स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलसिंगा पेरूमल को लिखित (1896)
(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)
अमेरिका,
१८९६
प्रिय आलासिंगा,
गत सप्ताह मैंने तुमको ‘ब्रह्मवादिन्’ के सम्बन्ध में लिखा था। उसमें भक्ति विषयक व्याख्यानों के बारे में लिखना मैं भूल गया था। उनको एक साथ पुस्तकाकार प्रकाशित करना चाहिए। ‘गुड ईयर’ के नाम से न्यूयार्क, अमेरिका के पते पर उसकी एक सौ प्रतियाँ भेज सकते हो। मैं बीस दिन के अन्दर जहाज से इंग्लैण्ड रवाना हो रहा हूँ। कर्मयोग, ज्ञानयोग तथा राजयोग सम्बन्धी मेरी और भी बड़ी-बड़ी पुस्तकें हैं। ‘कर्मयोग’ प्रकाशित हो चुका है। ‘राजयोग’ का आकार अत्यन्त बृहत् होगा – वह भी प्रेस में पहुँच चुका है। ‘ज्ञानयोग’ सम्भवतः इंग्लैण्ड में छपवाना होगा।
तुमने ‘ब्रह्मवादिन्’ में ‘क’ का एक पत्र प्रकाशित किया है, उसका प्रकाशन न होना ही अच्छा था। थियोसॉफिस्टों ने ‘क’ की जो खबर ली है, उससे वह जल भुन रहा है। साथ ही उस प्रकार का पत्र सभ्यजनोचित भी नहीं है, उससे सभी लोगों पर छींटाकशी होती है। ‘ब्रह्मवादिन्’ की नीति से वह मेल भी नहीं खाता। अतः भविष्य में यदि कभी ‘क’ किसी सम्प्रदाय के विरुद्ध, चाहे वह कितना ही खब्ती और उद्धत हो, कुछ लिखे तो उसे नरम करके ही छापना। कोई भी सम्प्रदाय, चाहे वह बुरा हो या भला, उसके विरूद्ध ‘ब्रह्मवादिन्’ में कोई लेख प्रकाशित नहीं होना चाहिए। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि प्रवंचकों के साथ जानबूझकर सहानुभूति दिखानी चाहिए। पुनः तुम लोगों को मैं यह बतला देना चाहता हूँ कि उक्त पत्र (ब्रह्मवादिन) इतना अधिक शास्त्रीय (technical) बन चुका है कि यहाँ पर उसकी ग्राहक संख्या बढ़ने की आशा नहीं है। साधारणतया पश्चिम के लोगोंं का इतनी अधिक क्लिष्ट संस्कृत भाषा तथा उसकी बारीकियों का ज्ञान नहीं है और न उनमें जानने की इच्छा ही है। हाँ, इतना अवश्य है कि भारत के लिए वह पत्र बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। किसी मतविशेष का समर्थन किया जा रहा हो, ऐसा एक भी बात उसके सम्पादकीय लेख में नहीं रहनी चाहिए और तुम्हें यह सदा ध्यान रखना है कि तुम केवल भारत को नहीं, वरन् सारे संसार को सम्बोधित कर बातें कह रहे हो और तुम जो कुछ कहना चाहते हो, संसार उसके बारे में बिल्कुल अनजान है। प्रत्येक संस्कृत श्लोक का अनुवाद अत्यन्त सावधानी के साथ करना और जहाँ तक हो सके उसे सरल भाषा में व्यक्त करने की चेष्टा करना।
तुम्हारे पत्र के जवाब मिलने से पहले ही मैं इंग्लैण्ड पहुँच जाऊँगा। अतः मुझे पत्र का जवाब द्वारा ई. टी. स्टर्डी, हाई व्यू, कैवरशम, इंग्लैण्ड के पते पर देना।
तुम्हारा,
विवेकानन्द