स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री बलराम बसु को लिखित (24 दिसम्बर, 1889)

(स्वामी विवेकानंद का श्री बलराम बसु को लिखा गया पत्र)
रामकृष्णो जयति

वैद्यनाथ,
२४ दिसम्बर, १८८९

प्रिय महोदय,

मैं वैद्यनाथ में कुछ दिनों से पूर्ण बाबू के निवास-स्थान में ठहरा हुआ हूँ। यहाँ उतनी ठंड नहीं है, और मेरा स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है, शायद यहाँ के पानी में लोहा अधिक होने के कारण मुझे अपच की शिकायत हो रही है। मुझे तो अपने अनुकूल यहाँ कुछ भी नहीं मिला – न स्थान, न मौसम और न साथी ही।

मैं कल बनारस चला जाऊँगा। देवधर में अच्युतानन्द गोविन्द चौधरी के यहाँ रुके थे और जब उन्होंने हम लोगों के बारे में सुना, तो आग्रहपूर्वक बड़ा अनुरोध किया कि हम लोग उनके अतिथि बनें। अंततः वे एक बार फिर हमसे मिले और अपनी प्रार्थना स्वीकार करने के लिए हमें विवश किया। यह व्यक्ति एक उत्तम कार्यकर्ता है और उनके साथ अनेक स्त्रियाँ हैं – अधिकांश वृद्धा हैं और अधिकतर वैष्णव सम्प्रदाय की…उनके क्लर्क भी हम लोगों का बड़ा आदर करते हैं, लेकिन उनमें से कुछ तो उनके प्रति बहुत बुरा भाव रखते हैं। वे उनके दुष्कृत्यों के बारे में चर्चा करते हैं। अकस्मात् मैंने यह विषय उठाया। उसके बारे में आप लोगों की बहुत सी भ्रान्त धारणाएँ और संदेह हैं, अतः यह सब मैं विशेष जाँच-पड़ताल के पश्चात् ही लिख रहा हूँ। इस संस्थान के वृद्ध क्लर्क भी उसके प्रति आदर और श्रद्धा रखते हैं। वह जब आयी थी, तो निरी बच्ची थी और सदा उसकी पत्नी की तरह ही रही।…उसके चरित्र के सम्बन्ध में सभी कोई एक स्वर से यही कहते हैं कि वह निष्कलंक है। वह हमेशा एक पतिव्रता नारी की तरह रही और…के साथ कभी भी – पति के प्रति पत्नी जैसे व्यवहार के अतिरिक्त उसने अन्य किसी सम्बन्ध का आचरण नहीं किया, और वह पूर्णरूपेण वफादार रही। जिस समय वह आयी थी, उसकी उम्र इतनी कम थी कि उससे किसी नैतिक च्युति का होना कठिन था। और जब वह…से अलग हो गयी, तो उसने उनको लिखा कि उसने उनको पति के अतिरिक्त अन्य किसी रूप में कभी नहीं लिया। पर इसके लिए यह सम्भव नहीं था कि वह एक चरित्रहीन व्यक्ति के साथ रह सके। उनके आफिस के पुराने पदाधिकारी भी मानते हैं कि उनके चरित्र में कहीं शैतान जरूर छिपा है, पर वे…को एक देवी मानते हैं और कहते हैं कि उसके चले जाने के बाद…में लज्जा नाम की कोई चीज नहीं रह गयी।

यह सब लिखने का मेरा उद्देश्य यही है कि मैं पहले उस महिला के आरम्भिक जीवन की कहानी पर विश्वास नहीं करता था। इस विचार को मैं रोमांस समझता था कि ऐसी पवित्रता उस सम्बन्ध के बीच भी रह सकती है, जिसको समाज स्वीकार नहीं करता है, लेकिन काफी जाँच-पड़ताल के बाद मैं यह जान पाया हूँ कि यह ठीक है कि वह निर्दोष है, बाल्य-काल से पवित्र है और मुझे इस सम्बन्ध में जरा भी संदेह नहीं है। लेकिन इस ढंग के संदेह को पालने के लिए हम, आप और सब कोई दोषी हैं, अपराधी हैं; मैं अपनी गलती के लिए उसके प्रति क्षमाप्रार्थी हूँ और उसको बारम्बार प्रणाम करता हूँ। वह झूठी नहीं है।

इस अवसर पर मैं यह भी कह देना चाहता हूँ कि किसी व्यभिचारिणी स्त्री में ऐसा साहस होना असम्भव है। मैंने यह भी सुना कि धर्म में जीवन भर उसकी अटूट श्रद्धा रही।

बहरहाल, आपकी बीमारी में कोई सुधार नहीं हो रहा है। मैं समझता हूँ कि जब तक कोई खूब रुपया न खर्च करे, यह स्थान रोगियों के लायक नहीं है। कृपया कोई अधिक अच्छा उपाय सोचें। यहाँ तो हर चीज दूसरी जगह से मँगवानी पड़ती है।

आपका,
नरेन्द्रनाथ

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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