स्वामी विवेकानंद के पत्र – रेवरेण्ड आर. ए. ह्यूम को लिखित (29 मार्च, 1894)
(स्वामी विवेकानंद का रेवरेण्ड आर. ए. ह्यूम1 को लिखा गया पत्र)
डिट्रॉएट,
२९ मार्च, १८९४
प्रिय भाई,
आपका पत्र मुझे यहाँ अभी अभी मिला। मैं जल्दी में हूँ, अतः मुझे क्षमा करें, मैं कुछ ही बातों के सम्बन्ध में आपकी गलतफहमी दूर करना चाहता हूँ।
सर्वप्रथम, विश्व के किसी भी धर्म या धर्मसंस्थापक के विरुद्ध मैं एक शब्द भी नहीं कहता, आप हमारे धर्म के बारे में चाहे जो सोचें। सभी धर्म मेरे लिए पवित्र हैं। दूसरी बात यह है कि मिशनरी हमारी भाषाएँ नहीं सीखते, ऐसा मैंने नहीं कहा। पर अभी भी मेरा अभिमत यह है कि संस्कृत की ओर दो-एक को छोड़कर कोई भी ध्यान नहीं देता। यह सच नहीं है कि मैंने किसी धार्मिक संस्था के विरुद्ध कुछ कहा है। मैंने तो इस बात पर जोर दिया था कि भारत को कभी भी ईसाई धर्म में धर्मान्तरित नहीं किया जा सकता। मैं इसको अस्वीकार करता हूँ कि ईसाई धर्म स्वीकार कर लेने से निम्न वर्गों की स्थिति में कोई सुधार हो जाता है। इस सम्बन्ध में मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि दक्षिण भारत के अधिकांश ईसाई सिर्फ कैथोलिक ही नहीं हैं, वे अपने को ईसाई जातियाँ कहते हैं। अर्थात् वे अपनी अपनी जाति को अब भी मानते हैं। और मुझे यह पूर्ण विश्वास है कि हिन्दू समाज यदि अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति त्याग दे, तो उनमें से नब्बे प्रतिशत लोग हिन्दू धर्म को पुनः स्वीकार कर लेंगे, उसमें चाहे कितने ही दुर्गुण क्यों न हों।
अन्त में आपको मैं हृदय से धन्यवाद देता हूँ कि आपने मुझे अपना सहदेशवासी कहकर सम्बोधित किया है। यह पहला ही अवसर है, जब भारत में जन्मे किसी यूरोपियन विदेशी ने – वह मिशनरी हो या न हो – गर्हित अपने एक देशवासी को इस प्रकार सम्बोधित किया हो। क्या आप भारत में भी मुझे इसी प्रकार पुकारने का साहस करेंगे? आपके जो मिशनरी भारत में जन्मे हैं, उनसे कहिए कि भारतवासियों को यही कहकर पुकारें, और जो भारत में नहीं जन्मे हैं, उनसे कहिए कि वे उनके साथ मानवोचित व्यवहार करें। अन्य बातों का जहाँ तक सम्पर्क है यदि मैं यह स्वीकार कर लूँ कि मेरे धर्म या समाज का विचार भू-पर्यटकों एवं कहानीकारों के वृत्तान्तों के आधार पर निर्भर है, तो आप स्वयं ही मुझे मूर्ख कहेंगे।
मेरे भाई, क्षमा करें। भारत में जन्म होने पर भी मेरे धर्म या समाज के बारे में आप क्या जानते हैं? यह सर्वथा असंभव है, समाज इतना रक्षणशील है, और सर्वोपरि हर व्यक्ति अपनी पूर्वधारणाओं के आधार पर ही किसी जाति व धर्म के बारे में अपना निर्णय करता है। क्या बात ऐसी ही नहीं है? आपने मुझे अपना देशवासी कहकर सम्बोधित किया है, इसके लिए प्रभु आपका मंगल करें। पूर्व और पश्चिम में बन्धुत्व और सौहार्द का उदय अब भी हो सकता है।
आपका भाई,
विवेकानन्द
- रेवरेंड आर. ए. ह्यूम, भारत के एक ईसाई मिशन के निर्दीशक, जिन्होंने स्वामी जी को आँबर्नडेल, मासाचुसेट्स्, से २१ मार्च,१८९४ को, उन्हें एक सार्वजनिक विवाद में घसीट लाने के स्पष्ट उद्देश्य सें लिखा था। श्री ह्यूम का जन्म भारत में हुआ था उन्होंने अपने पन्न का आरंभ ‘स्वामी विवेकानन्द, भारत के मेरे सहदेशवासी’ से किया था। उनकी मान्यता यह थी कि ईसाई मिशनरी भारत में जो कुछ करने है, या विदेश में भारत के विषय में जो कुछ कहते है, सव ठीक है; अैर स्वामी जी ही डिट्राएट तथा अमेरिका में भारत तथा ईसाई मिशनरियों को गलत ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं। स.