स्वामी विवेकानंद के पत्र – हेल बहनों को लिखित (11 अगस्त, 1894)
(स्वामी विवेकानंद का हेल बहनों को लिखा गया पत्र)
ग्रीनेकर,
११ अगस्त १८९४
प्रिय बहनों,
मैं इन दिनों ग्रीनेकर में रहा। मैंने इस स्थान का बड़ा आनन्द उठाया। वे सभी मेरे प्रति बड़े दयालु रहे। शिकागो के केनिलबर्थ की एक महिला श्रीमती प्रैट मुझे ५०० डालर देना चाहती थीं; वह मुझ में इतनी दिलचस्पी लेने लगीं किन्तु मैंने अस्वीकार कर दिया। उन्होंने मुझसे वादा करा लिया है कि जब भी मुझे धन की आवश्यकता होगी, तब मैं कहला भेजूँगा, आशा है कि प्रभु मुझे कभी ऐसी स्थिति में नहीं डालेंगे। ‘उनकी’ सहायता ही मेरे लिए पर्याप्त है। मुझे तुम लोगों से या माँ से कोई खबर नहीं मिली। मुझे भारत से भी ‘फोनोग्राफ’ की पहुँच के बारे में कोई समाचार नहीं मिला।
तुम लोगों के पास भेजे मेरे पत्र में यदि कोई चोट लगने वाली बात रही हो, तो मुझे आशा है तुम सब जानती हो कि मैंने वह सब प्रेमवश ही कहा है। तुम लोगों के प्रति तुम्हारे बर्ताव के लिये अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना अनावश्यक है। प्रभु तुम लोगों का मंगल करें और तुम लोगों पर तथा जिन्हें तुम लोग प्यार करती हो, अपने आशीष की वर्षा करें। तुम्हारे परिवार का मैं सदा-सर्वदा कृतज्ञ हूँ। तुम इसे जानती हो। तुम इसे अनुभव करती हो। मैं इसे व्यक्त नहीं कर सकता। रविवार को मैं प्लिमथ में कर्नल हिगिंसन की ‘धर्मों की सहानुभूति’ सभा में भाषण करने जा रहा हूँ। साथ में मैं उस पेड़ के नीचे कोरा स्टाकहम का लिया हमारे दल का एक ‘फोटो’ भेज रहा हूँ, यह केवल ‘प्रूफ’ है और ‘एक्सपोजर’ से विवर्ण हो जायेगा, किन्तु मुझे अब इससे अच्छा कुछ और नहीं मिला।
कृपया मेरा हार्दिक प्यार और आभार कुमारी हाउ से कहो। यह हमारे प्रति बहुत बहुत दयालु रही हैं। मुझे सम्प्रति किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता पड़ी, तो तुम लोगों से सहर्ष बताऊँगा। मैं प्लिमथ से फिश्किल जाने का विचार कर रहा हूँ, जहाँ सिर्फ एक-दो दिन रहूँगा। मैं तुम लोगों को फिश्किल से पुनः पत्र लिखूँगा। आशा है कि तुम लोग प्रसन्न होगी, वस्तुतः मैं जानता हूँ कि तुम लोग प्रसन्न होगी। पवित्र और अच्छे लोग कभी भी अप्रसन्न नहीं रहते। चन्द सप्ताह यहाँ जो रहूँगा, अच्छी जगह बीतेगा। मैं आगामी शरद् ऋतु में न्यूयार्क में होऊँगा। न्यूयार्क एक शानदार अच्छी जगह है। न्यूयार्क के लोगों में अपने उद्देश्य के प्रति एक दृढ़ता है, जो अन्य शहरों के लोगों में नहीं दिखायी पड़ती। मुझे श्रीमती पॉटर पामर से एक पत्र प्राप्त हुआ था, जिसमें उन्होंने मुझको अगस्त में उनसे (श्रीमती पामर) मिलने को कहा था। वे बड़ी भद्र और दयालु महिला हैं। मुझे ज्यादा कुछ कहना नहीं है। यहाँ मेरे एक मित्र ‘एथिकल कल्चर सोसाइटी’ के अध्यक्ष न्यूयार्क के डॉ. जेन्स हैं, जिन्होंने अपना भाषण प्रारम्भ कर दिया है। मुझे उनको भाषण सुनने जाना चाहिए। मुझमें और उनमें बड़ी सहमति है। तुम लोग सदैव प्रसन्न रहो।
तुम्हारा सर्वदा शुभचिन्तक भाई,
विवेकानन्द