श्री गंगा दशहरा
“श्री गंगा दशहरा” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया “नवल” द्वारा ब्रज भाषा में रचित गंगा दशहरा पर्व को समर्पित कविता है। आप भी आनंद लें।
गोरी पिया कों रही है समझाय, दशहरा चलौ न्हाइबे।
सगर सुतन कों तारन बारी गंगा सरग नसैनी,
महादेव के सीस बिराजै, भक्तनि कौं सुख दैंनी।
जोगी जती संत नित न्हाबैं भवसागर तें तरिबे,
दूरि-दूरि ते यात्री आबैं, मंशा पूरी करिबे,
सकारे चलौ न्हाइबे।
चारि दिना की बात गैल में कछु पाइनि चलि लेंउगी,
पाँच रुपैया चारि अधेली भाड़े में दै देंउगी।
कछू गुटेटा बेसन बत्ता सतुआ कछु गुरधानी,
थोरी सी पूरी धरि लेउंगी, भुँजे चना अरु पानी,
बैठोंगी संग खाइवे।
बड़े भाग सौं नर तन पायौ सुकृत कछू करबे कौं,
देगौ साथ पुन्य ही जग में दुख दारिद हरिबे कौं।
माया संग न जानी आखिर मन में रहै परेखौ,
मानों कही, चलौ सँग पीतम आगे की कछु देखौ,
जनम फल पाइबे।
गंगाजी कौ अमल विमल, जस वेद पुराननि गायौ,
याकी समता करिबे काजें कोउ उपमान न पायौ ।
पावन जलहिं छुयें तो पाबैं, मन वांछित फल चारौ
पापी सूधे सरग सिधारें सूर्य-पुत्र हू हारौ,
चलौंगी गुन गाइबे।
कोउ चढ़ाबै दूध बतासा कोऊ फूल चढ़ाबै,
कोऊ जौ अच्छत अरु चंदन चुनरी लाल उढ़ावै ।
हर हर गंगा! हर हर गंगा! बोंले नर अरु नारी,
झालरि-संख बजे घाटनि पै घण्टनि की धुनि भारी,
सो आबैं नर ध्याइबे।
गैया बछरा गंगा मैया, बिन माँगे दै देयगी,
जल में घुसत खेंम ही पल में दिन नीके करि देयगी।
क्वारे में हौं गंगा न्हाई, वर नीको पाइबे कौं,
संग-संग अब डुबकी लैउंगी, गोदी भरि जाइबे कौं,
कछू ना औरु माँगिबे।
गोरी पिया कूँ रही है समझाइ, दशहरा चलौ न्हाइबे।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।
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