स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट को लिखित (24 मई, 1894)

(स्वामी विवेकानंद का प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट को लिखित)

५४१, डियरबोर्न एवेन्यू, शिकागो,
प्रिय अध्यापक जी,
२४ मई, १८९४

मैं खेतड़ी के महाराजा का एक पत्र आपके पास भेज रहा हूँ जो राजपूताना के वर्तमान सत्तागढ़ राजाओं में अन्यतम हैं। दूसरा पत्र वर्तमान अफीम कमिश्नर से है जो भारत के बड़े राज्यों में से एक जूनागढ़ के भूतपूर्व दीवान रहे हैं और जिन्हें भारत का ग्लैडस्टोन कहा जाता है। इनसे, मैं आशा करता हूँ आपको विश्वास हो जायेगा कि मैं प्रतारक नहीं हूँ।

एक बात मैं आपको बताना भूल गया। मैंने श्री मजूमदार के दल के प्रमुख1 के साथ कभी घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं स्थापित किया था। अगर वे ऐसा कहते हैं, तो वे सत्य नहीं कहते।

आशा है आप कृपया सुविधानुसार पत्रों को देखने के पश्चात् मुझे लौटा देंगे। पुस्तिका की मुझे कोई आवश्यकता नहीं है, मैं उसका कोई मूल्य नहीं देता।

मेरे प्रिय मित्र, मैं इस बात के लिए आपको हर प्रकार से सन्तुष्ट करने के लिए बाध्य हूँ कि मैं एक सच्चा सन्यासी हूँ, लेकिन सिर्फ आपको ही। लोग मेरे बारे में क्या कहते और सोचते हैं, इसकी चिंता मुझे नहीं है।

“कोई तुम्हें संत कहेगा, कोई चांडाल, कोई पागल कहेगा और कोई दानव! अतः सबकी अनसुनी करके सीधे अपना कार्य करते रहो।” यह भारत के एक प्राचीन संन्यासी, राजा भर्तृहरि का कथन है, जिन्होंने प्राचीन काल में संन्यास ग्रहण किया था।

प्रभु आपको सदा प्रसन्न रखें। बच्चों के लिए मेरा प्यार एवं आपकी महीयसी धर्मपत्नी के लिए मेरी श्रद्धा।

आपका चिरंतन मित्र,
विवेकानन्द

पुनश्च – पंडित शिवनाथ शास्त्री के दल से मेरा सम्बन्ध था – केवल सामाजिक सुधार की कुछ बातों को लेकर। एम. – और सी. – एस. – को मैंने कभी सच्चा नहीं माना और कोई कारण नहीं है कि मैं अपनी राय अब भी बदलूँ। धार्मिक बातों में मेरा अपने मित्र पंडित जी से काफी मतभेद रहा। मतभेद की मुख्य बात यह थी कि मैं संन्यास (संसार का त्याग) को सर्वोच्च आदर्श कहता था, और वे उसे पाप मानते थे। इस प्रकार ब्राह्म समाजी संन्यासी होना पाप मानते हैं!!

आपका ही,
वि.

ब्राह्म समाज का प्रचार, आपके देश के ईसाई विज्ञान (Christian Science) की तरह, कुछ समय तक कलकत्ते में हुआ, लेकिन बाद में समाप्त हो गया। इसकी समाप्ति पर न तो मुझे हर्ष ही है और न विषाद ही। इसने अपना कार्य किया – समाज-सुधार का कार्य। उसका धर्म एक कौड़ी का भी नहीं था और वह मरता ही। अगर एम. – यह सोचते हैं कि उसकी मृत्यु का कारण मैं हूँ, तो वह उनकी भूल है। उन सुधारों के प्रति तो मेरी अभी भी पूर्ण सहानुभूति है; पर प्राचीन ‘वेदान्त’ के आगे यह मूढ़ धर्म ठहर नहीं सका। मैं क्या कर सकूँगा? इसमें मेरा दोष क्या है? एम. – अपनी वृद्धावस्था में बच्चे हो गये हैं, और जो ढंग उन्होंने अपनाया है, वह ठीक वैसा ही है, जैसा आपके कुछ मिशनरी लोग अपनाते हैं। प्रभु उनका कल्याण करें और उन्हें सन्मार्ग दिखलायें।

आपका ही,
विवेकानन्द

आप एनिस्क्वाम कब जा रहे हैं? बाइम और ऑस्टिन को मेरा प्यार। आपकी पत्नी को मेरा अभिवादन,और आपके प्रति मेरा प्रेम एवं आभार तो अकथनीय है।

आपका चिर स्नेही,
विवेकानन्द


  1. प्रत्यक्षतः, केशवचन्द्र सेन ।

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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