स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखित (30 सितम्बर, 1897)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखा गया पत्र)
श्रीनगर, काश्मीर,
३० सितम्बर, १८९७
अभिन्नहृदय,
तुम्हारा प्रेमपूर्ण पत्र मिला एवं मठ से भी पत्र प्राप्त हुआ। दो-तीन दिन के अन्दर ही मैं पंजाब रवाना हो रहा हूँ। विलायत से बुलावा आया है। कुमारी नोबल ने अपने पत्र में जो जो प्रश्न किए हैं, उनके बारे में मेरे उत्तर निम्नलिखित हैं –
१. प्रायः सभी शाखा-केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैं, किन्तु अभी आन्दोलन का प्रारम्भ मात्र है।
२. संन्यासियों में अधिकांश शिक्षित हैं, जो लोग ऐसे नहीं हैं उनको व्यावहारिक शिक्षा दी जा रही है। किन्तु सर्वोपरि निष्कपट स्वार्थशून्यता ही सत्कार्य के लिए नितान्त आवश्यक है। तदर्थ अन्यान्य शिक्षाओं की अपेक्षा आध्यात्मिक शिक्षा की ओर ही विशेष ध्यान दिया जाता है।
३. व्यावहारिक शिक्षक-वर्ग – जो कि हमारे कार्यकर्ता हैं – उनमें अधिकांश शिक्षित हैं। इस समय केवल उन लोगों को हमारी कार्यप्रणाली की शिक्षा देना तथा उनके चरित्र का निर्माण करना आवश्यक है। शिक्षा का उद्देश्य है – उनको आज्ञावाहक तथा निर्भीक बनाना; और उसकी प्रणाली है – सर्वप्रथम गरीबों की शरीर-यात्रा की व्यवस्था करना तथा क्रमशः मानसिक उच्चतर स्तरों की ओर अग्रसर होना।
शिल्प एवं कला – अर्थाभाव के कारण हमारी कार्यसूची के अन्तर्गत केवल इस अंग को अभी हम प्रारम्भ नहीं कर पा रहे हैं। इस समय जो कार्य करने का सीधा-सादा ढंग अपनाया जा सकता है, वह यह है कि भारतवासियों में स्वदेशी वस्तु काम में लाने की भावना जाग्रत करनी होगी तथा भारत की बनी हुई वस्तुओं को भारत के बाहर बेचने के लिए बाजार की व्यवस्था की ओर ध्यान देना पड़ेगा। जो स्वयं दलाल नहीं हैं, साथ ही इस शाखा के द्वारा जो लाभ होगा उसे जो कारीगरों के उपकारार्थ व्यय करने के लिए प्रस्तुत हों – एकमात्र ऐसे लोगों के द्वारा ही यह कार्य होना चाहिए।
४. विभिन्न स्थानों में पर्यटन करना तब तक ही आवश्यक समझा जायगा, जब तक ‘जनता शिक्षा की ओर आकृष्ट न हो’, परिव्राजक संन्यासियों के लिए धार्मिक भावना तथा धार्मिक जीवन अन्य सब कार्यों की अपेक्षा अत्यधिक फलदायक होगा।
५. बिना किसी प्रकार के जातिगत भेद के अपने प्रभाव का विस्तार करना होगा। अब तक केवल उच्चतम वर्ग में ही कार्य होता रहा है; किन्तु दुर्भिक्ष-सहायता केन्द्रों में हमारे कार्य-विभाग के द्वारा कार्य प्रारम्भ किए जाने के बाद से निम्नतर जातियों को हम प्रभावान्वित करने में सफल हो रहे हैं।
६. प्रायः सभी हिन्दू हमारे कार्य का समर्थन करते हैं, किन्तु इस प्रकार के कार्य में प्रत्यक्ष सहायता प्रदान करने के लिए वे अभ्यस्त नहीं हैं।
७. हाँ, एक बात यह भी है कि हम पहले से ही दान तथा अन्यान्य सत्कार्यों में भारतीय विभिन्न धर्मावलम्बियों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करते हैं।
इन सूत्रों के आधार पर कुमारी नोबल को पत्र लिखना पर्याप्त होगा। योगेन की चिकित्सा में किसी प्रकार की त्रुटि न होनी चाहिए – आवश्यकता पड़ने पर मूल धनराशि से भी खर्च करना। भवनाथ की पत्नी को क्या तुम देखने गए थे?
ब्रह्मचारी हरिप्रसन्न यदि आ सके तो बहुत ही उत्तम है। श्री सेवियर कोई घर प्राप्त करने के लिए अत्यन्त अधीर हो उठे हैं – शीघ्र ही इसकी कोई व्यवस्था हो जाय तो अच्छा है। हरिप्रसन्न इंजीनियर है – इस बारे में शीघ्रता से वह कुछ कर सकता है तथा समुचित स्थान आदि का ज्ञान उसे अच्छा है। देहरादून-मसूरी के समीप वे लोग (सेवियर दम्पत्ति) जगह लेना चाहते हैं; अर्थात् जहाँ सर्दी अधिक न हो तथा बारहों महीने रहा जा सके। अतः इस पत्र को पाते ही हरिप्रसन्न को श्री श्यामापद मुखोपाध्याय के मकान, मेडिकल हॉल, अम्बाला कैंट – इस पते पर रवाना कर देना। मैं पंजाब में आते ही सेवियर को उसके साथ भेज दूँगा। मैं शीघ्र ही पंजाब होता हुआ काठियावाड़-गुजरात न जाकर कराची एवं वहाँ से राजपूताना के अन्दर होकर नेपाल का चक्कर लगाता हुआ जल्द ही वापस (मठ) आ रहा हूँ। दुर्भिक्ष में कार्य करने के लिए क्या तुलसी मध्यभारत गया है? यहाँ पर हम लोग सकुशल हैं – ‘पेशाब में शक्कर’ इत्यादि की कोई शिकायत नहीं है। डॉक्टर मित्र ने परीक्षा की थी। कभी पेट गरम होने पर पेशाब में गाढ़ापन (specifi c gravity) की कुछ वृद्धि होती है – बस इतना ही। साधारण स्वास्थ्य बहुत अच्छा है तथा डाइबेटिस तो बहुत दिन पहले ही भाग चुका है – अब आगे डरना नही है। चावल, चीनी आदि के व्यवहार से भी जब कोई हानि नहीं हुई तो डरने की कोई बात नहीं है।
सबसे मेरा आशीर्वाद तथा प्यार कहना। मुझे समाचार प्राप्त हुआ है कि काली न्यूयार्क पहुँच चुका है; किन्तु उसने कोई पत्र नहीं दिया है। स्टर्डी ने लिखा है कि उसका कार्य इतना बढ़ गया था कि लोग आश्चर्य करने लगे थे – साथ ही दो-चार व्यक्तियों ने उसकी विशेष प्रशंसा कर पत्र भी लिखा है। अस्तु, अमेरिका में इतनी अधिक गड़बड़ी नहीं है – काम किसी तरह चलता रहेगा। शुद्धानन्द तथा उसके भाई को भी हरिप्रसन्न के साथ भेज देना। वर्तमान दल में से केवल गुप्त तथा अच्युत मेरे साथ रहेंगे।
सस्नेह तुम्हारा,
विवेकानन्द