स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखित (14 मई, 1895)
(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)
न्यूयार्क,
१४ मई, १८९५
प्रिय आलासिंगा,
तुम्हारी भेजी हुई पुस्तकें सकुशल आ पहुँची हैं, इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीघ्र ही मैं तुम्हें कुछ रुपये भेज सकूँगा – यद्यपि यह राशि कुछ एक सौ से अधिक नहीं, फिर भी यदि मै जीवित रहा, तो समय समय पर कुछ भेजता रहूँगा।
न्यूयार्क में अब मेरे प्रभाव का विस्तार हो गया है; मुझे कुछ कार्यकर्ताओं के समूह की मिलने की आशा है, जो यहाँ से मेरे चले जाने पर भी कार्य करते रहेंगे। मेरे बच्चे, तुम यह देख ही रहे हो कि अखबारी हो-हल्ले कितने निरर्थक हैं। मेरे लिए जाते समय अपने कार्यों का एक स्थायी असर यहाँ छोड़ जाना आवश्यक है। प्रभु के आशीर्वाद से यह कार्य जल्दी ही होगा। यद्यपि इसे आर्थिक सफलता नहीं कहा जा सकता, फिर भी जगत् की समग्र धनराशि से ‘मनुष्य’ कहीं अधिक मूल्यवान है।
मेरे लिए तुम चिन्तित न होना – प्रभु सदा मेरी रक्षा कर रहे हैं। इस देश में मेरा आना तथा इतना परिश्रम करना व्यर्थ नहीं जायगा।
प्रभु दयालु हैं; यद्यपि यहाँ पर ऐसे अनेक व्यक्ति हैं, जिन्होंने हर तरह से मुझे चोट पहुँचाने की चेष्टा की है, किन्तु ऐसे लोग भी बहुत हैं, जो कि अन्ततः मेरे सहायक बनेंगे। अनन्त धैर्य, अनन्त पवित्रता तथा अनन्त अध्यवसाय – सत्कार्य में सफलता के रहस्य हैं।
आशीर्वादपूर्वक सदैव तुम्हारा,
विवेकानन्द