स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखित (11 जुलाई, 1894)

(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)

संयुक्त राज्य अमेरिका,
११ जुलाई, १८९४

प्रिय आलासिंगा,

५४१, डियरबोर्न एवेन्यू, शिकागो के अलावा और कहीं भी तुम मुझे कभी भी पत्र न भेजना। तुम्हारा आखिरी पत्र सारे देश का चक्कर लगाकर फिर मेरे पास पहुँचा और यह भी इसलिए कि यहाँ पर सभी लोग मुझे अच्छी तरह जानते हैं। सभा के प्रस्ताव की कुछ प्रतिलिपियाँ डॉ. बरोज को भेजना, साथ ही मेरे प्रति किये गये सदय व्यवहार के लिए उन्हें धन्यवाद देकर एक पत्र भी लिखना तथा अमेरिका की पत्रिकाओं में यह समाचार प्रकाशित करने के लिए उनसे अनुरोध करना; इससे मिशनरी लोग मुझ पर यह जो मिथ्या लांछन लगा रहे हैं कि मैं किसी का प्रतिनिधि नहीं हूँ, उसका समुचित खंडन हो जायेगा। मेरे बच्चे, कार्य किस तरह करना चाहिए, इस बात की शिक्षा ग्रहण करो! अभी हमें बड़े-बड़े काम करने हैं। गत वर्ष मैंने केवल बीज बोया था, इस वर्ष मैं फसल काटना चाहता हूँ। इस अरसे में भारत में जहाँ तक हो सके, उत्साह की भावना को शिथिल न होने दो। किडी को उसके अपने रास्ते पर चलने दो, समय आने पर वह ठीक रास्ते पर आ जायेगा। मैंने उसका जिम्मा ले रखा है। अपने रास्ते पर चलने की उसे पूर्ण स्वतन्त्रता है। उसे पत्रिका में लिखने के लिए कहो, इससे उसका मन ठीक रहेगा। उससे मेरा आशीर्वाद कहना।

पत्रिका का शुभारम्भ करो – मैं बीच-बीच में लेखादि भेजता रहूँगा। बोस्टन के हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्यापक जे. एच. राइट को प्रस्ताव की एक प्रतिलिपि भेजना, साथ ही पत्र में इस बात का उल्लेख कर उन्हें धन्यवाद देना कि वे ही अमेरिका में सर्वप्रथम व्यक्ति हैं, जिन्होंने मुझे मित्र के रूप में ग्रहण किया था तथा उनसे यह समाचार पत्रिकाओं में प्रकाशित करने के लिए भी अनुरोध करना। इससे मिशनरी झूठे साबित हो जायेंगे। डिट्रॉएट के भाषण में मुझे ९०० डालर अर्थात् २७०० रुपये मिल हैं। अन्य भाषणों में से एक में एक घण्टे के अन्दर मैंने २५०० डालर अर्थात् ७५०० रुपये कमाये, परन्तु मुझे सिर्फ २०० डालर ही मिले। एक दगाबाज भाषण कम्पनी ने मुझे धोखा दिया था। अब मैंने उनका साथ छोड़ दिया है। यहाँ पर मैंने बहुत सारा खर्च किया है। सिर्फ ३००० डालर के लगभग बचे हैं।

