स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी सारदानन्द को लिखित (20 मई, 1894)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी सारदानन्द को लिखा गया पत्र)
संयुक्त राज्य अमेरिका,
२० मई, १८९४
प्रिय शरत्,
तुम्हारा पत्र मिला और यह जानकर मुझे खुशी हुई कि शशि ने आरोग्य-लाभ किया है। मैं तुम्हें एक अद्भुत बात बता रहा हूँ – जब कभी तुम लोगों में से कोई अस्वस्थ हो जाय, तब वह स्वयं ही अथवा तुम लोगों में कोई उसे मानसनेत्र से प्रत्यक्ष करो। इस तरह देखते-देखते मन में सोचो और दृढ़तापूर्वक कल्पना करो कि वह पूर्णरूपेण स्वस्थ हो गया है। इस से वह शीघ्र ही आरोग्य-लाभ करेगा। अस्वस्थ व्यक्ति को सूचित किये बिना भी तुम ऐसा कर सकते हो। और, हजारों कोस दूर से भी यह क्रिया की जा सकती है। इसे सदा याद रखो और कभी अस्वस्थ मत होओ। यदि तुम लोग चाहो तो मैंने मठ के लिए जो रकम भेजी है, उसमें से ३०० रु. गोपाल को दे देना। फिलहाल मेरे पास इतने पैसे नहीं कि भेज सकूँ। अब मुझे मद्रास की देखभाल करना है।
सान्याल अपनी लड़कियों की शादी कराने के लिए इतना अस्थिर क्यों हो गया है, समझ में नहीं आता। आखिर, बात तो यह है कि जिस गृहस्थी के पंक से वह स्वयं भागना चाहता है, उसी में वह अपनी बेटियों को घसीटना चाहता है! इस सम्बन्ध में मेरा बस एक ही सिद्धान्त हो सकता है – यह नितान्त निंदनीय है! बेटा-बेटी किसी का भी हो, विवाह के नाम से मैं घृणा करता हूँ। अहमकों! तुम क्या यह कहना चाहते हो, कि मैं किसी को बंधन में डालने में सहायता करूँ? यदि मेरा भाई बहिन विवाह कर ले, तो मैं उसे दूर कर दूँगा। इस सम्बन्ध में मैं दृढ़संकल्प हूँ!…
सप्रेम तुम्हारा,
विवेकानन्द