स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी तुरीयानन्द को लिखित (सितम्बर, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी तुरीयानन्द को लिखा गया पत्र)
६, प्लेस द एतात युनि,
सितम्बर, १९००
प्रिय तुरीयानन्द,
अभी अभी तुम्हारा पत्र मिला। ‘माँ’ की इच्छा से सब कार्य चलते रहेंगे, डरने की कोई बात नहीं है। मैं शीघ्र ही यहाँ से दूसरी जगह जा रहा हूँ। सम्भवतः ‘कान्स्ट टिनोप्ल’ तथा कुछ अन्य स्थानों में कुछ दिन तक भ्रमण करता रहूँगा। आगे ‘माँ’ जाने। श्रीमती वीलमॉट का पत्र मिला। उससे पता चला कि उसमें बहुत कुछ उत्साह है। निश्चिन्त रहो और जमकर बैठ जाओ। सब कुछ ठीक हो जायगा। अगर ‘नाद-श्रवण’ आदि से किसीको कोई नुकसान पहुँचे, तो इससे वह मुक्त हो सकता है, यदि वह ध्यान करना कुछ समय के लिए छोड़ दे और मांसमछली खाना प्रारम्भ कर दे। अगर देह क्रमशः कमजोर नहीं हो रही है, तो चिन्ता करने का कोई कारण नहीं।… धीरे धीरे अभ्यास करना चाहिए।
तुम्हारे पत्र का जवाब आने से पहले ही मैं इस स्थान से चल दूँगा। अतः इसका जवाब यहाँ न भेजना। शारदा के प्रेषित कागजादि सब कुछ मुझे मिल गये हैं। और उसे कुछ सप्ताह पूर्व बहुत कुछ लिखा जा चुका है। भविष्य में उसे और भी लिखने का विचार है।
अब मुझे कहाँ रवाना होना है, इसका कोई निश्चय नहीं है। केवल मैं इतना ही लिख सकता हूँ कि मैं निश्चिन्त होने का प्रयास कर रहा हूँ।
काली का एक पत्र आज मुझे मिला है। उसका जवाब कल दूँगा। मेरा शरीर एक प्रकार से ठीक ही चल रहा है। परिश्रम करने से गड़बड़ी होती है, और बिना परिश्रम के ठीक रहता हूँ, बस, यही स्थिति है। ‘माँ’ जानें। निवेदिता इंग्लैण्ड गयी हुई हैं, श्रीमती बुल और वह – दोनों मिलकर धन संग्रह कर रही हैं। किशनगढ़ की बालिकाओं को लेकर वहीं पर वह स्कूल खोलना चाहती हैं। वह जो कुछ कर सके – ठीक है। मैं अब किसी विषय में कुछ भी नहीं कहता हूँ – बस इतना ही है।
मेरा स्नेह जानना। किन्तु कार्य के सम्बन्ध में मुझे कोई उपदेश नहीं देना है। इति।
दास,
विवेकानन्द