स्वामी विवेकानंद के पत्र – हेल बहनों को लिखित (20 अप्रैल, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का हेल बहनों को लिखा गया पत्र)
हाई व्यू, रीडिंग,
२० अप्रैल, १८९६
प्रिय बहनों,
समुद्र के इस तट से तुम्हें अभिवादन। यात्रा सुखद रही और इस बार कोई बीमारी नहीं हुई। इससे बचने के लिए मैंने अपना उपचार किया। मैंने आयरलैण्ड तथा इंग्लैण्ड के कुछ पुराने नगरों की थोड़ी यात्रा की और अब पुनःरीडिंग में ब्रह्म एवं माया तथा जीव, व्यक्ति और सार्वभौम आत्मा इत्यादि के बीच हूँ। दूसरा संन्यासी यहाँ है, मैं समझता हूँ कि वह एक उत्कृष्ट व्यक्ति है और अच्छा विद्वान संन्यासी भी है। अब हम पुस्तकों के सम्पादन में संलग्न हैं। मार्ग में कोई महत्त्वपूर्ण बात नहीं हुई। मेरे जीवन की भाँति ही यात्रा कुण्ठित, नीरस और शुष्क रही। जब मैं अमेरिका से बाहर होता हूँ, तो मुझे उससे अधिक स्नेह होता है। क्यों न हो, जो समय हमने वहाँ व्यतीत किया है, वह मेरे अब तक के जीवन के उत्तम समयों में रहा।
क्या तुम लोग ‘ब्रह्मवादिन्’ के लिए कुछ ग्राहक बनाने का प्रयत्न कर रही हो। श्रीमती एडम्स तथा श्रीमती कंगर को मेरा उत्कृष्ट स्नेह और सहृदय स्मरण कहना। मुझे सुविधानुसार शीघ्र ही अपने लोगों के विषय में सारी बातें लिखना। तुम लोग क्या कर रही हो; भोजन-पानी और सायकिल चलाने की एकरसता कैसे भंग होती है। सम्प्रति मुझे जल्दी है, बाद में एक बड़ा पत्र लिखूँगा। अतः विदा। तुम लोग सदैव प्रसन्न रहो।
तुम लोगों का सदा स्नेही भाई,
विवेकानन्द
पुनश्च – जैसा ही समय मिलेगा, मैं मदर चर्च को पत्र लिखूँगा। सैम तथा बहन लॉक को मेरा प्यार कहना।