स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (19 दिसम्बर, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)
मठ, बेलूड़,हावड़ा,
१९ दिसम्बर, १९००ई०
प्रिय निवेदिता,
पृथ्वी के इस छोर से एक स्वर तुमसे यह प्रश्न कर रहा है कि ‘तुम किस प्रकार हो?’ क्या इस प्रश्न से तुम आश्चर्यान्वित हो रही हो? किन्तु मैं तो वास्तव में ऋतु के साथ विचरण करनेवाला एक विहंगम हूँ।
आनन्द से मुखरित तथा कर्मव्यस्त पेरिस, गम्भीर प्राचीन कान्स्टांटिनोप्ल, चमकदार छोटा ऐथेन्स, पिरामिड् से सुशोभित काहिरा – इन सभी स्थलों को मैं पीछे छोड़ आया हूँ; और अब मैं यहाँ पर, गंगातटवर्ती मठ में – अपनी छोटी सी कोठरी में बैठकर यह पत्र लिख रहा हूँ। चारों ओर कितनी शन्ति एवं निस्तब्धता छायी हुई है! विशाल नदी उज्जवल सूर्यकिरणों में नृत्य कर रही है; कदाचित् कभी दो-एक माल ढोनेवाली नावों के आगमन से यह स्तब्धता क्षण भर के लिए भंग होती हुई नजर आ रही है।
यहाँ पर इस समय शीतऋतु है; किन्तु प्रतिदिन का मध्याह्न उज्जवल तथा गरम है। यह दक्षिणी कैलिफोर्निया के जाड़े के समान है। चारों ओर हरित् तथा स्वर्ण वर्ण का बाहुल्य है; और तृणराजि मानो मखमल सदृश शोभायमान है। फिर भी वायु शीतल, स्वच्छ तथा सुखप्रद है।
तुम्हारा,
विवेकानन्द