स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखित (13 फरवरी, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखा गया पत्र)
२२८ पश्चिम ३९वाँ रास्ता,
न्यूयार्क,
१३ फरवरी, १८९६
स्नेहाशीर्वादभाजन,
उस संन्यासी के सम्बन्ध में, जो भारत से आ रहा है, मुझे विश्वास है कि अनुवाद के काम में तथा दूसरे कामों में भी वह तुम्हारी सहायता करेगा। बाद में जब मैं आऊँगा, तब कदाचित मैं उसे अमेरिका भेज दूँगा। आज एक और संन्यासी हो गया है। इस बार वह ऐसा व्यक्ति है, जो कि सच्चा अमेरिकन है और इस देश में प्रतिष्ठित धर्म-प्रचारक है। उसका पहला नाम था डॉक्टर स्ट्रीट, अब वह योगानन्द है, क्योंकि उसकी सब रूचि योग की ओर है।
मैं ‘ब्रह्मवादिन’ पत्रिका को नियमपूर्वक विवरण लिखकर भेजता रहा हूँ। वे शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। किसी वस्तु को भारत पहुँचने में बहुत विलम्ब होता है। अमेरिका में काम की वृद्धि सुन्दर रूप से हो रही है। चूँकि यहाँ आरम्भ से ही कुछ धोखाधड़ी नहीं थी, इसलिए अमेरिकन समाज के सर्वोच्च वर्ग को वेदान्त अपनी ओर आकृष्ट कर रहा है। सारा बार्नहार्ड, फ्रेंच अभिनेत्री यहाँ ‘इत्सील’ (Iziel) नाटक में अभिनय कर रही हैं। यह एक प्रकार का फ्रेंच रूप में बुद्धदेव का जीवन-चरित्र है, जिसमें एक इत्सील नामक वेश्या वटवृक्ष के नीचे बैठे हुए बुद्धदेव को पाप में प्रवृत्त करना चाहती है। जिस समय वह इनकी गोद में बैठी है, उस समय बुद्धदेव ने उसे संसार की असारता का उपदेश दिया है। अस्तु, ‘अन्त भला सो सब भला’ – अन्त में वह वेश्या असफल होती है। श्रीमती बार्नहार्ड वेश्या का अभिनय करती हैं।
मैं इस ‘बुद्ध’ नाटक को देखने गया था और श्रीमती जी ने मुझे श्रोतागणों में देखकर मुझसे भेंट करने की इच्छा प्रकट की। एक प्रतिष्टित और परिचित परिवार ने मिलने की व्यवस्था की। इनके अतिरिक्त वहाँ पर श्रीमती एम० मौरेल (एक नामी गायिका) और विद्युत् विज्ञान में अति निपुण श्रीयुत टेस्ला भी थे। श्रीमती जी एक विदुषी महिला हैं और उन्होंने अध्यात्म विद्या का अच्छा अध्ययन किया है। श्रीमती मौरेल की भी इस विद्या में रुचि ब.ढ़ रही है, और श्रीयुत टेस्ला वैदान्तिक प्राण, आकाश और कल्प के सिद्धान्त सुनकर बिल्कुल मुग्ध हो गये। उनके कथानानुसार आधुनिक विज्ञान केवल इन्हीं सिद्धान्तों को ग्रहण कर सकता है। अब, आकाश और प्राण, दोनों जगद्व्यापी महत्, समष्टि-मन, ब्रह्मा या ईश्वर से उत्पन्न हुए हैं। श्री टेस्ला समझते हैं कि गणितशास्त्र की सहायता से वे यह प्रमाणित कर सकते हैं कि जड़ और शक्ति, दोनों ही स्थितिक ऊर्जा (Potential Energy)में रुपांतरित हो सकते हैं। गणितशास्त्र के इस नवीन प्रमाण को समझने के लिए मैं आगामी सप्ताह में उनसे मिलने जानेवाला हूँ।
ऐसा होने से वैदान्तिक ब्रह्माण्डविज्ञान अत्यन्त दृढ़ नींव पर स्थित हो सकेगा। मैं आजकल वैदान्तिक ब्रह्माण्डविज्ञान और प्रलय-विज्ञान (Eschatology)1 में बहुत कुछ काम कर रहा हूँ। आधुनिक विज्ञान के साथ उनका पूर्ण सामंजस्य मैं स्पष्ट रुप से देखता हूँ, और एक की व्याख्या के बाद दूसरे की भी हो जायगी। मैं बाद में प्रश्नोत्तर के रुप में एक पुस्तक लिखने का विचार करता हूँ। उसका पहला अध्याय ब्रह्माण्डविज्ञान पर होगा, जिसमें वैदान्तिक सिद्धान्त और आधुनिक विज्ञान का सामंजस्य दिखाया जायगा।
प्रलय-विज्ञान की व्याख्या केवल अद्वैत के दृष्टिकोण से होगी। अर्थात् द्वैतवादी कहते हैं कि मृत्यु के पश्चात् जीवात्मा सूर्यलोक में जाती है, वहाँ से चन्द्र लोक में और वहां से विद्युत्-लोक में। वहाँ से किसी पुरुष के साथ वह ब्रह्मलोक जाती है। (अद्वैती कहता है कि वहाँ से वह निर्वाण प्राप्त करती है।)
