स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखित (3 दिसम्बर, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखा गया पत्र)
ग्रेकोट गार्डन्स,
वेस्टमिनिस्टर एस. डब्ल्यू. लन्दन,
३ दिसम्बर, १८९६
प्रिय ‘जो’,
तुम्हारे कृपापूर्ण निमंत्रण के लिए अनेक धन्यवाद। किन्तु, प्रिय जो-जो प्यारे भगवान् ने यह विधान किया है कि मुझे १६ तारीख को कप्तान तथा श्रीमती सेवियर एवं श्री गुडविन के साथ भारत के लिए प्रस्थान करना है। सेवियर दम्पत्ति मेरे साथ नेपुल्स में स्टीमर पर सवार होंगे। चूँकि चार दिन रोम में रुकना है, इसलिए मैं अल्बर्टा से विदा लेने जाऊँगा।
यहाँ अब कुछ चहल-पहल शुरू हो गयी है; ३९, विक्टोरिया के बड़े हाल में कक्षा लगती है, जो भर गयी है, फिर भी और लोग कक्षा में शामिल होना चाहते हैं।
साथ ही, उस प्राचीन भले देश की पुकार है; मुझे जाना ही है। इसलिए इस अप्रैल में रूस जाने की सभी परियोजनाओं को नमस्कार।
मैं भारत में कर्म-चक्र का प्रवर्तन मात्र कर पुनः सदा रमणीय अमेरिका तथा इंग्लैण्ड इत्यादि के लिए प्रस्थान कर दूँगा।
मेबुल का पत्र भेजकर तुमने बड़ी कृपा की – सचमुच शुभ समाचार है। केवल थोड़ा अफसोस है तो बेचारे फॉक्स के लिए। चाहे जो हो मेबुल उससे बच गयी; यह बेहतर हुआ।
न्यूयार्क में क्या हो रहा है, इसके बारे में तुमने कुछ नहीं लिखा। आशा है वहाँ सब अच्छा ही होगा। बेचारा कोला! क्या वह अब जीविकोपार्जन में समर्थ हो पाया?
गुडविन का आगमन बड़े मौके से हुआ, क्योंकि इससे व्याख्यानों का विवरण ठीक तौर से तैयार होने लगा जिसका प्रकाशन पत्रिका के रूप में हो रहा है। खर्च भर के लिए काफी ग्राहक बन गये हैं।
अगले सप्ताह तीन व्याख्यान होंगे और इस मौसम का मेरा लन्दन का कार्य समाप्त हो जायगा। यहाँ इस वक्त धूम मची है, इसलिए मेरे छोड़कर चले जाने को सभी लोग नादानी समझते हैं, परन्तु प्यारे प्रभु का आदेश है, ‘प्राचीन भारत को प्रस्थान करो। ’ मैं आदेश का पालन कर रहा हूँ।
फैंकिनसेंस, माँ, होलिस्टर तथा अन्य सबको मेरा चिर प्रेम तथा आशीर्वाद और वही तुम्हारे लिए भी।
तुम्हारा शुभाकांक्षी,
विवेकानन्द