आगामी वर्ष मुझे बहुत कुछ छपवाना है। अब मेरा विचार नियमित रूप से कार्य करने का है। कलकत्ते में यह लिख देना कि मेरे तथा मेरे कार्य के बारे में वहाँ की पत्रिकाओं में जो भी कुछ प्रकाशित हो, उसे वे लोग यहाँ भेजते रहें। तुम भी एक आन्दोलन जारी रखो। एकमात्र ‘इच्छा-शक्ति’ के द्वारा सब कुछ हो जायेगा। पत्रिका प्रकाशन के तथा अन्य खर्चों के लिए तुम लोगों को बीच-बीच में पैसे भेजने की मैं चेष्टा करूँगा। एक समिति को संगठित करो, जिसके अधिवेशन नियमित रूप से होते रहें। और जहाँ तक हो सके, इसके बारे में मुझे लिखते रहो। मैं भी नियमित रूप से कार्य करने का प्रयास कर रहा हूँ। इस वर्ष अर्थात् आगामी जाड़े में मुझे काफी रुपये जुटाने ही पड़ेंगे – इसलिए तब तक मैं इंतजार करूँगा। तुम आगे बढ़ते रहो। श्री पॉल केरस को भी एक पत्र देना, यद्यपि वे मेरे मित्र ही हैं, फिर भी हम लोगों के लिए उनसे काम कराने की चेष्टा करना। वस्तुतः तुम से जितना ही सके आन्दोलन शुरू कर दो। सिर्फ झूठ से बचो। काम में लग जाओ, मेरे बच्चों, उत्साहाग्नि तुममें स्वयं प्रज्वलित हो उठेगी। श्रीमतीजी. डब्ल्यू. हेल मेरी परम हितैषिणी हैं – मैं उनको माता तथा उनकी कन्याओं को भगिनी कहता हूँ। उनको भी प्रस्ताव की एक प्रतिलिपि भेज देना तथा अपनी ओर से एक पत्र लिखकर उन्हें धन्यवाद देना। संगठन की शक्ति का हमारी प्रकृति में पूर्णतया अभाव है, उसका विकास करना होगा। इसका सबसे बड़ा रहस्य है – ईर्ष्या का अभाव होना। अपने भाइयों के विचारों को मान लेने के लिए सदैव प्रस्तुत रहो और उनसे हमेशा मेल बनाये रखने की कोशिश करो। यही सारा रहस्य है। बहादुरी से लड़ते रहो। जीवन क्षणस्थायी है। इसे एक महान् उद्देश्य के लिए समर्पित कर दो।

नरसिंह के सम्बन्ध में तुम मुझे कुछ भी लिखते क्यों नहीं हो? वह तो करीबकरीब भूखों ही मर रहा है। मैंने उसे कुछ दिया था, फिर वह कहीं चला गया, न मालूम कहाँ, और वह पत्र भी नहीं लिखता। अक्षय एक अच्छा लड़का है, उसके प्रति मेरा विशेष स्नेह है। थियोसॉफिस्टों के साथ विवाद करने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं तुम्हें जो कुछ लिखता हूँ, उनसे जाकर न कहना। मूर्ख, क्या तुम्हें मालूम है कि थियोसॉफिस्ट् ही हमारे पथिकृत हैं? जार्ज१ हिन्दू हैं और कर्नल ऑल्कट बौद्ध हैं। जार्ज यहाँ के योग्यतम व्यक्ति हैं। हिन्दू थियोसॉफिस्टों से जार्ज का समर्थन करने के लिए कहना। तुम उन्हें एक सम-धर्मावलम्बी होने के नाते हिन्दू धर्म को अमेरिका के लोगों के आगे उपस्थापित करने के लिए धन्यवाद देकर एक पत्र भी लिखोगे तो उनका हृदय प्रफुल्लित हो उठेगा। किसी सम्प्रदाय विशेष में हम सम्मिलित नहीं होंगे लेकिन प्रत्येक सम्प्रदाय के प्रति हमारी सहानुभूति रहेगी तथा हम सबके साथ मिल-जुलकर काम करेंगे।

यह स्मरण रखना कि मैं इस समय बराबर भ्रमण कर रहा हूँ इसलिये ५४१ डियरबोर्न एवेन्यू, शिकागो मेरा प्रधान केन्द्र है। सदा इसी पते पर मुझे पत्र लिखना तथा भारत में जो कुछ हो रहा है, उसका पूरा-पूरा विवरण मुझे भेजते रहना, साथ ही पत्रिकाओं में हम लोगों के सम्बन्ध में जो भी कुछ प्रकाशित हो उसका कोई भी अंश, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, मुझे भेजने में किसी प्रकार की भूल न करना। जी. जी. का एक सुन्दर पत्र मुझे मिला है – प्रभु ऐसे सुन्दर, सच्चरित्र युवकों का कल्याण करें। बालाजी, सेक्रेटरी तथा हमारे अन्य बन्धुओं से मेरा प्यार कहना। निरन्तर कार्य करते रहो, अपने प्रेम के द्वारा सब पर विजय प्राप्त करो। मैंने मैसूर के राजा साहब को एक पत्र लिखा है तथा कुछ फोटो भेजे हैं। आशा है, अब तक तुम लोगों को मेरे भेजे हुए फोटो मिल गये होंगे। रामनाड के राजा को एक उपहार में दे देना। उन्हें प्रभावित करने का जहाँ तक हो सके, प्रयास करते रहना। खेतड़ी के साथ सदा पत्र-व्यवहार करते रहना। कार्य-क्षेत्र के विस्तार के लिए प्रयत्न करते रहो। यह ध्यान रखना कि गति तथा उन्नति ही जीवन के चिह्न हैं।

