धर्म

सूरह अल मोमिन हिंदी में – सूरह 40

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

हा० मीम० | यह किताब उतारी गई है अल्लाह की तरफ़ से जो ज़बरदस्त है, जानने वाला है। माफ़ करने वाला और तौबा क़ुबूल करने वाला है, सख्त सज़ा देने वाला, बड़ी क़ुदरत वाला है। उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। उसी की तरफ़ लौटना है। (1-3)

अल्लाह की आयतों में वही लोग झगड़े निकालते हैं जो मुंकिर हैं। तो उन लोगों का शहरों में चलना फिरना तुम्हें धोखे में न डाले। उनसे पहले नूह की क़ौम ने झुठलाया। और उनके बाद के गिरोह ने भी। और हर उम्मत ने इरादा किया कि अपने रसूल को पकड़ लें और उन्होंने नाहक़ के झगड़े निकाले ताकि उससे हक़ को पसपा (परास्त) कर दें तो मैंने उन्हें पकड़ लिया। फिर कैसी थी मेरी सज़ा। और इसी तरह तेरे रब की बात उन लोगों पर पूरी हो चुकी है जिन्होंने इंकार किया कि वे आग वाले हैं। (4-6)

जो आर्श को उठाए हुए हैं और जो उसके इर्द-गिर्द हैं वे अपने रब की तस्बीह करते हैं, उसकी हम्द के साथ। और वे उस पर ईमान रखते हैं। और वे ईमान वालों के लिए मग्फ़िर्त (क्षमा) की दुआ करते हैं। ऐ हमारे रब तेरी रहमत और तेरा इल्म हर चीज़ का इहाता किए हुए है। पस तू माफ़ कर दे उन लोगों को जो तौबा करें और तेरे रास्ते की पैरवी करें और तू उन्हें जहन्नम के अज़ाब से बचा। ऐ हमारे रब, और तू उन्हें हमेशा रहने वाले बाग़ों में दाख़िल कर जिनका तूने उनसे वादा किया है। और उन्हें भी जो सालेह हों उनके वालिदेन और उनकी बीवियों और उनकी औलाद में से। बेशक तू ज़बरदस्त है, हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। और उन्हें बुराइयों से बचा ले। और जिसे तूने उस दिन बुराइयों से बचाया तो उन पर तूने रहम किया। और यही बड़ी कामयाबी है। (7-9)

जिन लोगों ने इंकार किया, उन्हें पुकार कर कहा जाएगा, ख़ुदा की बेज़ारी (खिन्‍्नता) तुमसे इससे ज़्यादा है जितनी बेज़ारी तुम्हें अपने आप पर है। जब तुम्हें ईमान की तरफ़ बुलाया जाता था तो तुम इंकार करते थे। वे कहेंगे कि ऐ हमारे रब, तूने हमें दो बार मौत दी और दो बार हमें ज़िंदगी दी, पस हमने अपने गुनाहों का इक़रार किया, तो क्या निकलने की कोई सूरत है। यह तुम पर इसलिए है कि जब अकेले अल्लाह की तरफ़ बुलाया जाता था तो तुम इंकार करते थे। और जब उसके साथ शरीक किया जाता तो तुम मान लेते | पस फ़ैसला अल्लाह के इख़्तियार में है जो अज़ीम है, बड़े मर्तबे वाला है। (10-12) 

वही है जो तुम्हें अपनी निशानियां दिखाता है और आसमान से तुम्हारे लिए रिज़्क़ उतारता है। और नसीहत सिर्फ़ वही शख्स क्ुबूल करता है जो अल्लाह की तरफ़ रुजूअ करने वाला हो। पस अल्लाह ही को पुकारो, दीन को उसी के लिए ख़ालिस करके, चाहे मुंकिरों को नागवार क्‍यों न हो। वह बुलन्द दर्जों वाला, आर्श का मालिक है। वह अपने बंदों में से जिस पर चाहता है “वही” (ईश्वरीय वाणी) भेजता है ताकि वह मुलाक़ात के दिन से डराए। जिस दिन कि वे ज़ाहिर होंगे। अल्लाह से उनकी कोई चीज़ छुपी हुई न होगी। आज बादशाही किस की है, अल्लाह वाहिद क़ह्हार (वर्चस्वशाली) की। आज हर शख्स को उसके किए का बदला मिलेगा, आज कोई ज़ुल्म न होगा। बेशक अल्लाह जल्द हिसाब लेने वाला है। (13-17)

