स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी मेरी हेल को लिखित (30 मार्च, 1894)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी मेरी हेल को लिखा गया पत्र)

डिट्रॉएट,
३० मार्च, १८९४

प्रिय बहन,

अभी अभी तुम्हारा तथा मदन चर्च का पत्र साथ ही मिला जिसमें रुपये की प्राप्ति की सूचना थी। खेतड़ी का पत्र जिसे मैं तुम्हें तुम्हारे पढ़ने के लिए वापस भेज रहा हूँ, पाकर मैं बहुत खुश हूँ। इस पत्र से तुम्हें मालूम होगा कि वे समाचार पत्रों की कुछ कतरनें चाहते हैं। डिट्रॉएट के पत्रों की कतरनों के अतिरिक्त मेरे पास और कुछ नहीं है। इन्हें मैं उनके पास भेज दूँगा। अगर तुम्हें अन्य पत्रों से कुछ मिल सका, तो अगर आसानी से हो सका तो उन्हें भेज देना। तुम उनका पता जानती हो – महाराज, खेतड़ी राजपूताना, भारत। हाँ, यह पत्र केवल पवित्र परिवार के पढ़ने के लिए ही है। पहले तो श्रीमती ब्रीड ने मेरे पास एक कड़ा पत्र लिख भेजा था, फिर आज मुझे उनका एक तार मिला, जिसमें उन्होंने मुझे एक सप्ताह के लिए अपना अतिथि बनने का निमन्त्रण दिया है। इससे पूर्व मुझे न्यूयार्क की श्रीमती स्मिथ का एक पत्र मिला, जिसे उन्होंने अपनी तथा कुमारी हेलेन गूल्ड तथा एक अन्य डॉक्टर (नाम भूल रहा हूँ) की ओर से मुझे न्यूयार्क बुलाने के लिए भेजा है। चूँकि लिन क्लब अगले महीने की १० तारीख को मुझे चाहता है, इसलिए मैं पहले न्यूयार्क जा रहा हूँ और फिर उनकी सभा के लिए समय पर लिन आ जाऊँगा।

अगर आगामी ग्रीष्म में मैं चला नहीं जाता, तो जैसा कि श्रीमती बैग्ली का आग्रह है, मैं एनिसक्वाम जा सकता हूँ, जहाँ श्रीमती बैग्ली ने एक सुन्दर मकान ले रखा है। श्रीमती बैग्ली बड़ी आध्यात्मिक महिला है। और श्री पामर एक सुरासक्त व्यक्ति हैं लेकिन हैं बहुत ही अच्छे। अब अधिक क्या लिखूँ? शारीरिक तथा मानसिक, दोनों प्रकार से मैं स्वस्थ हूँ। प्रिय बहनों, तुम सबको सतत आनन्द की प्राप्ति हो। हाँ, श्रीमती शर्मन ने मुझे अनेक वस्तुएँ भेंट में दी हैं, जैसे ‘लेटर होल्डर’, नेल-सेट, एक छोटा सा थैला आदि। यद्यपि मैंने आपत्ति की, विशेषतया नेल-सेट को लेने से, जिसका सीप का मूँठ बहुत तड़क-भड़क वाला है,परन्तु उन्होंने आग्रह किया और मुझे लेना पड़ा। हालाँकि मेरी समझ में नहीं आता कि यह ब्रश करने वाला यंत्र मेरे किस काम आयेगा। प्रभु उन सबका कल्याण करें! उन्होंने मुझे एक परामर्श दिया – इस अफ्रीका पोशाक को शिष्टसमाज में कभी न पहनूँ। अब मैं समाज के उच्चवर्गों का एक सभ्य हो गया हूँ। हे प्रभु अब आगे क्या होने वाला है? दीर्घ जीवन में कितने विचित्र अनुभव होते हैं। मेरा अमित स्नेह तुम सब – मेरे पवित्र परिवार – के लिए।

तुम्हारा भाई,
विवेकानन्द,

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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