स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी त्रिगुणातीतानन्द को लिखित (10 अक्टूबर, 1897)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी त्रिगुणातीतानन्द को लिखा गया पत्र)

मरी,
१० अक्टूबर, १८९७

प्रिय सारदा,

तुम्हारे पत्र से यह जानकर कि तुम्हारा शरीर ठीक नहीं हैं, मुझे दुःख हुआ। अप्रिय लोगों को यदि लोकप्रिय बना सको तभी तो बहादुरी है! वहाँ पर कार्य होने की कोई सम्भावना नहीं है। वहाँ न जाकर ढाका अथवा अन्यत्र कहीं जाना ही अच्छा था। अस्तु, नवम्बर में काम बन्द करना ही अच्छा है। यदि शरीर विशेष खराब हो तो वापस चले आना। मध्यप्रदेश में अनेक कार्यक्षेत्र हैं एवं दुर्भिक्ष के अलावा भी हमारे देश में गरीब लोगों की कमी कहाँ है? जहाँ कहीं भी हो भविष्य की ओर ध्यान रखकर जम जाने से कार्य हो सकता है। अस्तु, तुम्हें दुःख नहीं महसूस करना चाहिए।

जो कुछ भी किया जाता है, वह कभी नष्ट नहीं होता; भविष्य में वहाँ पर सोने की उपज नहीं होगी – यह कौन कह सकता है?

मैं शीघ्र ही देश में कार्य प्रारम्भ करना चाहता हूँ। अब पहाड़ों में भ्रमण करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

शरीर की ओर ध्यान रखना। किमधिकमिति।

सस्नेह तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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