और उन्हें क़रीब आने वाली मुसीबत के दिन से डराओ जबकि दिल हलक़ तक आ पहुंचेंगे, वे ग़म से भरे हुए होंगे। ज़ालिमों का न कोई दोस्त होगा और न कोई सिफ़ारिशी जिसकी बात मानी जाए। वह निगाहों की चोरी को जानता है और उन बातों को भी जिन्हें सीने छुपाए हुए हैं। और अल्लाह हक़ के साथ फ़ैसला करेगा। और जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वे किसी चीज़ का फ़ैसला नहीं करते। बेशक अल्लाह सुनने वाला है, देखने वाला है। (18-20)

क्या वे ज़मीन में चले फिरे नहीं कि वे देखते कि क्या अंजाम हुआ उन लोगों का जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं। वे इनसे बहुत ज़्यादा थे क्ुब्बत में और उन आसार के एतबार से भी जो उन्होंने ज़मीन में छोड़े। फिर अल्लाह ने उनके गुनाहों पर उन्हें पकड़ लिया और कोई उन्हें अल्लाह से बचाने वाला न था। यह इसलिए हुआ कि उनके पास उनके रसूल खुली निशानियां लेकर आए तो उन्होंने इंकार किया। तो अल्लाह ने उन्हें पकड़ लिया। यक़ीनन वह ताक़तवर है सख्त सज़ा देने वाला है। (21-22)

और हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ और खुली दलील के साथ, फ़िरऔन और हामान और क़ारून के पास भेजा, तो उन्होंने कहा कि यह एक जादूगर है, झूठा है। फिर जब वह हमारी तरफ़ से हक़ लेकर उनके पास पहुंचा, उन्होंने कहा कि इन लोगों के बेटों को क़त्ल कर डालो जो इसके साथ ईमान लाएं और उनकी औरतों को ज़िंदा रखों। और उन मुंकिरों की तदबीर महज़ बेअसर रही। (23-25)

और फ़िरऔन ने कहा, मुझे छोड़ो, मैं मूसा को क़त्ल कर डालूं और वह अपने रब को पुकारे, मुझे अंदेशा है कि कहीं वह तुम्हारा दीन (धर्म) बदल डाले या मुल्क में फ़साद फैला दे। और मूसा ने कहा कि मैंने अपने और तुम्हारे रब की पनाह ली हर उस मुतकब्बिर (घमंडी) से जो हिसाब के दिन पर ईमान नहीं रखता। (26-27)

और आले फ़िरऔन में से एक मोमिन शख्स, जो अपने ईमान को छुपाए हुए था, बोला, क्या तुम लोग एक शख्स को सिर्फ़ इस बात पर क़त्ल कर दोगे कि वह कहता है कि मेरा रब अल्लाह है, हालांकि वह तुम्हारे रब की तरफ़ से खुली दलीलें भी लेकर आया है। और अगर वह झूठा है तो उसका झूठ उसी पर पड़ेगा। और अगर वह सच्चा है तो उसका कोई हिस्सा तुम्हें पहुंच कर रहेगा। जिसका वादा वह तुमसे करता है। बेशक अल्लाह ऐसे शख्स को हिदायत नहीं देता जो हद से गुज़रने वाला हो, झूठा हो। ऐ मेरी क्रौम, आज तुम्हारी सल्तनत है कि तुम ज़मीन में ग़ालिब हो। फिर अल्लाह के अज़ाब के मुक़ाबिल हमारी कौन मदद करेगा, अगर वह हम पर आ गया। फ़िरऔन ने कहा, मैं तुम्हें वही राय देता हूं जिसे मैं समझ रहा हूं, और मैं तुम्हारी रहनुमाई ठीक भलाई के रास्ते की तरफ़ कर रहा हूं। (28-29)

और जो शख्स ईमान लाया था उसने कहा कि ऐ मेरी क़ौम, मैं डरता हूं कि तुम पर और गिरोहों जैसा दिन आ जाए, जैसा दिन क़ौमे नूह और आद और समूद और उनके बाद वालों पर आया। और अल्लाह अपने बंदों पर कोई ज़ुल्म करना नहीं चाहता। और ऐ मेरी क़ौम, मैं डरता हूं कि तुम पर चीख़ पुकार का दिन आ जाए, जिस दिन तुम पीठ फेरकर भागोगे। और तुम्हें ख़ुदा से बचाने वाला कोई न होगा। और जिसे ख़ुदा गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। (30-35)

