स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखित (12 अगस्त, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखा गया पत्र)
स्विट्जरलैंड,
१२ अगस्त, १८९६
प्रिय श्री स्टर्डी,
आज मुझे एक पत्र अमेरिका से मिला जिसे मैं तुम्हारे पास भेज रहा हूँ। मैंने उनको लिख दिया है कि मैं चाहता हूँ कि कम से कम वर्तमान प्रारम्भिक कार्य में ध्यान केन्द्रित किया जाय। मैंने उनको यह भी सलाह दी है कि कई पत्रिकाएँ शुरू करने के बजाय ‘ब्रह्मवादिन्’ में अमेरिका में लिखित कुछ लेख रखकर काम शुरू करें और चन्दा कुछ बढ़ा दें, जिससे अमेरिका में होने वाला खर्च निकल जाये। पता नहीं, वे क्या करेंगे।
हम लोग अगले सप्ताह जर्मनी की तरफ रवाना होंगे। जैसे हम जर्मनी पहुँचे, कुमारी मूलर इंग्लैण्ड रवाना हो जायेंगी।
कैप्टेन तथा श्रीमती सेवियर और मैं कील में तुम्हारी प्रतीक्षा करेंगे।
मैंने अब तक कुछ नहीं लिखा और न कुछ पढ़ा ही है। वस्तुतः मैं पूर्ण विश्राम ले रहा हूँ। चिन्ता न करना, तुमको लेख तैयार मिलेगा। मुझे मठ से इस आशय का पत्र मिला है कि दूसरा स्वामी रवाना होने के लिए तैयार है। मुझे आशा है कि वह तुम्हारी इच्छा के उपयुक्त व्यक्ति होगा। वह हमारे संस्कृत के अच्छे विद्वानों में से है… और जैसा कि मैंने सुना है उसने अपनी अंग्रेजी काफी सुधार ली है। सारदानन्द के बारे में मुझे अमेरिका से अखबारों की बहुत सी कतरनें मिली हैं। उनसे पता चलता है कि उसने वहाँ बहुत अच्छा काम किया है। मनुष्य के अन्दर जो कुछ है, उसे विकसित करने के लिए अमेरिका एक अत्यन्त सुन्दर प्रशिक्षण केन्द्र है। वहाँ का वातावरण कितना सहानुभूतिपूर्ण है। मुझे गुडविन तथा सारदानन्द के पत्र मिले हैं। सारदानन्द ने तुमको, श्रीमती स्टर्डी तथा बच्चे को स्नेह भेजा है।
शुभाकांक्षी,
विवेकानन्द