स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी अखण्डानन्द को लिखित (24 जुलाई, 1897)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी अखण्डानन्द को लिखा गया पत्र)
ॐ नमो भगवते रामकृष्णाय


अल्मोड़ा,
२४ जुलाई, १८९७

कल्याणीय,

तुम्हारे पत्र में सविस्तर समाचार पाकर अत्यन्त खुशी हुई। अनाथालय के बारे में तुम्हारा जो अभिमत है, वह अति उत्तम है। श्रीमहाराज (स्वामी ब्रह्मानन्द) अविलम्ब ही उसे अवश्य पूर्ण करेंगे। एक स्थायी केन्द्र स्थापित करने के लिए पूर्णतया प्रयास करते रहना।… रुपयों के लिए कोई चिन्ता नहीं है – कल अल्मोड़ा से समतल प्रदेश में आने की मेरी अभिलाषा है। जहाँ भी हलचल होगी, वहीं दुर्भिक्ष के लिए चन्दा एकत्र करूँगा – चिन्ता न करना। कलकत्ते में जैसा हमारा मठ है, उसी नमूने से प्रत्येक जिले में जब एक-एक मठ स्थापित होगा, तभी मेरी मनोकामना पूरी होगी। प्रचार-कार्य बन्द न होने पाये एवं प्रचार की अपेक्षा विद्या-दान ही प्रधान कार्य है; ग्रामीण लोगों में भाषण आदि के द्वारा धर्म, इतिहास इत्यादि की शिक्षा देनी होगी – खासकर उन लोगों को इतिहास से परिचित करना होगा। हमारे इस शिक्षा-कार्य में सहायता प्रदान करने के लिए इंग्लैण्ड में एक सभा स्थापित की गयी है; उसका कार्य अत्यन्त सन्तोषजनक है, बीच-बीच में मुझे ऐसा समाचार मिलता रहता है। इसी तरह धीरे-धीरे चारों ओर से सहायता मिलती रहेगी – चिन्ता की क्या बात है? जो लोग यह समझते हैं कि सहायता मिलने पर कार्य प्रारम्भ किया जाय, उनसे कोई कार्य नहीं हो सकता। जो यह समझते हैं कि कार्य-क्षेत्र में उतरने पर अवश्य सहायता मिलेगी, वे ही कार्य सम्पादन कर सकते हैं।

सारी शक्तियाँ तुम्हारे भीतर विद्यमान हैं – इसमें विश्वास रखो। वे अभिव्यक्त हुए बिना नहीं रह सकतीं। मेरा हार्दिक प्यार तथा आशीर्वाद लेना तथा ब्रह्मचारी से कहना। तुम बीच-बीच में अत्यन्त उत्साहपूर्ण पत्र मठ में भेजते रहना, जिससे कि सब लोग उत्साहित होकर कार्य करते रहें। वाह गुरु की फतह! किमधिकमिति।

तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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