स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी अल्बर्टा स्टारगीज को लिखित (8 जुलाई, 1895)
(स्वामी विवेकानंद का कुमारी अल्बर्टा स्टारगीज को लिखा गया पत्र)
१९ पश्चिम ३८, न्यूयार्क,
८ जुलाई, १८९५
प्रिय अल्बर्टा,
अवश्य ही तुम अपने संगीत सम्बन्धी अध्ययन में तल्लीन होगी। आशा है, तुमने सरगम के सम्बन्ध में सब कुछ जान लिया है। अब अगली बार मिलने पर मैं
तुमसे सप्तकों के सम्बन्ध में कुछ सीखूँगा।
पर्सी में श्री लेगेट के साथ समय बड़े आनन्द में बीता। क्या उन्हें सन्त न कहें?
मुझे विश्वास है कि होलिस्टर भी जर्मनी का खूब आनन्द ले रहा है और आशा है, तुम लोगों में से किसीने जर्मन शब्दों – विशेषतः sch, tz, tsz से प्रारम्भ होनेवाले शब्दों तथा अन्य मधुर शब्दों के उच्चारण से अपनी जीभ छलनी नहीं की होगी।
मैने जहाज में लिखा हुआ तुम्हारा पत्र तुम्हारी माता जी को सुना दिया। बहुत सम्भव है कि मैं आगामी सितम्बर में यूरोप जाऊँ। अभी तक मुझे यूरोप जाने का अवसर नहीं मिला। आख़िर वह संयुक्त राज्य से बहुत भिन्न न होगा और अब तो मैं इस देश के रहन-सहन और रीति-रिवाज में पूर्ण अभ्यस्त हो चुका हूँ।
पर्सी में हम लोगों ने नाव खेने का बहुत आनन्द उठाया और मैने नाव खेने की एक-दो बातें सीखीं। कुमारी जो जो को अपनी मधुरता का मूल्य चुकाना पड़ा,क्योंकि मक्खियों और मच्छरों ने उन्हें क्षण भर के लिए भी नहीं छोड़ा। उन्होंने मुझे काफी तरह दी, शायद इसलिए कि वे अति कट्टर सब्बाटेरियन मक्खियाँ थीं और एक गैर-ईसाई को कभी भी स्पर्श नहीं कर सकती थीं। मैं सोचता हूँ कि पर्सी में मैं फिर बहुत गाने लगा और अवश्य ही इसने उन्हें डरा दिया होगा। भोजपत्र के वृक्ष बड़े सुन्दर थे। मेरे मन में उनकी छाल से पुस्तकें बनाने का विचार आया, जैसा प्राचीन काल में मेरे देश में रिवाज था और तुम्हारी माता जी तथा चाची जी के लिए संस्कृत श्लोकों की रचना की।
अल्बर्टा, मुझे विश्वास है कि तुम शीघ्र ही अति महान् विदुषी नारी बनोगी।
तुम दोनों के लिए प्रेम और आशीर्वाद।
तुम्हारा चिर स्नेही,
स्वामी विवेकानन्द