अद्वैतवाद के अनुसार जीव न कहीं आता है, न जाता है और ये सब लोक या जगत् के स्तर आकाश और प्राण के रूपान्तरित परिमाण मात्र हैं। अर्थात् सबसे नीचा और सबसे घना सूर्यलोक है, जो दृश्य जगत् ही है, और जिसमें प्राण भौतिक शक्ति के रूप में और आकाश इंद्रियग्राह्य भौतिक पदार्थ के रूप में प्रकट होता है। इसके बाद चन्द्रलोक है, जो सूर्यलोक को चारों ओर से घेरे है। यह चन्द्रमा नहीं है, परन्तु देवताओं का निवास-स्थान है अर्थात् प्राण यहाँ मानसिक शक्तियों के रूप में और आकाश तन्मात्र या सूक्ष्म भूत के रूप में प्रकट होता है। इसके परे विद्युत्-लोक है अर्थात् वह अवस्था, जहाँ प्राण आकाश से प्रायः अभिन्न है और यह बताना कठिन हो जाता है कि विद्युत् जड़ है या शक्ति। इसके बाद ब्रह्मलोक है, जहाँ न प्राण है, न आकाश, परन्तु दोनों ही चित् शक्ति अर्थात् आदि शक्ति में विलीन हैं। और यहाँ प्राण और आकाश के न रहने से जीव को सम्पूर्ण विश्व समष्टि-महत् या समष्टि-मन के रूप में प्रतीत होता है। यह भी पुरुष या सगुण विश्वात्मा की अभिव्यक्ति है, न कि निर्गुण अद्वितीय परमात्मा की ; क्योंकि उसमें भेद सूक्ष्म रूप से विद्यमान है। इसके पश्चात् जीव को पूर्ण एकत्व की अनुभूति होती है, जो कि अन्तिम लक्ष्य है। अद्वैत के अनुसार जीव के सम्मुख इन सब अनुभूतियों का प्रकाश एक के बाद एक क्रमशः होता है; परन्तु जीव स्वयं न कहीं आता है, न जाता; और इसी प्रकार इस वर्तमान जगत् की भी अभिव्यक्ति हुई है। इसी क्रम से सृष्टि और प्रलय होते हैं – केवल एक का अर्थ है ‘पीछे जाना’ और दूसरे का ‘बाहर निकलना’।
जब कि प्रत्येक व्यक्ति अपने ही विश्व को देखता है, इसलिए उस विश्व की उत्पत्ति उसके बन्धन के साथ ही होती है, और उसकी मुक्ति से वह विश्व विनष्ट हो जाता है, तथापि वह औरों के लिए, जो बन्धन में हैं, अवशिष्ट रहता है। नाम और रूप से ही विश्व बना है। समुद्र की तरंग, उस हद तक ही तरंग कहला सकती है, जब तक कि नाम और रूप से वह सीमित है। यदि तरंग लुप्त हो जाय, तो वह समुद्र ही है। परन्तु उसके वे नाम और रुप तत्काल ही सदा के लिए नष्ट हो गये। इसलिए उस तरंग के नाम और रूप जल के बिना नहीं हो सकते, जिससे नाम और रूप ने तरंग का निर्माण किया, परन्तु फिर भी वे स्वयं तरंग नहीं है। जैसे ही तरंग पानी बन जाती है, वैसे ही नाम और रूप का लोप हो जाता है। परन्तु दूसरे नाम और रूप, जिनका दूसरी तरंगों से सम्बन्ध है, वर्तमान रहते हैं। यह नाम और रूप माया कहलाता है, और, पानी ब्रह्म है। सब काल में तरंग पानी ही है, परन्तु फिर भी तरंग के आकार में उसका नाम और रुप है। पुनः, ये नाम और रूप एक क्षण के लिए भी पानी से पृथक् होकर नहीं रह सकते, यद्यपि तरंग जलरूप में अनन्त काल तक नाम और रूप से पृथक होकर रह सकती है। परन्तु नाम और रूप पृथक् नहीं किये जा सकते, इसीलिए उनका अस्तित्व नहीं माना जा सकता। फिर भी वे शून्य नहीं है। यही है माया।
मैं इसका सावधानी से विवेचन करना चाहता हूँ, परन्तु तुरन्त ही तुम देख सकते हो कि मैं सही रास्ते पर हूँ। ऊँचे एवं नीचे के केन्द्रों के परस्पर सम्बन्ध को जानने के लिए शारीरिक विज्ञान का अधिक अध्ययन करने की आवश्यकता है और इससे मन, चित्त और बुद्धि आदि सम्बन्धी मनोविज्ञान पूरा किया जायगा। परन्तु अब मेरे मन पर स्पष्ट प्रकाश पड़ रहा है – धुँधलापन दूर हो गया है। मैं उन्हें देना चाहता हूँ रूखा और कठोर तर्क, जो प्रेम के अति मधुर रस से कोमल किया गया हो, उत्कट कर्म से सुगन्धित मसालेदार बना हो और योग की रसोई में पका हो, जिससे उसे एक शिशु भी सहज रूप से पचा सके।
तुम्हारा,
विवेकानन्द
- मृत्यु, अन्तिम निर्णय (judgment) आदि जीवन के बाद घटनेवाली घटनाओं के बारे में एक मतवाद।मृत्यु, अन्तिम निर्णय (judgment) आदि जीवन के बाद घटनेवाली घटनाओं के बारे में एक मतवाद।