स्वामी विवेकानंद के पत्र – डॉक्टर शशिभूषण घोष को लिखित (29 मई, 1897)
(स्वामी विवेकानंद का डॉक्टर शशिभूषण घोष को लिखा गया पत्र)
अल्मोड़ा,
२९ मई, १८९७
प्रिय डॉक्टर शशि,
तुम्हारा पत्र तथा दवा की दो बोतलें यथासमय प्राप्त हुईं। कल सायंकाल से तुम्हारी दवा की परीक्षा चालू कर दी है। आशा है कि एक दवा की अपेक्षा दोनों को मिलाने से अधिक असर होगा।
सुबह-शाम घोड़े पर सवार होकर मैंने पर्याप्त रूप से व्यायाम करना प्रारम्भ कर दिया है और उसके बाद से सचमुच मैं बहुत अच्छा हूँ। व्यायाम शुरू करने के बाद पहले सप्ताह में ही मैं इतना स्वस्थ अनुभव करने लगा, जितना कि बचपन के उन दिनों को छोड़कर जब मैं कुश्ती लड़ा करता था, मैंने कभी नहीं किया था। तब मुझे सच में लगता था कि शरीरधारी होना ही एक आनन्द का विषय है। तब शरीर की प्रत्येक गति में मुझे शक्ति का आभास मिलता था तथा अंग-प्रत्यंग के संचालन से सुख की अनुभूति होती थी। वह अनुभव अब कुछ घट चुका है, फिर भी मैं अपने को शक्तिशाली अनुभव करता हूँ। जहाँ तक ताकत का सवाल है, जी. जी. तथा निरंजन दोनों को ही देखते-देखते मैं धरती पर पछाड़ सकता था। दार्जिलिंग में मुझे सदा ऐसा लगता था, जैसे मैं कोई दूसरा ही व्यक्ति बन चुका हूँ और यहाँ पर मुझे ऐसा अनुभव होता है कि मुझमें कोई रोग ही नहीं है। लेकिन एक उल्लेखनीय परिवर्तन दिखायी दे रहा है। बिस्तर पर लेटने के साथ ही मुझे कभी नींद नहीं आती थी – घंटे दो घंटे तक मुझे इधर-उधर करवट बदलनी पड़ती थी। केवल मद्रास से दार्जिलिंग तक (दार्जिलिंग में सिर्फ पहले महीने तक) तकिये पर सिर रखते ही मुझे नींद आ जाती थी। वह सुलभनिद्रा अब एकदम अन्तर्हित हो चुकी है और इधर-उधर करवट बदलने की मेरी वह पुरानी आदत तथा रात्रि में भोजन के बाद गर्मी लगने की अनुभूति पुनः वापस लौट आयी है। दिन में भोजन के बाद कोई खास गर्मी का अनुभव नहीं होता।
यहाँ पर एक फल का बगीचा है, अतः यहाँ आते ही मैंने अधिक फल खाना प्रारम्भ कर दिया है। किन्तु यहाँ पर खूबानी के सिवाय और कोई फल नहीं मिलता। नैनीताल से अन्य फल मँगवाने की मैं चेष्टा कर रहा हूँ। दिन में यहाँ पर यद्यपि गर्मी अधिक है, फिर भी प्यास नहीं लगती।… साधारणतया यहाँ पर मुझे शक्तिवर्द्धन के साथ ही साथ प्रफुल्लता तथा विपुल स्वास्थ्य का अनुभव हो रहा है। चिन्ता की बात केवल इतनी है कि अधिक मात्रा में दूध लेने के कारण चर्बी की वृद्धि हो रही है। योगेन ने जो लिखा है, उस पर ध्यान न देना। जैसे वह स्वयं डरपोक है, वैसे ही दूसरों को भी बनाना चाहता है। मैंने लखनऊ में एक बरफी का सोलहवाँ हिस्सा खाया था; उसके मतानुसार अल्मोड़े में मेरे बीमार पड़ने का कारण वही है! शायद दो-चार दिन में ही योगेन यहाँ आएगा। मैं उसकी देखभाल करूँगा। हाँ, एक बात और है, मैं आसानी से मलेरियाग्रस्त हो जाता हूँ – अल्मोड़ा आते ही जो पहले सप्ताह में मैं बीमार पड़ गया था, उसका कारण शायद तराई की तरफ से होकर आना ही था। खैर, इस समय तो मैं अपने को अत्यन्त बलशाली अनुभव कर रहा हूँ। डॉक्टर, आजकल जब मैं बर्फ से ढके हुए पर्वतशिखरों के सम्मुख बैठकर उपनिषद् के इस अंश का पाठ करता हूँ – न तस्य रोगो न जरा न मृत्यु प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम् (जिसने योगाग्निमय शरीर प्राप्त किया है, उसके लिए जरा-मृत्यु कुछ भी नहीं है) उस समय यदि एक बार तुम मुझे देख सकते!
रामकृष्ण मिशन, कलकत्ते की सभाओं की सफलता के समाचार से मैं अत्यन्त आनन्दित हूँ। इस महान् कार्य में जो सहायता प्रदान कर रहे हैं, उनका सर्वांगीण कल्याण हो।… सम्पूर्ण स्नेह के साथ।
प्रभुपदाश्रित तुम्हारा,
विवेकानन्द