स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (31 जनवरी, 1890)
(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
ईश्वरो जयति
गाजीपुर,
३१ जनवरी, १८९०
पूज्यपाद,
बाबाजी से भेंट होना अत्यन्त कठिन है, वे मकान से बाहर नहीं निकलते, इच्छानुसार दरवाजे पर आकर भीतर से ही बातें करते हैं। अत्यन्त ऊँची दीवालों से घिरा हुआ, उद्यानयुक्त तथा दो चिमनियों से सुशोभित उनके निवास-स्थान को देख आया हूँ; भीतर जाने का कोई उपाय नहीं है।
लोगों का कहना है कि भीतर गुफा यानी तहखाना जैसी एक कोठरी है, जिसमें वे रहते हैं, वे क्या करते हैं, यह वे ही जानते हैं, क्योंकि कभी किसी ने देखा नहीं। एक दिन मैं वहाँ जाकर बैठा बैठा कड़ी सर्दी खाकर लौटा था, फिर भी मैं प्रयत्न करूँगा। रविवार को वाराणसी धाम के लिए प्रस्थान करूँगा – यहाँ के लोग मुझे नहीं छोड़ रहे हैं, नहीं तो बाबाजी के दर्शन की अभिलाषा तो मेरी समाप्त हो चुकी है। आज ही मैं चला आता; अस्तु, रविवार को प्रस्थान कर रहा हूँ। आपका हृषीकेश जाने का क्या हुआ?
आपका,
नरेन्द्र
पुनश्च – यह स्थान अत्यन्त स्वास्थ्यप्रद है, बस, इतनी ही इसकी विशेषता है।
नरेन्द्र