स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखित (29 फरवरी, 1896)

(स्वामी विवेकानंद का श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखा गया पत्र)

२२८ पश्चिम ३९वाँ रास्ता,
न्यूयार्क,
२९ फरवरी, १८९६

शुभ और प्रिय,

अगर सम्भव हुआ,तो मैं मई के पहले आ रहा हूँ। तुम्हें इस सम्बन्ध में चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। पुस्तिका अच्छी थी। यहाँ से समाचारपत्र की कतरनें, अगर हमें मिल गयीं, तो रवाना कर दी जायँगी।

यहाँ पुस्तकें और पुस्तिकाएँ इस तरह प्रकाशित हुई हैं। न्यूयार्क में एक समिति बनी है। आशुलिपि और छपाई का ख़र्च वे इस शर्त पर चुकायेंगे कि पुस्तकें उनके अधिकार में हों। अतः ये पुस्तिकाएँ और पुस्तकें उनकी हैं। एक पुस्तक ‘कर्मयोग’ प्रकाशित हो चुकी हैं, ‘राजयोग’ जो उससे बृहत्तर है, प्रकाशनावस्था में है; और ‘ज्ञानयोग’ बाद में प्रकाशित होगा। ये पुस्तकें काफी लोकप्रिय होंगी, क्योंकि बोलचाल की भाषा में है, जैसा कि तुमने देखा ही है। मैंने आपत्तिजनक बातों को निकाल दिया है और उन्होंने पुस्तकों के प्रकाशन में सहायता दी।

पुस्तकें इस समिति की सम्पत्ति हैं, जिसकी मुख्य सहायक श्रीमती ओलि बुल हैं और श्रीमती लेगेट भी हैं। ऐसा है कि सभी पुस्तकें उन्हें मिलनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने सारा ख़र्च किया है। उनके साथ प्रकाशकों के हस्तक्षेप का भी भय नहीं है, क्योंकि वे स्वयं प्रकाशक हैं।

अगर भारत से कोई पुस्तक आये, तो सुरक्षित रखना। गुडविन नाम का एक अंग्रेज आशुलिपिक है, जो मेरे कार्यों से इतना सम्बद्ध हो गया है कि मैंने उसे एक ब्रह्मचारी बना दिया है और वह मेरे साथ ही इधर-उधर जाता है। इम लोग साथ ही इंग्लैण्ड आयेंगे। वह बहुत बड़ा सहायक सिद्ध होगा, जैसा कि वह हमेशा से रहा है। अनेक शुभकामनाओं के साथ,

तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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