स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (27 दिसम्बर, 1899)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
९२१ पश्चिम, २१वाँ रास्ता,
लॉस एंजिलिस,
२७ दिसम्बर, १८९९
प्रिय धीरा माता,
आगामी नववर्ष आपके लिए शुभ हो एवं इसी प्रकार से अनेक बार होता रहे – मेरी यही अभिलाषा है। मेरा स्वास्थ्य पहले की अपेक्षा बहुत कुछ अच्छा है तथा कार्य करने लायक यथेष्ट शक्ति भी मुझे प्राप्त हो गयी है। अब मैंने कार्य भी प्रारम्भ कर दिया है तथा सारदानन्द को कुछ रुपये – १३०० रुपये – कानूनी कार्यवाही के लिए भेज दिये हैं। आवश्यकता पड़ने पर और भी भेज दूँगा। तीन सप्ताह से सारदानन्द का कोई समाचार नहीं मिला है; और आज सूर्योदय से पूर्व मैंने एक दुःस्वप्न देखा है। मैं बीच में बेचारे बालकों के साथ न जाने कितना कठोर व्यवहार करता हूँ! फिर भी ऐसे आचरणों के बावजूद भी वे यही जानते हैं कि मैं ही उनका सर्वोत्तम मित्र हूँ।
‘राजयोग एवं महाराज खेतड़ी के द्वारा प्राप्त जो ५०० पौण्ड से कुछ अधिक रकम मैंने स्टर्डी के पास रख छोड़ी थी, वह श्री लेगेट पा चुके हैं। अब श्री लेगेट के पास मेरे करीब एक हजार डालर हो गये हैं। यदि मैं मर जाऊँ, तो कृपया यह रकम मेरी माँ के पास भेज दीजियेगा। तीन सप्ताह पूर्व मैंने उनको ‘तार’ द्वारा यह सूचित कर दिया है कि मैं अब सम्पूर्णरूप से स्वस्थ हो चुका हूँ। मुझे यदि और अधिक अस्वस्थ न होना पड़े, तो जैसा स्वास्थ्य इस समय है, उसी से कार्य चलता रहेगा। मेरे लिए आप कतई चिन्तित न हों; पूर्ण उद्यम के साथ मैं कार्य में जुट गया हूँ।
मुझे दुःख है कि मैं अन्य कोई कहानी नहीं लिख सका हूँ। उसके अलावा मैंने और भी कुछ कुछ लिखा है एवं प्रतिदिन ही कुछ लिखने की आशा रखता हूँ। पहले की अपेक्षा इस समय मैं अधिक शान्ति का अनुभव कर रहा हूँ तथा यह समझ गया हूँ कि इस शान्ति को स्थायी बनाये रखने का एकमात्र उपाय दूसरों को शिक्षा प्रदान करना है। कार्य ही मेरे लिए एकमात्र ‘सेफ्टी वाल्व’ (व्यर्थ गैस निकाल कर यन्त्र की रक्षा करने का द्वार) है। मुझे कुछ परिष्कृत मस्तिष्कवाले व्यक्तियों की आवश्यकता है, जो कि उद्यम से कार्य करने के साथ ही साथ मेरे आनुषंगिक समस्त विषयों की भी देखभाल कर सकें। भारत में ऐसे लोगों की खोज के लिए बहुत समय नष्ट होने का मुझे डर है; और यदि ऐसे लोग वहाँ प्राप्त भी हों, तो उन्हें किसी पाश्चात्यवासी से शिक्षा लेना उचित है। साथ ही मेरे लिए कार्य सम्पन्न करना तभी सम्भव होता है, जब कि मुझे पूर्णतया अपने ही पैरों पर खड़ा होना पड़ता है। एकाकी अवस्था में मेरी शक्ति का विकास अधिक होता है। माँ की इच्छा भी मानों ऐसी ही है। ‘जो’ का यह विश्वास है कि माँ के हृदय में अनेक बड़ी बड़ी योजनाएँ हैं – मैं चाहता हूँ कि उसकी धारणा सत्य हो। ‘जो’ तथा निवेदिता मानो वास्तव में भविष्यद्रष्टा बनती जा रही हैं। मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि मैंने अपने जीवन में जो कुछ कष्ट उठाये हैं, जो कुछ यातनाएँ सही हैं – वे सब आनन्दपूर्ण आत्मत्याग में परिणत होंगी, यदि माँ पुनः भारत की ओर दृष्टिपात करें।
कुमारी ग्रीनस्टिडल ने मुझे एक अत्यन्त सुन्दर पत्र लिखा है – उनका अधिकांश भाग आप से सम्बन्धित है। तुरीयानन्द के बारे में उनकी धारणा भी उच्च है। तुरीयानन्द से मेरा प्यार कहें। मुझे विश्वास है कि वह अच्छी तरह से कार्य सम्पादन कर सकेगा। उसमें साहस तथा धैर्य है।
मैं शीघ्र कार्य करने के लिए कैलिफोर्निया जा रहा हूँ। कैलिफोर्निया छोड़ते समय तुरीयानन्द को मैं वहाँ पर बुला लूँगा और उसे प्रशान्त महासागर के किनारे पर कार्य में जुटा दूँगा। मेरी यह निश्चित धारणा हैं कि वहाँ एक विशाल कार्यक्षेत्र है। ‘राजयोग’ नामक पुस्तक यहाँ पर बहुत ही प्रचलित है, ऐसा भान होता है। कुमारी ग्रीनस्टिडल को आपके मकान में बहुत शान्ति मिली है, एवं वे आनन्द पूर्वक हैं। इससे मुझे अत्यन्त खुशी हुई। दिनोंदिन सब विषयों में उन्हें सुविधा प्राप्त हो। उनमें अपूर्व कार्यदक्षता तथा उद्यम है।
‘जो’ ने एक महिला-चिकित्सक का आविष्कार किया; वे शरीर मलकर चिकित्सा करती हैं। हम दोनों ही उनके चिकित्साधीन हैं। ‘जो’ का यह ख्याल है कि उन्होंने मुझे बहुत कुछ चंगा कर दिया है। और उसका खुद का भी यह दावा है कि उस पर भी चिकित्सा का अलौकिक प्रभाव हुआ है। विचित्र चिकित्सा के फलस्वरूप अथवा कैलिफोर्निया के ‘वजन’ (र्दैदहा) के कारण या वर्तमान ग्रहदशा दूर हो जाने की वजह से, चाहे जो भी कुछ कारण हो, मैं स्वस्थ हो रहा हूँ। भरपेट भोजन के बाद तीन मील पैदल घूमना निस्सन्देह एक बहुत बड़ी बात है!
ओलिया को मेरा हार्दिक स्नेह तथा आशीर्वाद दें तथ डा. जेम्स एवं वोस्टन के अन्यान्य बन्धुओं से मेरा प्यार कहें।
आपकी चिरसन्तान,
विवेकानन्द