स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (31 दिसम्बर, 1889)
(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
ईश्वरो जयति
प्रयागधाम,
३१ दिसम्बर, १८८९
पूज्यपाद,
मैंने आपको लिखा था कि दो-एक दिनों में ही मैं वाराणसी पहुँच रहा हूँ, किन्तु विधि-विधान को कौन बदल सकता है? चित्रकूट, ओंकारनाथ इत्यादि स्थानों का दर्शन कर यहाँ लौटने पर योगेन्द्र नामक मेरे एक गुरुभाई को चेचक हो गयी है, यह समाचार पाकर उसकी सेवा-शुश्रुषा के लिए मुझे यहाँ आना पड़ा है।
मेरा गुरुभाई अब पूर्णतया स्वस्थ हो चुका है। यहाँ के कुछ बंगाली सज्जन अत्यन्त धर्मनिष्ठ तथा अनुरागी हैं, वे अत्यन्त प्रेमपूर्वक मेरा आतिथ्य-सत्कार कर रहे हैं एवं उन लोगों का विशेष आग्रह है कि मैं यहाँ माघ के महीने में कल्पवास करूँ। किन्तु मेरा मन काशी के लिए अत्यन्त व्याकुल तथा आपसे मिलने के लिए अत्यन्त चंचल हो उठा है। इनके आग्रह को शान्त कर दो-चार दिन में ही जिससे मैं काशीपुरी अधीश्वर श्रीविश्वनाथ के पवित्र क्षेत्र में पहुँच सकूँ, एतदर्थ प्रयास कर रहा हूँ। अच्युतानन्द सरस्वती नामक मेरे कोई गुरुभाई यदि आपके समीप मेरे बारे में पूछताछ करने के लिए पहुँचें, तो उनसे यह कहने की कृपा करें कि मैं शीघ्र ही वाराणसी आ रहा हूँ। वे अत्यन्त सज्जन तथा विद्वान् हैं, बाध्य होकर मैं उन्हें बाँकीपुर छोड़ आया हूँ। क्या राखाल तथा सुबोध अभी तक वाराणसी में ही हैं? इस वर्ष कुम्भमेला हरिद्वार में होगा या नहीं, कृपया सूचित करें। किमधिकमिति।
बहुत से स्थानों में अनेक ज्ञानी, भक्त, साधु तथा पण्डितों से मेरी भेंट हुई, प्रायः सभी लोग मेरा आदर-सत्कार करते हैं, किन्तु ‘भिन्नरुचिर्हिं लोकाः’, आपके प्रति चित्त का न जाने कैसा आकर्षण है कि और कहीं भी मुझे उतना अच्छा नहीं लगता। देखना है, काशीनाथ क्या करते हैं।
आपका,
नरेन्द्रनाथ
मेरा पता –
मार्फत गोविन्द चन्द्र बसु,
चौक, इलाहाबाद