स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखित (30 नवम्बर, 1897)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखा गया पत्र)

दिल्ली,
३० नवम्बर, १८९७

अभिन्नहृदय,

कुमारी मूलर ने जो दान देने के बारे में लिखा है, उसमें से कुछ अंश कलकत्ते पहुँच चुका है। अवशिष्टांश शीघ्र ही आने वाला है। उसमें हम लोगों का भी कुछ है। कुमारी मूलर तुम्हारे एवं मेरे नाम से ग्रिण्डाल कम्पनी में रुपये जमा करेंगी। तुम्हारे नाम मुख्तारनामा रहने के कारण तुम अकेले ही तमाम रुपये उठा सकते हो। ज्योंही रुपया जमा हो जाय, त्योंही हरि के साथ तुम स्वयं पटना जाकर उस व्यक्ति से वार्तालाप करो एवं जैसे भी बने उसे राजी करो; और यदि उस जमीन का मूल्य उचित समझो तो उसे खरीद लो। अन्यथा दूसरी जमीन के लिए प्रयत्न करो। मैं भी इधर रुपये एकत्र करने की व्यवस्था कर रहा हूँ। चाहे कुछ भी क्यों न हो, अपनी जमीन में महोत्सव करके ही दम लेना है। इस बात को न भूलना।

इन ८-९ महीनों में तुमने जो कुछ किया है, बहुत किया है – बहुत बहादुरी दिखायी है। अब झटपट एक मठ तथा कलकत्ते में अपना एक केन्द्र स्थापित कर लेने के बाद आगे बढ़ना है। इस ध्येय की पूर्ति के लिए काम-काज मेहनत के साथ एवं बहुत ही गोपनीय रूप में करना। काशीपुर के मकान का भी ख्याल रखना। कल मैं अलवर होकर खेतड़ी रवाना हो रहा हूँ। यद्यपि मुझे जुकाम हुआ है फिर भी शरीर ठीक है। पत्रादि खेतड़ी के पते पर भेजना। सबसे प्यार कहना। इति।

सस्नेह तुम्हारा,
विवेकानन्द

पुनश्च – उस वसीयतनामे का क्या हुआ जिसको मैंने शरत् एवं हरि के नाम करने के लिए तुमसे कहा था? अथवा क्या तुम जमीन आदि मेरे नाम से खरीदोगे जिससे कि मैं ही वसीयत कर सकूँ?

वि.

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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