakti yuta joī,
tāko dūra daridra dukha hoī।
jo jana śaraṇa mātā terī āvai,
tāke kṣaṇa meṃ kāja banāvai।
jaya jaya jaya ambe kalyāṇī,
kṛpā karo morī mahārānī।
jo koī paḍha़e māta cālīsā,
tāpe karahiṃ kṛpā jagadīśā।
nija prati pāṭha karai ika bārā,
so nara rahai tumhārā pyārā।
nāma leta byādhā saba bhāge,
roga doṣa kabahū~ nahīṃ lāge।
॥ dohā ॥
santoṣī mā~ ke sadā
bandahu~ paga niśa vāsa।
pūrṇa manoratha hoṃ sakala
māta harau bhava trāsa ॥