स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखित (23 अप्रैल, 1898)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी ब्रह्मानन्द लिखा गया पत्र)
दार्जिलिंग,
२३ अप्रैल, १८९८
अभिन्नहृदय,
सन्दुकफू (Sondukphu 11, 924) इत्यादि स्थानों से लौटने के बाद मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा था, किन्तु पुनः दार्जिलिंग आते ही प्रथम मुझे ज्वर हो आया था, बाद में इस समय ज्वर तो नहीं है, किन्तु जुकाम से पीड़ित हूँ। प्रतिदिन ही चले जाने का प्रयत्न करता हूँ; किन्तु ‘आज जाना, कल जाना’ करके इन लोगों ने देरी कर दी। अस्तु, कल रविवार को यहाँ से रवाना होकर मार्ग में ‘खर्सान’ में एक दिन रुककर सोमवार को कलकत्ता चल दूँगा। रवाना होते ही ‘तार’ से सूचित करूँगा। रामकृष्ण मिशन की एक वार्षिक सभा होनी चाहिए तथा मठ की भी होनी चाहिए। दोनों जगह ही दुर्भिक्ष-सहायता का हिसाब प्रस्तुत करना होगा तथा अकाल-पीड़ित सहायता सम्बन्धी विवरण प्रकाशित करना होगा। ये सब तैयार रखना।
नृत्यगोपाल कहता है कि अंग्रेजी पत्रिका के लिए खर्च कम करना पड़ेगा। अतः पहले उसे प्रकाशित करने के उपरान्त बंगला के लिए बाद में विचार किया जायेगा। इन सारी बातों के लिए सोचना पड़ेगा। क्या योगेन पत्र-प्रकाशन के उत्तरदायित्व को सँभालना चाहता है? शशि ने लिखा है कि यदि शरत् का मद्रास जाना सम्भव हो तो वे दोनों व्याख्यान देते हुए भ्रमण कर सकते हैं। परन्तु इस समय अत्यधिक गर्मी है! शरत् से पूछना कि जी. सी., सारदा, शशि बाबू आदि ने लेख तैयार कर रखे हैं या नहीं? श्रीमती बुल, मैक्लिऑड तथा निवेदिता को मेरा स्नेह तथा आशीर्वाद कहना।
सस्नेह तुम्हारा,
विवेकानन्द