स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखित (17 जुलाई, 1898)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी ब्रह्मानन्द लिखा गया पत्र)

श्रीनगर,
१७ जुलाई, १८९८

अभिन्नहृदय,

तुम्हारे पत्र से सब समाचार विदित हुए।… सारदा के बारे में तुमने जो लिखा है, उसमें मेरा कहना इतना ही है कि बंगभाषा में पत्रिका को आयप्रद बनाना कठिन है; किन्तु यदि सब मिलकर घर-घर जाकर ग्राहक बनावें तो यह सम्भव हो सकता है। इस विषय में तुम्हें जो उचित प्रतीत हो, करना। बेचारा सारदा एक बार विफल-मनोरथ हो चुका है। जो व्यक्ति इतना कार्यशील तथा स्वार्थशून्य है, उसकी सहायता के लिए यदि एक हजार रुपये पर पानी भी फिर जाय तो क्या कोई नुकसान की बात है? ‘राजयोग’ के मुद्रण का क्या समाचार है? अन्तिम उपाय के रूप में तुम इसका भार उपेन पर सौंप सकते हो – इस शर्त पर कि विक्रय के लाभ का कुछ अंश उसे प्राप्त हो सकता है। रुपये-पैसे के बारे में मैंने पहले जो कुछ लिखा है, उसे ही अन्तिम निर्णय समझना। अब लेन-देन के बारे में तुम स्वयं ही सोच-समझकर कार्य करते रहना। मुझे यह साफ दिखायी दे रहा है कि मेरी कार्यप्रणाली ठीक नहीं है। तुम्हारी नीति ठीक है – दूसरों को सहायता देने के सम्बन्ध में – अर्थात् एकदम अधिकाधिक देने से लोग कृतज्ञ न बनकर उल्टा यह समझने लगते हैं कि अच्छा बेबकूफ फँसा है। दान के फलस्वरूप दान लेने वालों में नैतिक पतन होता है, इस बात का कभी मुझे ख्याल भी नहीं था। दूसरी बात यह है कि जिस विशेष कार्य के लिए लोग दान देते हैं, उससे थोड़ा बहुत इधर-उधर करने का अधिकार हमें नहीं हैं। काश्मीर के प्रधान न्यायाधीश श्री ऋषिवर मुकर्जी के पते पर भेजने से ही श्रीमती बुल को माला मिल जायगी। मित्र साहब तथा जज साहब इन लोगों की अच्छी तरह से देखभाल कर रहे हैं। काश्मीर में अभी तक हमें जमीन नहीं मिल सकी है – शीघ्र ही मिलने की आशा है। जाड़े की ऋतु में एक बार यहाँ रहने से ही तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक हो जायगा। यदि उत्तम मकान तथा पर्याप्त मात्रा में लकड़ी हो एवं साथ में गरम कपड़े रहें तो बर्फ के देश में आनन्द ही है, दुःख का नाम भी नहीं है। पेट की बीमारी के लिए ठण्डा देश रामबाण औषधि है। योगेन भाई को भी साथ लेते आना; क्योंकि यह पहाड़ी देश नहीं है, यहाँ की मिट्टी भी बंग देश जैसी है।

अल्मोड़ा से पत्रिका निकालने पर बहुत कुछ कार्य अग्रसर हो सकता है; क्योंकि इससे बेचारे सेवियर को भी एक कार्य मिल जायगा तथा अल्मोड़ा के लोगों को भी कार्य करने का अवसर प्राप्त होगा। सबको उनके मन के अनुसार कार्य देना ही विशेष कुशलता की बात है। कलकत्ते में जैसे भी हो सके ‘निवेदिता बालिका विद्यालय’ को सुस्थापित करना ही होगा। मास्टर महाशय को काश्मीर लाना अभी बहुत दूर की बात है, क्योंकि यहाँ पर कॉलेज स्थापित होने में अभी बहुत देर है। किन्तु उन्होंने लिखा है कि उन्हें आचार्य बनाकर कलकत्ते में एक कॉलेज स्थापित करने की दिशा में एक हजार रुपये प्रारम्भिक व्यय से कार्य प्रारम्भ कर देना सम्भव हो सकता है। मैंने सुना है कि इसमें तुम लोग भी राजी हो। इस बारे में जैसा उचित समझो व्यवस्था करना। मेरा स्वास्थ्य ठीक है। रात में प्रायः उठना नहीं पड़ता है, यद्यपि सुबह-शाम भात, आलू, चीनी जो कुछ मिलता है, खा लेता हूँ। दवा किसी काम की नहीं हैं – ब्रह्मज्ञानी के शरीर पर दवा का कोई असर नहीं होता! वह हजम हो जायगी – कोई डर की बात नहीं है।

महिलाएँ सब कुशलपूर्वक हैं और वे तुम लोगों को स्नेह ज्ञापन कर रही हैं। शिवानन्दजी के दो पत्र आए हैं। उनके आस्ट्रेलियन शिष्य का भी एक पत्र मिला है। सुनता हूँ कि कलकत्ते में प्लेग बिल्कुल बन्द हो गया है। इति।

सस्नेह तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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