स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती एफ० एच० लेगेट को लिखित (17 मार्च, 1900)

(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती एफ० एच० लेगेट को लिखा गया पत्र)

१७१९, टर्क स्ट्रीट,
सैन फ़्रांसिस्को,
१७ मार्च, १९००

प्रिय माँ,

मुझे ‘जो’ का एक पत्र मिला था, जिसमें उसने मुझसे काग़ज की चार चिटों पर अपना हस्ताक्षर भेज देने को कहा था ताकि श्री लेगेट मेरी ओर से बैंक में मेरा रूपया जमा कर सकें। अब शायद मैं समय पर उससे न मिल सकूँ, अतः वे चिटें मैं आपके पास भेज रहा हूँ।

मेरा स्वास्थ्य सुधर रहा है और कुछ आर्थिक प्रबन्ध भी मैं कर रहा हूँ। मैं पूर्णतया सन्तुष्ट हूँ। मुझे तनिक भी दुःख नहीं है कि अधिक लोगों ने आपके आह्वान को नहीं सुना। मैं जानता था कि वे नही सुनेंगे। पर मैं आपकी सहृदयता के लिए अनन्त रूप से आभारी हूँ। आपका, आपके स्वजनों का सदा-सर्वदा मंगल हो।

मेरी डाक को १२३१, पाईन स्ट्रीट के पते पर ‘होम ऑफ ट्रूथ’ के मार्फ़त भेजना अधिक अच्छा होगा। यद्यपि मैं इधर-उधर आता-जाता रहा हूँ, पर वह स्थान मेरा स्थायी आवास है और वहाँ के लोग मेरे प्रति अत्यन्त कृपालु हैं।

मुझे बड़ी खुशी है कि अब आप बिल्कुल ठीक हैं। श्रीमती ब्लॉजेट से मुझे सूचना मिल चुकी है कि श्रीमती मेल्टन ने लॉस एंजिलिस छोड़ दिया है। क्या वे न्यूयार्क चली गयीं? डॉ० हीलर तथा श्रीमती हीलर परसों सैन फ्रांसिस्को वापस आगये। वे स्वयं घोषित करते हैं कि श्रीमती मेल्टन ने उनकी बड़ी सहायता की। श्रीमती हीलर को आशा है कि थोड़े ही दिन में वे पूर्णतया नीरोग हो जायँगी।

यहाँ और ओकलैण्ड में मैं कई व्याख्यान दे चुका हूँ। ओकलैण्ड के व्याख्यानों से अच्छी आमदनी हो गयी। सैन फ़्रांसिस्को में पहले सप्ताह तो ख़ास आमदनी नहीं हुई, पर इस सप्ताह हुई। आशा है अगले सप्ताह भी आमदनी हो जायगी। श्री लेगट द्वारा वेदान्त सोसाइटी के लिए किये गये प्रबन्ध की बात सुनकर मुझे ख़ुशी हुई। वे कितने भले हैं!

सस्नेह आपका,
विवेकानन्द

पुनश्च – क्या आप तुरीयानन्द के विषय में कुछ जानती हैं? क्या वे बिल्कुल अच्छे हो गये?

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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