स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री बलराम बसु को लिखित (5 जनवरी, 1890)
(स्वामी विवेकानंद का श्री बलराम बसु को लिखा गया पत्र)
श्रीरामकृष्णो जयति
इलाहाबाद,
५ जनवरी, १८९०
प्रिय महाशय,
आपके कृपापत्र से यह जानकर कि आप बीमार हैं, मुझे बड़ा दुःख हुआ। जलवायुपरिवर्तन के लिए आपके वैद्यनाथ आने के बारे में जो मैंने लिखा था, उसका सारांश यह है कि जब तक आप बहुत सा रुपया खर्च न करें, आपके समान कोमल प्रकृति और कमजोर के लिए वहाँ रहना असम्भव है। यदि जलवायु का परिवर्तन वास्तव में वांछनीय है और आपने किसी सस्ती जगह की तलाश में ही आगा-पीछा करते-करते इतना विलम्ब कर दिया, तो यह निस्सन्देह खेद का विषय है।…
वैद्यनाथ की हवा तो बड़ी अच्छी है, पर पानी वहाँ का खराब है। उससे पेट में बड़ी गड़बड़ी हो जाती है। मुझे तो वहाँ रोज ही खट्टी डकारें आने लगी थीं। इसके पूर्व मैंने आपको एक पत्र लिखा था; वह आपको मिला या आपने उसे बैरंग चिट्ठी होने के कारण वापस कर दिया? अगर आपको जलवायु-परिवर्तन ही अभीष्ट है, तो शुभस्य शीघ्रम्। परन्तु क्षमा कीजिए, अपने स्वभाव के अनुसार आप प्रत्येक वस्तु को अपने मनोनुकूल ही, आदर्श रूप में देखना चाहते हैं। किन्तु दुःख की बात है कि संसार में ऐसा संयोग कदाचित् ही प्राप्त होता है; आत्मानं सततं रक्षेत – ‘प्रत्येक परिस्थिति में अपनी रक्षा करनी चाहिए।’ भगवत्कृपा से सब कुछ होता है, फिर भी प्रभु अपने पैरों खड़े होने वाले को सहायता देते हैं। यदि मितव्ययिता ही आपका उद्देश्य है, तो क्या आपके जलवायु-परिवर्तन के लिए ईश्वर अपने बाप-दादों की कमाई से निकालकर आपको धन देगा? यदि आपको परमात्मा का इतना भरोसा है, तो फिर बीमार होने पर डॉक्टर क्यों बुलाते हैं? यदि यह आपको अनुकूल नहीं जान पड़ता, तो आप वाराणसी चले जाइए। मैं कब का यहाँ से चला गया होता, पर यहाँ के महानुभाव मुझे जाने ही नहीं देते, देखें, क्या होता है।…
मैं फिर कहता हूँ कि यदि जलवायु-परिवर्तन नितांत अभीष्ट है, तो कृपया कंजूसी के कारण आगा-पीछा न कीजिए। ऐसा करना आत्मघात होगा और आत्मघाती की रक्षा ईश्वर भी नहीं कर सकता। तुलसी बाबू और अन्य मित्रों से मेरा नमस्कार कहिए। इति।
दास,
नरेन्द्रनाथ