स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री हरिदास बिहारीदास देसाई को लिखित (22 मई, 1893)

(स्वामी विवेकानंद का श्री हरिदास बिहारीदास देसाई को लिखा गया पत्र)

बम्बई,
२२ मई, १८९३

प्रिय दीवान जी साहब,

कुछ दिन हुए, बम्बई पहुँच गया और थोड़े ही दिनों में यहाँ से रवाना होऊँगा। आपके मित्र वे वणिक सज्जन, जिनको आपने मेरे ठहरने के लिए घर की व्यवस्था करने की सूचना दी थी, लिखते हैं कि उनके मकान में मेहमानों के कारण, जिनमें से कुछ बीमार भी हैं, बिल्कुल जगह नहीं। उन्हें मुझे निवास न दे सकने का बहुत दुःख है। खैर, किसी तरह मुझे एक अच्छी हवादार जगह मिल गयी है।

… खेतड़ी के महाराज के प्राइवेट सेक्रेटरी और मैं, दोनों एक साथ रहते हैं। उनके प्रेम और कृपा के लिए आभार प्रदर्शित करने में मैं असमर्थ हूँ। वे एक ताजीमी सरदार हैं, जिनका राजा लोग सिंहासन से उठकर स्वागत करते हैं। तब भी वे इतने सरल हैं कि उनका सेवा-भाव देखकर मैं कभी-कभी लज्जित हो जाता हूँ।

… प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पड़ती हैं। इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत् में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो। ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तराल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त भण्डार है। जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है। एक बार उस शान्ति-मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफान के जितने तुमुल झकोरे आयें, वह मकान, जो सदियों की पुरानी चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता। मेरा पूर्ण विश्वास है कि आप जैसे निःस्वार्थी और सदाचारी सज्जन, जिनका जीवन सदैव दूसरों की भलाई में बीता है, उस दृढ़ धरातल पर पहुँच चुके हैं, जिसे भगवान् ने गीता में ‘ब्राह्मीं स्थिति’ कहा है।

जो आघात आपको लगे हैं, वे आपको उस परम पुरुष के निकट पहुँचने में सहायक हों, जो इस लोक और परलोक में एकमात्र प्रेम का पात्र है, जिससे आप यह अनुभव कर सकें कि परमात्मा ही भूत, वर्तमान तथा भविष्य की प्रत्येक वस्तु में विद्यमान है और प्रत्येक वस्तु उसमें स्थित है और उसी में विलीन होती है। ॐ शान्तिः।

आपका स्नेहांकित,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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