स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखित (30 नवम्बर, 1894)

(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल लिखा गया पत्र)

संयुक्त राज्य अमेरिका,
३० नवम्बर, १८९४

प्रिय आलासिंगा,

फोनोग्राफ और मेरा पत्र तुम्हें सुरक्षित अवस्था में मिल गए हैं, यह जानकर खुशी हुई। अब तुम्हें समाचार-पत्रों की और कटिंग भेजने की आवश्यकता नहीं। मेरा उनसे नाकों दम हो गया है। वह अब बहुत हो चुका। इसलिए अब संस्था के कार्य में लग जाओ। मैंने एक संस्था न्यूयार्क में पहले ही शुरू कर दी है और उसके उपसभापति शीघ्र ही तुम्हें पत्र लिखेंगे। इन लोगों के साथ पत्र-व्यवहार करते रहो। शीघ्र ही दूसरे स्थानों में भी मैं ऐसी ही दो-चार संस्थाएँ खोलने जा रहा हूँ। हमें अपनी शक्तियों का संगठन किसी सम्प्रदाय-निर्माण के लिए नहीं करना है, विशेषतः किसी धार्मिक विषय से सम्बन्धित, वरन् ऐसा केवल आर्थिक प्रबन्ध आदि की दृष्टि से करना है। एक जोरदार प्रचार-कार्य का समारम्भ करना होगा। एक साथ मिलकर संगठन-कार्य में जुट जाओ।

श्रीरामकृष्ण के चमत्कार के सम्बन्ध में क्या बकवास है!…चमत्कार के विषय में न कुछ जानता हूँ, न उसे समझता ही हूँ। क्या श्रीरामकृष्ण के पास चमत्कार दिखाने के अलावा संसार में और कोई काम नहीं था? कलकत्ता के ऐसे लोगों से भगवान् बचाये। इन्हीं विषयों को लेकर वे कार्य करेंगे! यह विचार रखते हुए कि श्रीरामकृष्ण कौन-सा कार्य करने तथा क्या सिखाने आए थे, यदि उनका वास्तविक जीवन कोई लिख सकता है, तो लिखने दो; अन्यथा नहीं। उनका जीवन और कथन बिगाड़ना उसके लिए उचित नहीं है। ये लोग, जो ईश्वर को जानना चाहते हैं, श्रीरामकृष्ण में जादूगरी के सिवा अन्य कुछ नहीं देखते!… यदि किडी उनके प्रेम, उनके ज्ञान, उनके सर्वधर्मसमन्वय सम्बन्धी कथाओं एवं उनके अन्य उपदेशों का अनुवाद कर सकता है, तो करने दो। विषय वस्तु इस प्रकार है। श्रीरामकृष्ण का जीवन एक असाधारण ज्योतिर्मय दीपक है, जिसके प्रकाश में हिन्दू धर्म के विभिन्न अंग एवं आशय समझे जा सकते हैं। शास्त्रों में निहित सिद्धान्त-रूप ज्ञान के वे प्रत्यक्ष उदाहरणस्वरूप थे। ऋषि और अवतार हमें जो वास्तविक शिक्षा देना चाहते थे, उसे उन्होंने अपने जीवन द्वारा दिखा दिया है। शास्त्र मतवाद मात्र हैं, रामकृष्ण उनकी प्रत्यक्ष अनुभूति। उन्होंने ५१ वर्ष में पाँच हजार वर्ष का राष्ट्रीय आध्यात्मिक जीवन जिया और इस तरह वे भविष्य की सन्तानों के लिए अपने आपको एक शिक्षाप्रद उदाहरण बना गए। विभिन्न मत एक एक अवस्था या क्रम मात्र हैं – उनके इस सिद्धान्त से वेदों का अर्थ समझ में आ सकता है और शास्त्रों में सामंजस्य स्थापित हो सकता है। उसी के अनुसार दूसरे धर्म या मत के लिए हमें केवल सहनशीलता का प्रयोग नहीं करना चाहिए, वरन् उन्हें स्वीकार कर जीवन में प्रत्यक्ष परिणत करना चाहिए, और उसी के अनुसार सत्य ही सब धर्मों की नींव है। अब इसी ढंग पर एक अत्यन्त मनोहर और सुन्दर जीवनी लिखी जा सकती है। अस्तु, सब काम अपने समय से होंगे।… अपना काम करते चलो, कलकत्तावालों पर अवलम्बित रहने की जरूरत नहीं। उनके साथ बात बनाये रखो, शायद उनमें से कोई अच्छा निकल आए। लेकिन स्वाधीनता से अपना काम करते रहो। काम के वक्त कोई नहीं, पर खाने के वक्त सब हाजिर हो जाते हैं। सतर्क रहो और काम करते जाओ।

आशीर्वादपूर्वक सदैव तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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