और इससे पहले यूसुफ़ तुम्हारे पास खुले दलाइल के साथ आए तो तुम उनकी लाई हुई बातों की तरफ़ से शक ही में पड़े रहे। यहां तक कि जब उनकी वफ़ात हो गई तो तुमने कहा कि अल्लाह इनके बाद हरगिज़ कोई रसूल न भेजेगा। इसी तरह अल्लाह उन लोगों को गुमराह कर देता है जो हद से गुज़रने वाले और शक करने वाले होते हैं। जो अल्लाह की आयतों में झगड़ा करते हैं बगैर किसी दलील के जो उनके पास आई हो। अल्लाह और ईमान वालों के नज़दीक यह सख्त मबग़्ूज़ (अप्रिय) है। इसी तरह अल्लाह मुहर कर देता है हर मग़रूर (अभिमानी), सरकश के दिल पर। (34-35)

और फ़िरऔन ने कहा कि ऐ हामान, मेरे लिए एक ऊंची इमारत बना ताकि मैं रास्तों पर पहुंचूं, आसमानों के रास्तों तक, पस मूसा के माबूद (पूज्य) को झांक कर देखूं, और में तो उसे झूठा ख्याल करता हूं। और इस तरह फ़िरऔन के लिए उसकी बदअमली ख़ुशनुमा बना दी गई और वह सीधी रास्ते से रोक दिया गया। और फ़िरऔन की तदबीर ग़ारत होकर रही। (36-37)

और जो शख्स ईमान लाया था उसने कहा कि ऐ मेरी क्रौम, तुम मेरी पैरवी करो, मैं तुम्हें सही रास्ता बता रहा हूं। ऐ मेरी क़ौम, यह दुनिया की ज़िंदगी महज़ चन्द रोज़ा है और असल ठहरने का मक़ाम आख़िरत (परलोक) है। जो शख्स बुराई करेगा तो वह उसके बराबर बदला पाएगा। और जो शख्स नेक काम करेगा, चाहे वह मर्द हो या औरत, बशर्ते कि वह मोमिन हो तो यही लोग जन्नत में दाख़िल होंगे, वहां वे बेहिसाब रिज़्क़ पाएंगे। और ऐ मेरी क़ौम, क्या बात है कि मैं तो तुम्हें नजात (मुक्ति) की तरफ़ बुलाता हूं और तुम मुझे आग की तरफ़ बुला रहे हो। तुम मुझे बुला रहे हो कि मैं ख़ुदा के साथ कुफ़ करूं और ऐसी चीज़ को उसका शरीक बनाऊं जिसका मुझे कोई इल्म नहीं। और मैं तुम्हें ज़बरदस्त मग्फ़िरत (क्षमा) करने वाले ख़ुदा की तरफ़ बुला रहा हूं। यक़़ीनी बात है कि तुम जिस चीज़ की तरफ़ मुझे बुलाते हो उसकी कोई आवाज़ न दुनिया में है और न आख़िरत में। और बेशक हम सबकी वापसी अल्लाह ही की तरफ़ है और हद से गुज़रने वाले ही आग में जाने वाले हैं। पस तुम आगे चलकर मेरी बात को याद करोगे। और मैं अपना मामला अल्लाह के सुपुर्द करता हूं। बेशक अल्लाह तमाम बंदों का निगरां (निगाह रखने वाला) है। (38-44)

फिर अल्लाह ने उसे उनकी बुरी तदबीरों से बचा लिया। और फ़िरऔन वालों को बुरे अज़ाब ने घेर लिया। आग, जिस पर वे सुबह व शाम पेश किए जाते हैं। और जिस दिन क्रियामत क़ायम होगी, फ़िरऔन वालों को सख्ततरीन अज़ाब में दाखिल करो। (45-46)

