स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री हरिदास बिहारीदास देसाई को लिखित (22 अगस्त, 1892)

(स्वामी विवेकानंद का श्री हरिदास बिहारीदास देसाई को लिखा गया पत्र)

बम्बई,
२२ अगस्त, १८९२

प्रिय दीवानजी साहब,

आपका पत्र पाकर मैं बहुत ही कृतार्थ हूँ, इस कारण विशेषकर इस पत्र से यह सिद्ध होता है कि आप मेरे प्रति पूर्ववत् कृपालु हैं।…

मुझे बहुत खुशी हुई कि आपका जोड़ करीब करीब पूर्णतया ठीक हो गया। कृपया अपने उदारमना भाई से कहें कि वे वचन-भंग के लिए मुझे क्षमा करें। मुझे यहाँ कुछ संस्कृत पुस्तकें एवं उन्हें समझने के लिए सहायता मिल गयी है, जिनके अन्यत्र मिलने की आशा मैं नहीं करता। मैं उन्हें समाप्त करने के लिए व्यग्र हूँ। कल यहाँ मैंने आपके मित्र श्री मनःसुखाराम से भेंट की, उसके साथ एक संन्यासी मित्र ठहरा है। वे मेरे प्रति बहुत ही कृपालु हैं, और उनका पुत्र भी।

यहाँ १५-२० दिन रहने के बाद मैं रामेश्वरम् को प्रस्थान करूँगा, और लौटते वक्त निश्चय ही आपके पास आऊँगा।

यह संसार वास्तव में आप जैसे उच्चात्मा, सहृदय एवं दयालु पुरुषों के कारण ही समृद्ध है; शेष तो जैसा किसी संस्कृत कवि ने लिखा है, ‘कुठार सदृश है, जो अपनी माताओं के तारुण्य-वृक्ष का उच्छेदन करते हैं।’

यह असम्भव है कि मैं कभी आपकी पितृवत् उदारता और देख-भाल को भूल जाऊँ, और मुझ जैसा गरीब फकीर आप जैसे महान् मंत्री का इस प्रार्थना के सिवा क्या प्रत्युपकार कर सकता है कि इस संसार में जो कुछ काम्य है, समस्त वरदानों का प्रदाता उसे आपको प्रदान करे, और जीवन के अन्त में, जो अन्त बहुत, बहुत ही दिन तक वह (भगवान) स्थगित रखे, आपको परमानन्द, अनन्त सुख तथा पवित्रता की अपनी शरण में ले ले।

भवदीय,
विवेकानन्द

पुनश्च – देश के इन भागों में यह देखकर मुझे बड़ा दुःख है कि संस्कृत तथा अन्य विद्याओं के ज्ञान का बड़ा अभाव है। देश के इस भाग के निवासी स्नान, खानपान आदि सम्बन्धी स्थानीय अंधविश्वासों के पुंज को ही अपना धर्म समझते हैं, और यही उनका सारा धर्म है।

ये बेचारे! इनको नीच और धूर्त पुरोहित वेदों और हिन्दू धर्म के नाम पर निरर्थक हास्यपूर्ण कुरीतियाँ एवं मूर्खताएँ सिखा रहे हैं (और स्मरण रखें कि इन बदमाश पुरोहितों ने और उनके पूर्वजों ने भी ४०० पुश्तों से वेद की एक प्रति का दर्शन तक नहीं किया है); आम लोग उसीका अनुगमन कर अपने को पतित कर लेते हैं। कलियुगी ब्राह्मणरूपी राक्षसों से भगवान् इनकी रक्षा करे!

मैंने आपके पास एक बंगाली लड़के को भेजा है। आशा है, उसे आपकी कृपा प्राप्त होगी।

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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