शनि कवच – Shani Kavach
शनि कवच ऐसा अमोघ स्तोत्र है जो शनि देव की वक्र दृष्टि से बचाने में समर्थ है। नवग्रहों में शनि देव का स्थान प्रमुख है। वे स्वयं भगवान सूर्य के पुत्र तथा परलोक में पाप-पुण्य के नियामक धर्मराज के भाई हैं। कलिकाल के बंधन को विदीर्ण करने वाली भगवती यमुना जी उनकी बहन हैं। ग्रहों में उन्हें न्यायाधीश की भूमिका प्राप्त है और वे कर्मों के अनुसार सभी को फल प्रदान करते हैं। त्रिलोक में ऐसा कोई भी नहीं जो उनकी वक्र दृष्टि से बचने में सक्षम हो। उनके ताप से केवल शुभ कर्म और उनकी कृपा ही मुक्ति दिला सकते हैं। यहाँ दिए जा रहे शनि कवच स्तोत्र का पाठ उनकी कृपा पाने का बहुत ही सरल किंतु निष्कंटक मार्ग है। इसका उच्चारण शनि देव को प्रसन्न करता है। इस दिव्य शनि कवच का हिंदी अनुवाद (Shani Kavach in Hindi) भी शीघ्र ही यहाँ प्रस्तुत किया जाएगा।
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शनि कवच पढ़ें
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः।
अनुष्टुप् छन्दः। शनैश्चरो देवता। शीं शक्तिः।
शूं कीलकम्। शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।
निलांबरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः ॥१॥
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ब्रह्मोवाच
श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ॥२॥
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥३॥
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः।
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः ॥४॥
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नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा।
स्निग्धकंठःश्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः ॥५॥
स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्सथा ॥६॥
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नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटिं तथा।
ऊरू ममांतकः पातु यमो जानुयुगं तथा ॥७॥
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पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः।
अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनंदनः ॥८॥
इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः ॥९॥
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा ।
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ॥१०॥
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ॥११॥
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा।
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशायते सदा
जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः ॥१२॥
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॥ इति श्रीब्रह्मांडपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनैश्चरकवचं संपूर्णं ॥
॥ ब्रह्मांड पुराण में ब्रह्म-नारद संवाद में शनि कवच स्तोत्र संपूर्ण हुआ ॥
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विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर शनि कवच (Shani Kavach) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें शनि कवच रोमन में–
Read Shani Kavach
asya śrī śanaiścarakavacastotramaṃtrasya kaśyapa ṛṣiḥ।
anuṣṭup chandaḥ। śanaiścaro devatā। śīṃ śaktiḥ।
śūṃ kīlakam। śanaiścaraprītyarthaṃ jape viniyogaḥ।
nilāṃbaro nīlavapuḥ kirīṭī gṛdhrasthitastrāsakaro dhanuṣmān।
caturbhujaḥ sūryasutaḥ prasannaḥ sadā mama syādvaradaḥ praśāntaḥ ॥1॥
brahmovāca
śruṇūdhvamṛṣayaḥ sarve śanipīḍāharaṃ mahat।
kavacaṃ śanirājasya saureridamanuttamam ॥2॥
kavacaṃ devatāvāsaṃ vajrapaṃjarasaṃjñakam।
śanaiścaraprītikaraṃ sarvasaubhāgyadāyakam ॥3॥
oṃ śrīśanaiścaraḥ pātu bhālaṃ me sūryanaṃdanaḥ।
netre chāyātmajaḥ pātu pātu karṇau yamānujaḥ ॥4॥
nāsāṃ vaivasvataḥ pātu mukhaṃ me bhāskaraḥ sadā।
snigdhakaṃṭhaḥśca me kaṃṭhaṃ bhujau pātu mahābhujaḥ ॥5॥
skaṃdhau pātu śaniścaiva karau pātu śubhapradaḥ।
vakṣaḥ pātu yamabhrātā kukṣiṃ pātvasitatsathā ॥6॥
nābhiṃ grahapatiḥ pātu maṃdaḥ pātu kaṭiṃ tathā।
ūrū mamāṃtakaḥ pātu yamo jānuyugaṃ tathā ॥7॥
pādau maṃdagatiḥ pātu sarvāṃgaṃ pātu pippalaḥ।
aṅgopāṅgāni sarvāṇi rakṣenme sūryanaṃdanaḥ ॥8॥
ityetatkavacaṃ divyaṃ paṭhetsūryasutasya yaḥ।
na tasya jāyate pīḍā prīto bhavati sūryajaḥ ॥9॥
vyayajanmadvitīyastho mṛtyusthānagatoSpi vā ।
kalatrastho gato vāpi suprītastu sadā śaniḥ ॥10॥
aṣṭamasthe sūryasute vyaye janmadvitīyage।
kavacaṃ paṭhato nityaṃ na pīḍā jāyate kvacit ॥11॥
ityetatkavacaṃ divyaṃ saureryanirmitaṃ purā।
dvādaśāṣṭamajanmasthadoṣānnāśāyate sadā
janmalagnāsthitāndoṣānsarvānnāśayate prabhuḥ ॥12॥
॥ iti śrībrahmāṃḍapurāṇe brahma-nāradasaṃvāde śanaiścarakavacaṃ saṃpūrṇaṃ ॥
॥ brahmāṃḍa purāṇa meṃ brahma-nārada saṃvāda meṃ śani kavaca stotra saṃpūrṇa huā॥