स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (5 जून, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
६३, सेंट जार्जेस रोड,
लन्दन, दक्षिण-पश्चिम,
५ जून, १८९६
प्रिय श्रीमती बुल,
‘राजयोग’ पुस्तक की बहुत बिक्री हो रही है। सारदानन्द शीघ्र ही अमेरिका जा रहा है।…
मेरे पिता जी यद्यपि वकील थे, फिर भी मेरी यह इच्छा नहीं है कि कोई जिसे मैं प्यार करता हूँ, वकील बने। मेरे गुरूदेव इसके विरोधी थे एवं मेरा भी यह विश्वास है कि जिस परिवार के कुछ लोग वकील हों, उस परिवार में अवश्य ही कुछ न कुछ गड़बड़ी होगी। हमारा देश वकीलों से छा गया है – प्रतिवर्ष विश्वविद्यालयों से सैकड़ों वकील निकल रहे हैं। हमारी जाति के लिए इस समय कर्मतत्परता तथा वैज्ञानिक प्रतिभा की आवश्यकता है। इसलिए मेरी इच्छा है कि ‘म’ – इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बने। यदि कदाचित् सिद्धिलाभ न भी हो, तो भी उसने बड़े बनने की तथा देशवासियों के यथार्थ उपकार करने की चेष्टा की – इतना जानकर भी मुझे सन्तोष होगा।… अमेरिका के वायुमण्डल में ही एक ऐसा गुण है कि वहाँ के प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर जो कुछ अच्छा अंश है, उसे विकसित कर देता है।… मैं चाहता हूँ कि वह निडर तथा साहसी बने एवं अपने तथा अपनी जाति के लिए कोई नवीन मार्ग आविष्कार करने के लिए यथासाध्य प्रयत्न करे। इलेक्ट्रिकल इंजीनियर भारत में बिना विशेष प्रयास के अपना जीवन निर्वाह कर सकता है।
सप्रेम आपका,
विवेकानन्द
पुनश्च – गुडविन अमेरिका से एक मासिक पत्र प्रकाशित करने के सम्बन्ध में तुम्हें इस डाक से एक पत्र भेज रहा है। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कार्य को जारी रखने के लिए इस प्रकार का कोई आयोजन करना आवश्यक है। जिस रूप से वह कार्य करना चाहता है, मैं भी उसी रूप से उसमें सहायता प्रदान करने की यथासाध्य चेष्टा करूँगा।… मैं समझता हूँ कि सम्भवतः सारदानन्द के साथ जाने को प्रस्तुत है।