तुम्हारा पत्र मिलने में विलम्ब होने के कारण मैं प्रायः निराश हो चुका था, अब पता चला कि तुम्हारी निर्बुद्धिता ही इसका एकमात्र कारण है। बात यह है कि मैं बराबर भ्रमण कर रहा हूँ, इसलिए चिट्ठियों को मुझे ढूँढ़ निकालना पड़ता है। फिर याद रखो कि सभी कार्य आधिकारिक ढंग पर होना आवश्यक है। जो प्रस्ताव सभा में स्वीकृत हो चुके हों, उनको शिकागो धर्म-महासभा के सभापति, डॉ. जे. एच. बरोज को अवश्य भेजो तथा उनसे इसे, तथा उन पेपरों और चिट्ठियों को समाचार-पत्रों में प्रकाशनार्थ अनुरोध करो।

डॉ. बरोज से तथा डॉ. पॉल केरस से भी, ये अनुरोध अधिकारिक होंगे। विश्वमहामेला के सभापति मिशिगन के डेट्रायट शहर के सेनेटर पामर को भी प्रस्तावों की एक प्रतिलिपि भेजो – मुझ पर उनकी बड़ी दया रही है। इस प्रकार का एक पत्र तथा प्रस्ताव की प्रतिलिपि डेट्रायट के वाशिंगटन ऐवन्यू की श्रीमती जे. जे. बैग्ली के पते पर भेजो तथा उनसे भी उसे पत्रिकाओं में प्रकाशित करने के लिए अनुरोध करो। पत्रिकाओं में प्रकाशनार्थ भेज देना कोई बड़ी बात नहीं है, असलियत यह है कि उन्हें बाकायदे डॉ. बरोज जैसे आधिकारिक व्यक्तियों के माध्यम से आने चाहिए। तभी वे प्रामाणिक माने जायेंगे। डॉ. बरोज के पास उन्हें भेज देना तथा उनसे उन्हें समाचार-पत्रादि में छपवाने के लिए अनुरोध करना यही सबसे अधिकारिक तरीका है। मैं यह सब इसलिए लिख रहा हूँ कि मेरा ख्याल है विदेशी राष्ट्रों की कार्यप्रणाली से तुम परिचित नहीं हो। अब अगर कलकत्ते के बड़े बड़े लोगों के नामों के साथ ऐसे प्रस्तावादि आने लगें, तो फिर मुझे, जैसे अमेरिका के लोग कहते हैं, ‘बूम’ (boom) मिलने लगेगा और इससे मुझे अत्यधिक सहायता मिलने लगेगी। तब यहाँ के लोगों को भी यह विश्वास हो जायगा कि मैं यथार्थ में हिन्दुओं का ही प्रतिनिधि हूँ और तभी वे अपनी गाँठ से पैंसे निकालेंगे। धैर्य के साथ लगे रहो। अब तक हम लोगों ने बड़ा ही अद्भुत कार्य किया है। वीरों, बढ़े चलो, निश्चित हम विजयी होंगे। मद्रास की पत्रिका का क्या हुआ? संगठित होकर सभा-समिति स्थापित करते रहो – काम में जा लगो – यही एकमात्र उपाय है। किडी से लेख लिखाओ, इसी से उसका मिजाज ठीक रहेगा। इस समय भाषण अधिक नहीं देना है, अतः अब मैं लिखना शुरू करूँगा यद्यपि सर्वदा ही मुझे कठिन कार्यों में लगा रहना पड़ेगा, किन्तु जाड़े की ऋतु आने पर लोग जब अपने घर लौटेंगे, तक पुनः मैं भाषण देना शुरू करूँगा तथा इस बार सभा-समिति स्थापित करने में जुट जाऊँगा।

खूब परिश्रम करते रहो तथा पवित्र एवं शुद्ध बनो – उत्साहग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो उठेगी।

शुभाकांक्षी,
विवेकानन्द

पुनश्च – सबको मेरा प्यार तथा आशीर्वाद कहना। मैं किसी को कभी भूलता नहीं हूँ, सिर्फ बड़ा कर्मव्यस्त हूँ। तुम मुझे अपना ट्रिप्लिकेन का पता अथवा यदि कोई सभा-समिति स्थापित की हो, तो उसका पता लिखना।

वि.

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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