स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखित (1901)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखा गया पत्र)
मठ, बेलूड़,
प्रिय शशि,
बस इतना समझ लो कि मैं अपनी माँ के साथ रामेश्वरम् जा रहा हूँ। मैं मद्रास जा भी सकूँगा या नहीं, मुझे नहीं मालूम। यदि गया तो यह बिल्कुल व्यक्तिगत मामला होगा। मेरा तन और मन बुरी तरह थक चुका है, और मैं किसीकी भी उपस्थिति सहन नहीं कर सकता। मैं अपने साथ किसीको नहीं चाहता। न तो मेरे पास शक्ति है, न पैसा और न इच्छा ही कि मैं किसीको अपने साथ ले जा सकूँ। फिर वे चाहे गुरू महाराज के भक्त-जन हों या कोई और, इससे अन्तर नहीं पड़ता। इस संबंध में तुम्हारी जिज्ञासा भी सरासर मूर्खता थी। मैं तुमसे फिर कहता हूँ, मैं जीवित की अपेक्षा मरा हुआ अधिक हूँ और किसीसे मिलना मुझे कतई स्वीकार नहीं। यदि तुम वैसा प्रबन्ध नहीं कर सकते, तो मैं मद्रास नहीं जाता। अपने शरीर की रक्षा के लिए मुझे कुछ न कुछ तो स्वार्थी बनना ही पड़ेगा।
योगिन माँ और दूसरे लोग जो चाहें उन्हें करने दो। अपने वर्तमान स्वास्थ्य को देखते हुए मैं किसीको भी अपने साथ नहीं ले जा सकता।
सस्नेह,
विवेकानन्द