स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलसिंगा पेरूमल को लिखित (23 जनवरी, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)
२३ जनवरी, १८९६
प्रिया आलासिंगा,
अब तक तुम्हें ‘भक्ति’ पर मुझसे पर्याप्त सामग्री मिल गयी होगी। २१ दिसम्बर की ‘ब्रह्मावादिन्’ की पिछली प्रति अभी मिली है। पिछले कुछ अंकों से मुझे कुछ विशिष्ट संकेत मिल रहा है। क्या तुम थियोसॉफिस्टों से संयुक्त होने जा रहे हो? अब तुम उनके हाथ में आ गये हो। तुम अपनी टिप्पणियों में क्यों थियोसॉफिस्टों के भाषणों का विज्ञापन देते हो?
उनसे (थियोंसॉफिस्टों) मेरा कोई सम्बन्ध होने का संदेह अमेरिका तथा इंग्लैण्ड के मेरे कार्यों में बहुत क्षति पहुँचायेगा, और ऐसा होना बिल्कुल सम्भव है। सभी स्वस्थ मस्तिष्क के लोग उन्हें मिथ्या समझते हैं, और उनका वैसा समझा जाना सत्य है। यह तुम भी अच्छी तरह जानते हो। मुझे भय है, तुम मुझे धोखा देना चाहते हो। क्या तुम ऐसा समझते हो कि एनी बेसन्ट का प्रचार करने से तुम्हें इंग्लैण्ड में अधिक ग्राहक मिल जायँगे? मूर्ख हो तुम।
मैं थियोसॉफिस्टों के साथ झगड़ा करना नहीं चाहता, किंतु मेरी स्थिति उनकी सर्वदा उपेक्षा करने की ही है। क्या उन लोगों ने विज्ञापन के लिए पैसे दिये थे? तुम्हें क्यों उनका विज्ञापन करने के लिए अग्रसर होना चाहिए? अब की बार जब मैं इंग्लैण्ड जाऊँगा, तो मुझे पर्याप्त से अधिक ग्राहक मिल जायेंगे।
अब कोई विश्वासघाती मेरे साथ नहीं होगा, मैं स्पष्ट कह देता हूँ कि मैं किसी दुर्जन से धोखा नहीं खाऊँगा। मेरे साथ कोई पाखंड (धूर्तता) नहीं। अपना झंडा फहराओ और अपने पत्र में सार्वजनिक सूचना दे दो कि मुझसे तुम्हारा कोई सम्बन्ध नहीं और अपने को थियोसॉफिस्टों के शिविर से संयुक्त कर लो या उनसे अपने सभी सम्बन्धों को त्याग दो। सच, मैं तुम्हें स्पष्ट शब्दों में कह रहा हूँ। एक ही आदमी मेरा अनुसरण करे, किन्तु उसे मृत्युपर्यन्त सत्य और विश्वासी होना होगा। मैं सफलता और असफलता की चिन्ता नहीं करता। पूरे विश्व में उपदेश देने जैसा अर्थहीन कार्यों से ऊब गया हूँ। जब मैं इंग्लैण्ड में था, तो क्या ‘सी – के’ आदमियों में कोई मेरी सहायता को आया था? निरर्थक! मैं अपने आंदोलन को पवित्र रखूँगा, भले ही मेरे साथ कोई न हो।
तुम्हारा,
विवेकानन्द
पुनश्च – शीघ्र अपने निर्णय का उत्तर दो। इस बात पर मैं एकदम निश्चित हूँ। अगर आरम्भ से ही तुम्हारा अभिप्राय ऐसा था, तो तुम्हें अवश्य ही पहले कह देना चाहिए था। ‘ब्रह्मवादिन्’ वेदान्त के प्रचार के लिए है, न कि थियोसॉफी के लिए। कपटी कार्यों से सामना पड़ने पर मेरा धैर्य समाप्त हो जाता है। यही संसार है कि जिन्हें तुम सबसे अधिक प्यार और सहायता करो, वे ही तुम्हें धोखा देंगे।
वि.