स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (4 सितम्बर, 1899)

(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)

रिजले मॅनर,
४ सितम्बर, १८९९

प्रिय माँ,

इधर पिछले छः महीनों से मैं भाग्य के दुश्चक्र की चरमावस्था में रहा हूँ। जहाँ कहीं भी जाता हूँ दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ता। लगता है कि इंग्लैण्ड में स्टर्डी अपने काम से ऊब गया है, हम भारतीयों में वह कोई तपस्विता नहीं पा रहे हैं। यहाँ ज्यों ही मैं पहुँचता हूँ, ओलिया को तेज दौरा हो जाता है।

क्या मैं आपके पास शीघ्र पहुँच जाऊँ? मैं जानता हूँ कि मैं आपकी कुछ अधिक सहायता नहीं कर पाऊँगा, परन्तु अधिक से अधिक उपयोगी हो सकने का प्रयत्न करूँगा।

आशा है कि आपका सब कुछ शीघ्र ही ठीक हो जायेगा और इस पत्र के पहुँचने के पहले ही ओलिया पूर्णरूप से स्वस्थ हो जायेगी। ‘माँ’ को सब विदित है। मेरे विषय में यही सब कुछ है।

सतत सस्नेह, भवदीय,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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