स्वामी विवेकानंद के पत्र – खेतड़ी के महाराज को लिखित (नवम्बर, 1898)
(स्वामी विवेकानंद का खेतड़ी के महाराज को लिखा गया पत्र)
मठ, बेलूड़
हावड़ा जिला
(?) नवम्बर, १८९८
महाराज,
आप तथा कुमार साहब का स्वास्थ्य अच्छा जानकर प्रसन्न हूँ। जहाँ तक मेरे स्वास्थ्य का प्रश्न है, मेरा हृदय कमजोर हो गया है। मैं नहीं समझता कि जलवायु परिवर्तन से कोई लाभ होगा। क्योंकि पिछले चौदह वर्षों से मैं लगातार तीन महीने तक कहीं ठहरा होऊँ – मुझे याद नहीं। मेरा ख्याल है कि यदि कई महीने तक एक ही स्थान पर रहने का संयोग सम्भव हो, तो इससे कुछ लाभ हो सकता है। बहरहाल, मुझे इसकी चिन्ता नहीं। जो भी हो, मुझे लगता है कि मेरा इस जीवन का ‘कार्य’ समाप्त हो गया है। अच्छे और बुरे, सुख और दुःख की धारा में मेरी जीवन-नौका थपेड़े खाती हुई अब तक चली। एक बड़ी शिक्षा जो मुझे मिली है, वह यह कि जीवन दुःख के सिवा और कुछ नहीं है। माँ ही जानती है कि क्या अच्छा है। हम सभी कर्म के हाथों में हैं – उसी के आदेशानुसार हम चलते हैं – अस्वीकार नहीं कर सकते। जीवन में एक ही तत्व है – जो किसी भी कीमत पर अमूल्य है – वह है प्रेम। अनन्त प्रेम! असीम आकाश जैसा विस्तीर्ण, समुद्र की भँति गम्भीर; जीवन का यह एक महान् लाभ है। इस तत्व को प्राप्त करने वाला सौभाग्यवान है।
आपका,
विवेकानन्द