स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखित (8 अगस्त, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखा गया पत्र)
ग्रैंड होटल सस फी,
वैले, स्विट्जरलैंड,
८ अगस्त, १८९६
महाभाग एवं परम प्रिय,
तुम्हारे पत्र के साथ ही पत्रों का एक बड़ा पुलिंदा मिला। मैक्समूलर ने मुझको जो पत्र लिखा है, उसे तुम्हारे पास भेज रहा हूँ। मेरे प्रति उनकी बड़ी कृपा और सौजन्य है।
कुमारी मूलर का विचार है कि वे बहुत जल्द इंग्लैण्ड चली जायेंगी। तब मैं ‘प्योरिटी कांग्रेस’ में शरीक होने के लिए वर्न जा सकूँगा, जिसके लिए मैंने वादा किया था। यदि सेवियर दम्पत्ति मुझे अपने साथ ले चलने को राजी हो गये, तभी मैं कील जाऊँगा और सूचनार्थ तुम्हें पहले ही पत्र लिख दूँगा। सेवियर दम्पति बड़े सज्जन और कृपालु हैं, किन्तु उनकी उदारता से लाभ उठाने का मुझे अधिकार नहीं। क्योंकि वहाँ का खर्च भयानक है। ऐसी दशा में बर्न काँग्रेस में शरीक होने का विचार त्याग देना ही मेरे विचार से सर्वोत्तम है, क्योंकि बैठक सितम्बर के मध्य में होगी जिसमें अभी बहुत देर है।
अतः जर्मनी में जाने का मेरा विचार हो रहा है। वहाँ की यात्रा का अन्तिम स्थान कील होगा, जहाँ से इंग्लैंड वापस आऊँगा।
बाल गंगाधर तिलक (श्री तिलक) नाम है और ‘ओरायन’ उनकी पुस्तक का नाम है।
तुम्हारा,
विवेकानन्द
पुनश्च – जेकवी की भी एक (पुस्तक) है – शायद उन्हींं पद्धतियों पर वह अनूदित है तथा उसके वे ही निष्कर्ष हैं।
पुनश्च – मुझे आशा है कि तुम ठहरने के स्थान और हाल के विषय में कुमारी मूलर की राय ले लोगे, क्योंकि यदि उनकी तथा अन्य लोगों की सलाह न ली गयी तो वे बहुत अप्रसन्न होंगी।
वि.
कल रात कुमारी मूलर ने प्रोफेसर डॉयसन को तार भेजा और आज सबेरे ९ अगस्त को तार का जवाब आ गया, जिसमें उन्होंने मेरा स्वागत किया है। १० सितम्बर को मैं कील में डॉयसन के यहाँ पहुँचने वाला हूँ। तो तुम मुझसे कहाँ मिलोगे? कील में? कुमारी मूलर स्विट्जरलैंड से इंग्लैंड जा रही हैं; मैं सेवियर दम्पत्ति के साथ कील जा रहा हूँ। १० सितम्बर को मैं वहाँ रहूँगा।
वि.
पुनश्च – व्याख्यान के विषय में अभी तक मैंने कुछ निर्धारित नहीं किया है। पढ़ने का मुझे अवकाश नहीं। बहुत सम्भव है कि ‘सालेम सोसायटी’ किसी हिन्दू सम्प्रदाय का संगठन है, झक्कियों का नहीं।
वि.