स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी क्रिश्चिन को लिखित (6 जुलाई, 1901)
(स्वामी विवेकानंद का भगिनी क्रिश्चिन को लिखा गया पत्र)
बेलूड़ मठ,
६ जुलाई, १९०१
प्रिय क्रिश्चिन,
कभी कभी किसी कार्य के आवेश से मैं विवश हो उठता हूँ। आज मैं लिखने के नशे में मस्त हूँ। इसलिए मैं सबसे पहले तुमको कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ। मेरे स्नायु दुर्बल हैं – ऐसी मेरी बदनामी है। अत्यन्त सामान्य कारण से ही मैं व्याकुल हो उठता हूँ। किन्तु प्रिय क्रिश्चिन, मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इस विषय में तुम भी मुझसे कम नहीं हो। हमारे यहाँ के एक कवि ने लिखा है ‘हो सकता है कि पर्वत भी उड़ने लगे, अग्नि में भी शीतलता उत्पन्न हो जाय, किन्तु महान् व्यक्ति के हृदय में स्थित महान् भाव कभी दूर नहीं होगा।’ मैं सामान्य व्यक्ति हूँ, अत्यन्त ही सामान्य; किन्तु मैं यह जानता हूँ कि तुम महान् हो, तुम्हारी महत्ता पर सदा मेरा विश्वास है। अन्यान्य विषयों में भले ही मुझे चिन्तित होना पड़े, किन्तु तुम्हारे बारे में मुझे तनिक भी दुश्चिन्ता नहीं है।
जगज्जननी के चरणों में मैं तुम्हें सौंप चुका हूँ। वे ही तुम्हारी सदा रक्षा करेंगी एवं मार्ग दिखाती रहेंगी। मैं यह निश्चित रूप से जानता हूँ कि कोई भी अनिष्ट तुम्हें स्पर्श नहीं कर सकता – किसी प्रकार की विघ्न-बाधाएँ क्षण भर के लिए भी तुम्हें दबा नहीं सकतीं। इति।
भगवदाश्रित,
विवेकानन्द