स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती इन्दुमती मित्र को लिखित (15 नवम्बर, 1897)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती इन्दुमती मित्र को लिखा गया पत्र)
लाहौर,
१५ नवम्बर, १८९७
कल्याणीया,
माँ, यह अत्यन्त दुःख का विषय है कि इच्छा होने पर भी अब की बार सिन्ध जाकर तुम लोगों से मिलना सम्भव न हो सका। पहला कारण यह है कि कैप्टन तथा श्रीमती सेवियर जो कि इंग्लैण्ड से यहाँ आकर आज प्रायः नौ महीने से मेरे साथ घूम रहे हैं, देहरादून में जमीन खरीदकर एक अनाथालय स्थापित करने के लिए विशेष उत्सुक हैं। उनका विशेष आग्रह है कि मैं वहाँ जाकर उक्त कार्य प्रारम्भ करूँ – इसलिए देहरादून गए बिना मेरा छुटकारा नहीं है।
दूसरा यह है कि मूत्राशय में गड़बड़ी हो जाने के कारण मुझे अपने जीवन पर भरोसा नहीं है। मैं अभी भी यह चाहता हूँ कि कलकत्ते में एक मठ स्थापित हो, किन्तु उसकी कुछ भी व्यवस्था मैं नहीं कर पाया हूँ। साथ ही देशवासियों ने, इससे पूर्व हमारे मठ में जो सहायता प्रदान करते थे, वह भी बन्द कर दी है। उनका ख्याल है कि इंग्लैण्ड से पर्याप्त मात्रा में धन लेकर मैं लौटा हूँ!! इतना ही नहीं, इस वर्ष श्रीरामकृष्ण महोत्सव तक होना नितान्त कठिन है, क्योंकि विलायत हो आने के कारण रासमणि के उत्तराधिकारी मुझे बगीचे में नहीं जाने देंगे!! अतः राजपूताना आदि स्थलों में मेरे जो दो-चार मित्र हैं, उनसे मिलकर कलकत्ते में अपना एक केन्द्र निर्माण करने के लिए आप्राण प्रयास करना मेरा प्रथम कर्तव्य है। इन सब कारणों से नितान्त दुःख के साथ इस समय सिन्ध-यात्रा स्थगित करनी पड़ी। राजपूताना तथा काठियावाड़ होकर लौटते समय जाने का विशेष प्रयास करूँगा। तुम दुःखित न होना। एक दिन के लिए भी मैं तुम लोगों को नहीं भूला हूँ, किन्तु कर्तव्य पालन करना पहले उचित है। कलकत्ते में एक मठ स्थापित हो जाने पर मैं निश्चिन्त हो जाऊँगा। तभी मुझे यह भरोसा हो सकता है कि जीवन भर दुःख-कष्ट उठाकर मैंने जो कुछ कार्य किया है, मेरे शरीरान्त के बाद वह समाप्त नहीं हो जायगा। आज ही देहरादून रवाना हो रहा हूँ – वहाँ पर सात-एक दिन रहने के बाद राजपूताना और फिर वहाँ से काठियावाड़ आदि जाने का विचार है।
साशीर्वाद तुम्हारा,
विवेकानन्द