और जब वे दोज़ख़ में एक दूसरे से झगड़ेंगे तो कमज़ोर लोग बड़ा बनने वालों से कहेंगे कि हम तुम्हारे ताबेअ (अधीन) थे, तो क्या तुम हमसे आग का कोई हिस्सा हटा सकते हो। बड़े लोग कहेंगे कि हम सब ही इसमें हैं। अल्लाह ने बंदों के दर्मियान फ़ैसला कर दिया। और जो लोग आग में होंगे वे जहननम के निगहबानों से कहेंगे कि तुम अपने रब से दरख़्वास्त करो कि हमारे अज़ाब में से एक दिन की तरूुफ़रीफ़ (कमी) कर दे। वे कहेंगे, क्या तुम्हारे पास तुम्हारे रसूल वाज़ेह दलीलें लेकर नहीं आए। वे कहेंगे कि हां। निगहबान कहेंगे फिर तुम ही दरख़्वास्त करो। और मुंकिरों की पुकार अकारत ही जाने वाली है। (47-50)

बेशक हम मदद करते हैं अपने रसूलों की और ईमान वालों की दुनिया की ज़िंदगी में, और उस दिन भी जबकि गवाह खड़े होंगे, जिस दिन ज़ालिमों को उनकी मअज़रत (सफ़ाई पेश करना) कुछ फ़ायदा न देगी और उनके लिए लानत होगी और उनके लिए बुरा ठिकाना होगा। और हमने मूसा को हिदायत अता की और बनी इस्राईल को किताब का वारिस बनाया, रहनुमाई और नसीहत अक़्ल वालों के लिए। पस तुम सब्र करो, बेशक अल्लाह का वादा बरहक़ है और अपने क़ुसूर की माफ़ी चाहो। और सुबह व शाम अपने रब की तस्बीह करो उसकी हम्द (प्रशंसा) के साथ। (51-55)

जो लोग किसी सनद के बगैर जो उनके पास आई हो, अल्लाह की आयतों में झगड़े निकालते हैं, उनके दिलों में सिर्फ़ बड़ाई है कि वे उस तक कभी पहुंचने वाले नहीं। पस तुम अल्लाह की पनाह मांगो, बेशक वह सुनने वाला है, देखने वाला है। (56)

यक़रीनन आसमानों और ज़मीन का पैदा करना इंसानों को पैदा करने की निस्बत ज़्यादा बड़ा काम है, लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते। और अंधा और आंखों वाला यकसां (समान) नहीं हो सकता, और न ईमानदार और नेकोकार (सत्कर्मी) और वे जो बुराई करने वाले हैं। तुम लोग बहुत कम सोचते हो। बेशक क्रियामत आकर रहेगी। इसमें कोई शक नहीं, मगर अक्सर लोग नहीं मानते। (57-59)

और तुम्हारे रब ने फ़रमा दिया है कि मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी दरख़्वास्त क्ुबूल करूंगा | जो लोग मेरी इबादत से सरताबी (विमुखता) करते हैं वे अनक़रीब ज़लील होकर जहन्नम में दाख़िल होंगे। अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए रात बनाई ताकि तुम उसमें आराम करो, और दिन को रोशन किया। बेशक अल्लाह लोगों पर बड़ा फ़ज़्ल करने वाला है मगर अक्सर लोग शुक्र नहीं करते | यही अल्लाह तुम्हारा रब है, हर चीज़ का पैदा करने वाला, उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। फिर तुम कहां से बहकाए जाते हो। इसी तरह वे लोग बहकाए जाते रहे हैं जो अल्लाह की आयतों का इंकार करते थे। (60-63)

अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को ठहरने की जगह बनाया और आसमान को छत बनाया और तुम्हारा नक़्शा बनाया पस उम्दा नक़्शा बनाया। और उसने तुम्हें उम्दा चीज़ों का रिज़्क़ दिया। यह अल्लाह है तुम्हारा रब, पस बड़ा ही बाबरकत है अल्लाह जो रब है सारे जहान का। वही ज़िंदा है उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। पस तुम उसी को पुकारो। दीन (धर्म) को उसी के लिए ख़ालिस करते हुए। सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है जो रब है सारे जहान का। (64-65)

कहो, मुझे इससे मना कर दिया गया है कि मैं उनकी इबादत करूं जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, जबकि मेरे पास खुली दलीलें आ चुकीं। और मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं अपने आपको रब्बुल आलमीन (सृष्टि के प्रभु) के हवाले कर दूं। वही है जिसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर नुत्फ़ा (वीर्य) से, फिर ख़ून के लौथड़े से, फिर वह तुम्हें बच्चे की शक्ल में निकालता है, फिर वह तुम्हें बढ़ाता है ताकि तुम अपनी पूरी ताक़त को पहुंचो, फिर ताकि तुम बूढ़े हो जाओ। और तुम में से कोई पहले ही मर जाता है। और ताकि तुम मुक़र्रर वक़्त तक पहुंच जाओ और ताकि तुम सोचो। वही है जो जिलाता है और मारता है। पस जब वह किसी काम का फ़ैसला कर लेता है तो बस उसे कहता है कि हो जा पस वह हो जाता है। (66-68)

