स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (23 दिसम्बर, 1899)
(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)
४२१, २१वाँ रास्ता,
लॉस एंजिलिस,
२३ दिसम्बर, १८९९
प्रिय निवेदिता,
वास्तव में मैं चुम्बकीय चिकित्सा-पद्धति (magnetic healing) से क्रमशः स्वस्थ होता जा रहा हूँ। सच बात यह है कि अब मैं अच्छी तरह से हूँ। मेरे शरीर का कोई भी यन्त्र कभी नहीं बिगड़ा – स्नायुसम्बन्धी दुर्बलता तथा अजीर्ण ने ही मेरे शरीर में गड़बड़ी पैदा की थी।
अब मैं प्रतिदिन या तो भोजन से पहले हो या बाद में कोसों तक टहलने जाता हूँ। मैं पूर्णरूप से स्वस्थ हो चुका हूँ और मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि मैं ठीक ही रहूँगा।
अब चक्र घूम रहा है – माँ उसे घुमा रही हैं। उनका कार्य जब तक समाप्त नहीं होता, तब तक वे मुझे छोड़ना नहीं चाहतीं – असली बात यही है।
देखो, इंग्लैण्ड उन्नति की ओर किस प्रकार से अग्रसर हो रहा है। इस खून-खराबी के बाद वहाँ के लोगों को इस प्रकार की ‘लगातार लड़ाई, लड़ाई, लड़ाई’ की अपेक्षा महान् एवं श्रेष्ठ वस्तु के चिन्तन का अवकाश प्राप्त होगा। यहीं हमारे लिए सुअवसर है। अब हम पृथक् पृथक् टोली बनाकर कुछ प्रयत्नशील होकर उन्हें पकड़ेंगे, पर्याप्त मात्रा में धन एकत्र करेंगे एवं उसके बाद भारत के कार्य को भी पूर्णरूप से चालू कर देंगे।
मेरी प्रार्थना है कि इंग्लैण्ड केपकॉलोनी से हाथ धो बैठे; इस प्रकार अपनी शक्ति को भारत पर केन्द्रित करने में वह समर्थ हो सकेगा। ये तट-प्रदेश एवं प्रायद्वीप इंग्लैण्ड के लिए किसी लाभ के नहीं – सिवाय इसके कि इंग्लैण्ड इसके झूठे गर्व से फूल उठे, जो इसके संचित खून एवं सम्पत्ति दोनों को विनष्ट कर देगा। चारों ओर की अवस्थाएँ बहुत कुछ आशाप्रद प्रतीत हो रही हैं; अतः तैयार हो जाओ। चारों बहन तथा तुम मेरा स्नेह जानना।
विवेकानन्द