स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (24 जनवरी, 1890)
(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
ईश्वरो जयति
द्वारा बाबू सतीशचन्द्र मुकर्जी,
गोराबाजार, गाजीपुर,
शुक्रवार, २४ जनवरी, १८९०
पूज्यपाद,
मैं तीन दिन हुए, सकुशल गाजीपुर पहुँच गया। यहाँ मैं अपने एक बाल-सखा बाबू सतीशचन्द्र मुकर्जी के यहाँ ठहरा हूँ। स्थान बड़ा मनोरम है। गंगाजी पास ही बहती हैं, परन्तु उसमें स्नान करना कष्टसाध्य है, क्योंकि कोई सीधा रास्ता वहाँ तक नहीं है और रेत में चलना बहुत कठिन है।
मेरे मित्र के पिता बाबू ईशानचन्द्र मुकर्जी – वे महानुभाव, जिनका उल्लेख मैंने आपसे किया था – यहाँ हैं। आज वे वाराणसी जा रहे हैं। वाराणसी होते हुए कलकत्ता जायेंगे। फिर मेरी बड़ी इच्छा थी कि मैं वाराणसी आता; परन्तु अभी तक बाबाजी1 के दर्शन नहीं हुए! यही मेरे यहाँ आने का अभिप्राय है। इसलिए दो-चार दिनों का विलम्ब होगा। यहाँ और सब तो ठीक है, सभी लोग सज्जन हैं, परन्तु उनमें बहुत अधिक पाश्चात्य भाव आ गया है। खेद की बात है कि मैं पाश्चात्य भावों के विरुद्ध खड्गहस्त रहता हूँ। केवल मेरे मित्र का ही झुकाव उस ओर कम है। कैसी रद्दी सभ्यता विदेशी यहाँ लायें हैं! उन्होंने जड़वाद की कैसी मृगमरीचिका उत्पन्न की है! विश्वनाथ इन दुर्बल हृदयों की रक्षा करें। बाबाजी से मिलने के बाद मैं आपको सविस्तार हाल लिखूँगा।
आपका,
विवेकानन्द
पुनश्च – भगवान् का शुक कि इस जन्मभूमि में वैराग्य को आज लोग पागलपन और पाप समझते हैं! अहो भाग्य!
- गाजीपुर के विख्यात योगी पवहारी बाबा