सीता माता का जीवन परिचय
सीता माता की महिमा अपार है। वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास तथा धर्म शास्त्रों में इनकी अनन्त महिमा का वर्णन है। ये भगवान श्रीराम की प्राणप्रिया आद्याशक्ति हैं। ये सर्वमङ्गलदायिनी, त्रिभुवन की जननी तथा भक्ति और मुक्ति का दान करने वाली हैं। महाराज सीरध्वज जनक की यज्ञ भूमि से कन्या रूप में प्रकट हुई भगवती सीता ही संसार का उद्भव, स्थिति और संहार करने वाली पराशक्ति हैं। ये पतिव्रताओं में शिरोमणि तथा भारतीय आदर्शों की अनुपम शिक्षिका हैं।
अपनी ससुराल अयोध्या में आने के बाद अनेक सेविकाओं के होने पर भी भगवती सीता माता अपने हाथों से सारा गृहकार्य स्वयं करती थीं और पति के संकेत मात्र से उनकी आज्ञा का तत्काल पालन करती थीं। अपने पतिदेव भगवान श्री राम को वन-गमन के लिये प्रस्तुत देखकर इन्होंने तत्काल अपने कर्तव्य कर्म का निर्णय कर लिया और श्रीराम से कहा, “हे आर्यपुत्र, माता-पिता, भाई, पुत्र तथा पुत्रवधू- वे सब अपने अपने कर्म के अनुसार सुख-दुःख का भोग करते हैं। एकमात्र पत्नी ही पति के कर्मफलों की भागिनी होती है। आपके लिये जो वनवास की आज्ञा हुई है, वह मेरे लिये भी हुई है। इसलिये वनवास में आपके साथ में मैं भी चलूँगी। आपमें ही मेरा हृदय अनन्यभाव से अनुरक्त है। आपके वियोग में मेरी मृत्यु निश्चित है। इसलिये आप मुझे अपने साथ वन में अवश्य ले चलिये। मुझे ले चलने से आप पर कोई भार नहीं होगा। मैं वन में नियम पूर्वक ब्रह्मचारिणी रहकर आपकी सेवा करूंगी।”
अपने पति श्री राम से वन में ले चलने का निवेदन करती हुई सीता माता प्रेम-विह्वल हो गयीं। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। वे संज्ञाहीन-सी होने लगीं अन्त में श्रीराम को उन्हें साथ चलने की आज्ञा देनी पड़ी। माता सीता अपने सतीत्व के परम तेज से लंकेशको भी भस्म कर सकती थी। पापात्मा रावण के कुत्सित मनोवृत्ति की धज्जियाँ उड़ाती हुई पतिव्रता सीता कहती है, “हे रावण! तुम्हें जलाकर भस्म कर देने की शक्ति रखती हुई भी मैं श्रीरामचन्द्र का आदेश न होने के कारण एवं तपोभङ्ग होने के कारण तुम्हें जलाकर भस्म नहीं कर रही हूँ।”
महासती सीता माता ने हनुमान जी की पूँछ में आग लगने के समय अग्निदेव से प्रार्थना की- ‘हे अग्नि देव, यदि मैंने अपने पति की सच्चे मन से सेवा की है, यदि मैंने श्रीराम के अतिरिक्त किसी का चिन्तन न किया हो तो तुम हनुमान के लिये शीतल हो जाओ।” महासती सीता की प्रार्थना से अग्निदेव हनुमान के लिये सुखद और शीतल हो गये और लंका के लिये दाहक बन गये। सीता के पातिव्रत्य की गवाही अग्निपरीक्षा के पश्चात् स्वयं अग्निदेव ने दी थी। महासती सीता के सतीत्व की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती। भगवती सीता माता का चरित्र समस्त नारियों के लिये वन्दनीय तथा अनुकरणीय है।