राहु ग्रह – Rahu Dev
राहु ग्रह का मुख भयंकर है। ये सिर पर मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर काले रंग का वस्त्र धारण करते हैं। इनके हाथों में क्रमशः- तलवार, ढाल, त्रिशूल और वरमुद्रा है तथा ये सिंह के आसनपर आसीन हैं। ध्यान में ऐसे ही राहु प्रशस्त माने गये हैं।
राहु ग्रह की माता का नाम सिंहि का है, जो विप्रचित्ति की पत्नी तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री थी। माता के नाम से राहु को सैंहिकेय भी कहा जाता है। राहु के सौ और भाई थे, जिन में राहु सबसे बढ़ा-चढ़ा था ( श्रीमद्भागवत ६ ६ । ३६ )।
जिस समय समुद्र मंथन के बाद भगवान विष्णु मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे, उसी समय राहु देवताओं का वेष बनाकर उनके बीच में आ बैठा और देवताओं के साथ उसने भी अमृत पी लिया।
परन्तु तत्क्षण चन्द्रमा और सूर्य ने उसकी पोल खोल दी। अमृत पिलाते-पिलाते ही भगवान्ने अपने तीखी धार वाले सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट डाला। अमृत का संसर्ग होने से वह अमर हो गया और ब्रह्मा जी ने उसे ग्रह बना ( श्रीमद्भागवत ८। ९ । २६ ) दिया।
राहु संबंधी जानकारियाँ
महाभारत भीष्मपर्व ( १२। ४०) के अनुसार राहु ग्रह मण्डलाकार होता है। ग्रहों के साथ राहु देव (Rahu Dev) भी ब्रह्मा की सभा में बैठते हैं। मत्स्यपुराण (२८। ६१) के अनुसार पृथ्वी की छाया मण्डलाकार होती है। राहु इसी छाया का भ्रमण करता है। यह छाया का अधिष्ठातृ देवता है। ऋग्वेद (५। ४०। ५) के अनुसार असूया (सिंहिका) पुत्र राहु जब सूर्य और चन्द्रमा को तम से आच्छन्न कर लेता है, तब इतना अंधेरा छा जाता है कि लोग अपने स्थान को भी नहीं पहचान पाते।
ग्रह बनने के बाद भी राहु देवता (Rahu Devta) वैर-भाव से पूर्णिमा को चन्द्रमा और अमावस्या को सूर्य पर आक्रमण करते हैं। इसे ग्रहण या राहु पराग कहते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार राहु ग्रह का रथ अंधकार रूप है। इसे कवच आदि से सजाये हुए काले रंग के आठ घोड़े खींचते हैं। राहु के अधि देवता काल तथा प्रत्यधि देवता सूर्य हैं। नवग्रह मण्डल में इसका प्रतीक वायव्यकोण में काला ध्वज है।
इनकी महादशा १८ वर्ष की होती है। अपवाद स्वरूप कुछ परिस्थितियों को छोड़कर यह क्लेशकारी ही सिद्ध होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि कुंडली में राहु की स्थिति प्रतिकूल या अशुभ है तो यह अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियाँ उत्पन्न करता है। कार्यसिद्धि में बाधा उत्पन्न करने वाला तथा दुर्घटनाओं का यह जनक माना जाता है।
राहु ग्रह के उपाय
राहु ग्रह (Rahu Grah) की शांति के लिये मृत्युञ्जय-जप तथा पिरोजा धारण करना श्रेयस्कर है। इसके लिये अभ्रक, लोहा, तिल, नीला वस्त्र, ताम्रपात्र, सप्तधान्य, उड़द, गोमेद, तेल, कम्बल, घोड़ा तथा खड्ग का दान करना चाहिये। इसके जप का वैदिक मन्त्र – ‘ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता॥ पौराणिक मन्त्र –‘अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्। सिहिंकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥ बीज मन्त्र – ‘ॐ भ्रां श्रीं भ्रौं स: राहवे नमः , तथा सामान्य मन्त्र – ‘ॐ रां राहवे नमः ‘ है। इसमें से किसी एक का निश्चित संख्या में नित्य जप करना चाहिये। जप का समय रात्रि तथा कुल संख्या १८००० है।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु ग्रह के उच्च करने के उपाय निम्नलिखित हैं–
राशि | कोई नहीं |
महादशा | 18 वर्ष |
सामान्य उपाय | मृत्युञ्जय-जप |
रत्न | पिरोजा |
दान | अभ्रक, लोहा, तिल, नीला वस्त्र, ताम्रपात्र, सप्तधान्य, उड़द, गोमेद, तेल, कम्बल, घोड़ा तथा खड्ग |
वैदिक मंत्र | ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता॥ |
पौराणिक मंत्र | अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्। सिहिंकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥ |
बीज मंत्र | ॐ भ्रां श्रीं भ्रौं स: राहवे नमः |
सामान्य मंत्र | ॐ रां राहवे नमः |
जप-संख्या | 18000 |
समय | रात्रि |
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