धर्म

कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र – Krishna Kripa Kataksh Stotra

कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र” एक संस्कृत स्तोत्र है जिसे स्वयं शंकराचार्य जी ने रचा था। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण की कृपा और उनके प्रेम का वर्णन करता है। स्तोत्र में कुल नौ श्लोक हैं, और प्रत्येक श्लोक में 4 पंक्तियाँ हैं। इन में नौ भगवान शंकराचार्य कहते हैं कि यदि कोई भक्त किसी भी पूजा पद्धति से जुड़ा न हो, लेकिन केवल इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करे, तो कृष्ण जी जल्द ही उसे अपनी प्रेम-भक्ति देंगे।

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,
स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं,
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम्॥ (१)

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं,
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं,
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णावारणम्॥ (२)

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं,
व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम्।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम्॥ (३)

सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं,
दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम्।
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं,
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम्॥ (४)

भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं,
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम्।
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं,
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसम्भवम्॥ (५)

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं,
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम्।
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलम्पटं,
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम्॥ (६)

समस्तगोपनन्दनं हृदम्बुजैकमोदनं,
नमामि कुंजमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम्।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं,
रसालवेणुगायकं नमामि कुंजनायकम्॥ (७)

विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनं,
नमामि कुंजकानने प्रव्रद्धवन्हिपायिनम्।
किशोरकान्तिरंजितं दृअगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्॥ (८)

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा,
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम्।
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान,
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान॥ (९)

॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें यह Shri Krishna Kripa Kataksh Stotra रोमन में–

Read Krishna Kripa Kataksh Stotra

bhaje vrajaikamaṇḍanaṃ samastapāpakhaṇḍanaṃ,
svabhaktacittaraṃjanaṃ sadaiva nandanandanam।
supicchagucchamastakaṃ sunādaveṇuhastakaṃ,
anaṃgaraṃgasāgaraṃ namāmi kṛṣṇanāgaram॥ (1)

manojagarvamocanaṃ viśālalolalocanaṃ,
vidhūtagopaśocanaṃ namāmi padmalocanam।
karāravindabhūdharaṃ smitāvalokasundaraṃ,
mahendramānadāraṇaṃ namāmi kṛṣṇāvāraṇam॥ (2)

kadambasūnakuṇḍalaṃ sucārugaṇḍamaṇḍalaṃ,
vrajāṃganaikavallabhaṃ namāmi kṛṣṇadurlabham।
yaśodayā samodayā sagopayā sanandayā,
yutaṃ sukhaikadāyakaṃ namāmi gopanāyakam॥ (3)

sadaiva pādapaṃkajaṃ madīya mānase nijaṃ,
dadhānamuktamālakaṃ namāmi nandabālakam।
samastadoṣaśoṣaṇaṃ samastalokapoṣaṇaṃ,
samastagopamānasaṃ namāmi nandalālasam॥ (4)

bhuvo bharāvatārakaṃ bhavābdhikarṇadhārakaṃ,
yaśomatīkiśorakaṃ namāmi cittacorakam।
dṛgantakāntabhaṃginaṃ sadā sadālisaṃginaṃ,
dine dine navaṃ navaṃ namāmi nandasambhavam॥ (5)

guṇākaraṃ sukhākaraṃ kṛpākaraṃ kṛpāparaṃ,
suradviṣannikandanaṃ namāmi gopanandanam।
navīnagopanāgaraṃ navīnakelilampaṭaṃ,
namāmi meghasundaraṃ taḍitprabhālasatpaṭam॥ (6)

samastagopanandanaṃ hṛdambujaikamodanaṃ,
namāmi kuṃjamadhyagaṃ prasannabhānuśobhanam।
nikāmakāmadāyakaṃ dṛgantacārusāyakaṃ,
rasālaveṇugāyakaṃ namāmi kuṃjanāyakam॥ (7)

vidagdhagopikāmanomanojñatalpaśāyinaṃ,
namāmi kuṃjakānane pravraddhavanhipāyinam।
kiśorakāntiraṃjitaṃ dṛagaṃjanaṃ suśobhitaṃ,
gajendramokṣakāriṇaṃ namāmi śrīvihāriṇam॥ (8)

yadā tadā yathā tathā tathaiva kṛṣṇasatkathā,
mayā sadaiva gīyatāṃ tathā kṛpā vidhīyatām।
pramāṇikāṣṭakadvayaṃ japatyadhītya yaḥ pumāna,
bhavetsa nandanandane bhave bhave subhaktimāna॥ (9)

॥ hari: oṃ tat sat ॥

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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