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो अल्लाह की आयतों में झगड़े निकालते हैं। वे कहां से फेरे जाते हैं। जिन्होंने किताब को झुठलाया और उस चीज़ को भी जिसके साथ हमने अपने रसूलों को भेजा। तो अनक़रीब वे जानेंगे, जबकि उनकी गर्दनों में तौक़ होंगे। और ज़ंजीरें, वे घसीटे जाएंगे जलते हुए पानी में। फिर वे आग में झौंक दिए जाएंगे। फिर उनसे कहा जाएगा, कहां हैं वे जिन्हें तुम शरीक करते थे अल्लाह के सिवा। वे कहेंगे, वे हमसे खोए गए बल्कि हम इससे पहले किसी चीज़ को पुकारते न थे। इस तरह अल्लाह गुमराह करता है मुंकिरों को। यह इस सबब से कि तुम ज़मीन में नाहक़ ख़ुश होते थे और इस सबब से कि तुम घमंड करते थे। जहन्नम के दरवाज़ों में दाख़िल हो जाओ, उसमें हमेशा रहने के लिए। पस कैसा बुरा ठिकाना है घमंड करने वालों का। (69-76)

पस सब्र करो बेशक अल्लाह का वादा बरहक़ है। फिर जिसका हम उनसे वादा कर रहे हैं उसका कुछ हिस्सा हम तुम्हें दिखा देंगे। या तुम्हें वफ़ात देंगे, पस उनकी वापसी हमारी ही तरफ़ है। (77)

और हमने तुमसे पहले बहुत से रसूल भेजे, उनमें से कुछ के हालात हमने तुम्हें सुनाए हैं और उनमें कुछ ऐसे भी हैं जिनके हालात हमने तुम्हें नहीं सुनाए। और किसी रसूल को यह मक़दूर (सामर्थ्य) न था कि वह अल्लाह की मर्ज़ी के बगैर कोई निशानी ले आए | फिर जब अल्लाह का हुक्म आ गया तो हक़ के मुताबिक़ फ़ैसला कर दिया गया। और ग़लतकार लोग उस वक़्त ख़सारे (घाटे) में रह गए। (78)

अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए मवेशी बनाए ताकि तुम कुछ से सवारी का काम लो और उनमें से कुछ को तुम खाते हो। और तुम्हारे लिए उनमें और भी फ़ायदे हैं। और ताकि तुम उनके ज़रिए से अपनी ज़रूरत तक पहुंचो जो तुम्हारे दिलों में हो और उन पर और कश्ती पर तुम सवार किए जाते हो और वह तुम्हें और भी निशानियां दिखाता है तो तुम अल्लाह की किन-किन निशानियों का इंकार करोगे। (79-81)

क्या वे ज़मीन में चले फिरे नहीं कि वे देखते कि क्या अंजाम हुआ उन लोगों का जो इनसे पहले गुज़रे हैं। वे इनसे ज़्यादा थे, और क्रुव्वत (शक्ति) में और निशानियों में जो कि वे ज़मीन पर छोड़ गए, बढ़े हुए थे। पस उनकी कमाई उनके कुछ काम न आई। पस जब उनके पैग़म्बर उनके पास खुली दलीलें लेकर आए तो वे अपने उस इल्म पर नाज़ां (गौरवांवित) रहे जो उनके पास था, और उन पर वह अज़ाब आ पड़ा जिसका वे मज़ाक़ उड़ाते थे। फिर जब उन्होंने हमारा अज़ाब देखा, कहने लगे कि हम अल्लाह वाहिद (एकेश्वर) पर ईमान लाए और हम इंकार करते हैं जिन्हें हम उसके साथ शरीक करते थे। पस उनका ईमान उनके काम न आया जबकि उन्होंने हमारा अज़ाब देख लिया। यही अल्लाह की सुन्नत (तरीक़ा) है जो उसके बंदों में जारी रही है, और उस वक़्त इंकार करने वाले ख़सारे (घाटे) में रह गए। (82-85)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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