स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (28 मार्च, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)
१७१९ , टर्क स्ट्रीट,
सैन फ़्रांसिस्को,
२८ मार्च, १९००
प्रिय मार्गट,
तुम्हारे कार्य की सफलता देखकर मैं अति आनन्दित हूँ। यदि हम लोग लगे रहें, तो घटनाचक्र का परिवर्तन अवश्य होगा। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि तुम्हें जितने रूपये की आवश्यकता है, उसकी पूर्ति यहाँ से अथवा इंग्लैण्ड से अवश्य होगी।
मैं अत्यन्त परिश्रम कर रहा हूँ – और जितना अधिक परिश्रम कर रहा हूँ, उतना ही स्वस्थ होता जा रहा हूँ। यह निश्चित है कि शरीर अस्वस्थ हो जाने से मेरा बहुत भला हुआ है। अनासक्ति का यथार्थ तात्पर्य अब मैं ठीक ठीक समझने लगा हूँ और मुझे आशा है कि शीघ्र ही मैं पूर्णतया अनासक्त बन सकूँगा।
हम अपनी सारी शक्तियों को किसी एक विषय की ओर लगा देने के फलस्वरूप उसमें आसक्त हो जाते हैं ; तथा उसकी और भी एक दिशा है, जो नेतिवाचक होने पर भी उसके सदृश ही कठिन है – उस ओर हम बहुत कम ध्यान देते हैं – वह यह है कि क्षण भर में किसी विषय से अनासक्त होने की, उससे अपने को पृथक् कर लेने की शक्ति। आसक्ति और अनासक्ति, जब दोनों शक्तियों का पूर्ण विकास होता है, तभी मनुष्य महान् एवं सुखी हो सकता है।
श्रीमती लेगेट के १,००० डालर दान के समाचार से मुझे नितान्त ख़ुशी हुई। धैर्य रखो, उनके द्वारा जो कार्य सम्पन्न होनेवाला है, उसीका अब विकास हो रहा है। चाहे उन्हें यह विदित हो अथवा नहीं, श्रीरामकृष्ण देव के कार्य में उन्हें एक महान अभिनय करना पड़ेगा।
तुमने अध्यापक गेडिस के बारे में जो लिखा है, उसे पढ़कर मुझे ख़ुशी हुई। ‘जो’ ने भी एक अप्रत्यक्षदर्शी (clairvoyant) व्यक्ति के सम्बन्ध में एक मजेदार विवरण भेजा है।
सभी विषय अब हमारे लिए अनुकूल होते जा रहे हैं। मैं जो धन इकट्ठा कर रहा हूँ, वह यथेष्ट नहीं है, फिर भी वर्तमान कार्य के लिए कम नहीं है।
मैं समझता हूँ कि यह पत्र तुम्हें शिकागो में प्राप्त होगा। ‘जो’ तथा श्रीमती बुल इस बीच में निश्चय ही चल चुकी होंगी। ‘जो’ के पत्र तथा ‘तार’ में उनके आगमन के बारे में इतने विरोधी समाचार थे कि उन्हें पढ़कर मैं चिन्तित हो उठा था। सबसे अन्तिम समाचार है कि वे अब तक ‘ट्यूटानिक’ जहाज में सवार हो चुकी होंगी। कुमारी सूटर के स्विट्जरलैण्ड के एक मित्र मैक्स गेजिक का एक अच्छा सा पत्र मुझे मिला है। कुमारी सूटर ने भी मेरे प्रति अपना आन्तरिक स्नेह ज्ञापन किया है और उन लोगों ने यह जानना चाहा है कि मैं कब इंग्लैण्ड रवाना हो रहा हूँ। उन लोगों ने लिखा है कि वहाँ पर अनेक व्यक्ति इस विषय में पूछ-ताछ कर रहे हैं।
सभी वस्तुओं को चक्कर लगाकर वापस आना होगा। बीज से वृक्ष होने के लिए उसे जमीन के नीचे कुछ दिन तक सड़ना पड़ेगा। गत दो वर्षों का समय इसी प्रकार धरती के अन्दर सड़ने का समय था। मुत्यु के कराल गाल में फँसकर जब कभी भी मैं छटपटाता, तभी उसके दूसरे क्षण ही समग्र जीवन मानो प्रबल रूप से स्पन्दित हो उठता। इस प्रकार की एक घटना ने मुझे श्रीरामकृष्ण देव के समीप आकृष्ट किया और एक अन्य घटना के द्वारा मुझे संयुक्त राज्य, अमेरिका में आना पड़ा। अन्यान्य घटनाओं में यही सबसे अधिक उल्लेखनीय है। वह अब समाप्त हो चुकी है – अब मैं इतना निश्चल तथा शान्त बन चुका हूँ कि कभी कभी मुझे स्वयं ही आश्चर्य होने लगता है।
अब मैं सुबह-शाम पर्याप्त परिश्रम करता हूँ। जब जैसी इच्छा होती है भोजन करता हूँ, रात के बारह बजे सोता हूँ और नींद भी ख़ूब आती है। पहले कभी इस प्रकार सोने की शक्ति मुझमें नही थी। तुम मेरा आशीर्वाद तथा स्नेह जानना।
विवेकानन्द